November 24, 2024

त्वरित टिप्पणी: ’पीने को लपर-लपर, उठाने को ना नुकर’, ऐसा क्यों महाराज?

satpal maharaj

’मक्के में रहते हैं लेकिन हज पर नहीं जाते’ ये कहावत उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज पर एकदम सटीक बैठती है। सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। चैबट्टाखाल की जनता ने उन्हें विधान सभा भेजा। भाजपा ने उन्हें सरकार में पर्यटन मंत्री के तौर पर जिम्मेदारी दी। एक बारगी तो महाराज के मुख्यमंत्री बनाने के चर्चे भी चले। ये और बात है कि मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा हाईकमान ने खांटी संघी त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर भरोसा दिखाया। महाराज 2014 से भाजपा में हैं।

6 साल का अरसा गुजर चुका है। लेकिन भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता महाराज को अभी तक नहीं अपना पाये हैं। हालात ये है कि भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता सतपाल महाराज से अपना पीछा छुड़ाने की रणनीति अपना रहे हैं। इसके वजह भी खुद सतपाल महाराज हैं।

सतपाल महाराज कद्दावर नेता हैं। कांग्रेस शासनकाल में केन्द्र में रेल राज्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तराखण्ड की मौजूदा सरकार में वे पर्यटन मंत्री की हैसियत रखते हैं। लेकिन ना तो उनका भाजपा संगठन को मजबूत करने में कोई योगदान नजर आता हैं। ना ही वे पर्यटन मंत्री के तौर कभी जिम्मेदार नजर आते हैं।

ऐसा लगता है कि सतपाल महाराज सत्ता और संगठन की सुख-सुविधाएं तो चाहते हैं, लेकिन इससे जुड़े जिम्मेदारियों को उठाना नहीं चाहते हैं।

सतपाल महाराज ना तो अपने विभाग के कार्यक्रमों में नजर आते हैं। ना ही वे केबिनेट की मीटिंगों को गंभीरता से लेते हैं। कैबिनेट की मीटिंगों में तो वे लगभग नदारद ही मिलते हैं। जनता से जुड़े तमाम मौके ऐसे हैं जहां पर्यटन मंत्री अपने ही विभाग के कार्यक्रम तक में दिखाई नहीं दिये।

13 जिले 13 डेस्टिनेशन कार्यक्रम

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जनता और कार्यर्ताओं से महाराज की दूरियां इतनी बढ़ चली है कि चाहे ’13 जिले 13 डेस्टिनेशन’ कार्यक्रम हो या पर्यटन से जुड़े रोजगार योजनाओ को आगे बढ़ाने का मामला, सतपाल महाराज कही नहीं दिखे। सतपाल महाराज उत्तराखंड की जनता की समस्याओं और दुख-दर्द से वास्ता रखते तो पर्यटन के हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते नजर आते।

डोबरा चांटी पुल लोकार्पण के मौके पर भी पर्यटन मंत्री नजर नहीं

डोबरा चांटी पुल के लोकार्पण के मौके पर भी पर्यटन मंत्री नजर नहीं आए। डोबरा चांटी पुल ऐतिहासिक पुल है। आधुनिक इंजीनियरिंग का बेमिसाल नमूना है। इस पुल के बन जाने से क्षेत्र में पर्यटन को नये पंख लगेंगे। इसके इतर डोबरा चांटी पुल का स्थानीय जनता के लिए अलग मायने रखता हैं। इस पुल का स्थानीय जनता पिछले डेढ़ दशक से बाट जोह रही थी। ये जनता की उम्मीदों का पुल है। जनसरोकारों का पुल है। और जनता को जब ये पुल मिला तो सतपाल महाराज वहां नही थे। जन सरोकारों से जुड़े इस मौके पर पर्यटन मंत्री नदारद क्यों रहे? ये कई सवालों को जन्म देता है।

कैबिनेट मीटिंग को लेकर बेपरवाह

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देश और राज्य के विकास में कैबिनेट मीटिंग बहुत अहम होती है। सतपाल महाराज कैबिनेट मीटिंग को लेकर बेपरवाह नजर आते हैं। राज्य सरकार की कैबिनेट की ज्यादातर बैठकों पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज नजर ही नहीं आते। इससे अंदाजा लग जाता है कि सतपाल महाराज की राज्य के विकास में कितनी दिलचस्पी लेते हैं?

नयार घाटी एडवेंचर स्पोर्ट्स का ऐतिहासिक कार्यक्रम

गुरूवार को हुए बिलखेत, सतपुली नयार घाटी एडवेंचर स्पोर्टस् के ऐतिहासिक कार्यक्रम में सतपाल महाराज वो भी पर्यटन मंत्री होने के नाते भी नदारद दिखे। जनसरोकारों से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों में सतपाल महाराज की लगातार गैरहाजिरी साफ दर्शा रही है कि जनता और रोजगार के प्रति महाराज कितने जवाबदेह है?

4 साल में कोई अहम उपलब्धि नहीं

राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में ना आना

गणेश परिक्रमा में व्यस्त

सतपाल महाराज को दिल्ली दौड़ते ही देखा गया है। कभी सोनिया गांधी के दरबार तो कभी भाजपा के दरबार। सतपाल महाराज ने भाजपा में शामिल होने के बाद एक स्थानीय दैनिक को दिये साक्षात्कार में एक सवाल के जवाब में कहा था कि वे संत हैं सौदेबाजी नहीं करते हैं। 1991 में राजनीति में उतरने के बाद उत्तराखण्ड की जनता ने महाराज को सर आंखों में बिठाया। उन्हें संसद भेजा। वे मंत्री बने। कांग्रेस के शासन के दौरान रेल राज्यमत्री रहे। 2014 में भाजपा में शामिल हुए। दल बदलने के बाद भी जनता ने महाराज पर भरोसा जताया और विधान सभा भेजा। वे पर्यटन मंत्री बने। लेकिन जिस जनता ने उन्हें संसद और विधान सभा भेजा, जिनकी बदौलत वे केन्द्र और राज्य में मंत्री बने। उसी जनता जर्नादन से महाराज क्यों नाराज हैं ये समझ से परे है। ऐसा लगता है कि जनता के ’अक्ल के कुत्ते फेल हो चुके हैं’ जो ऐसे नेताओं को चुनते है जो ’पीने को लपर-लपर, उठाने को ना नुकर’ करते हैं।