पड़ताल-1: अकादमिक-प्रशासनिक के खेल में पिसती उत्तराखण्ड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था
देहरादून: उत्तराखंड एक ऐसा पहाड़ी राज्य है जहाँ कर्मचारी और अधिकारी दोनों ही पहाड़ चढ़ने से परहेज करते हैं और हमेशा ही सुविधाजनक स्थान पर पोस्टिंग की जुगत में रहते हैं। इसके लिए फिर चाहे कुछ भी खेल क्यों न खेलना पड़े और अगर बात शिक्षा विभाग की हो तो प्रदेश का सबसे बड़ विभाग होने के नाते इस भारी भरकम विभाग के खेल भी निराले ही होते हैं।
यहाँ सुविधाजनक पोस्टिंग की फिराक में न सिर्फ शिक्षक बल्कि अधिकारी भी हमेशा ही बने रहते हैं। इसमें अधिकारियों की नजर बनी रहती है निदेशालय के पदों पर या फिर एस0सी0ई0आर0टी0 और डायटों पर इनमें भी एससीईआरटी और डायट पसंदीदा स्थल होते हैं क्योंकि अकादमिक संस्थान होने के नाते इन संस्थानों की प्रशासनिक जवाबदेही किसी भी स्तर पर तय नहीं होती इसलिए विभागीय अधिकारी इन संस्थानों को अधिक मुफीद समझते हैं और यहाँ तक पसंद करते हैं कि प्रशासनिक आधार पर संबद्ध होने की दशा में भी इन स्थलों के लिए जुगाड़ लगाते हैं, विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी तो पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से एससीईआरटी में केवल इसी आस में संबद्ध हैं कि अवसर मिलते ही स्थानांतरण ही एससीईआरटी में हो जाए जबकि सामान्यतः प्रशासनिक आधार पर महानिदेशालय या निदेशालय से संबद्ध किया जाता है।
प्रदेश का दुर्भाग्य है कि एक ओर तो प्रदेश के सभी जनपद अधिकारियों की कमी से जूझ रहें है और वहीं दूसरी ओर अधिकारी एससीईआरटी और डायटों की आड़ में छिपना चाहते हैं।
प्रदेश में एससीईआरटी और डायट जैसे महत्वपूर्ण अकादमिक संस्थान प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता तो नहीं ला पाए लेकिन अधिकारियों को एक सुविधाजनक स्थल के रुप में आरामगाह जरुर बने, प्रशासनिक अधिकारियों के इन संस्थानों में जमावडे़ से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को दोहरी चोट पहुँची है एक ओर तो जनपद स्तर में प्रशासकों की कमी हुई।
वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक रवैये से प्रभावी अकादमिक कार्यों को बढ़ावा नहीं मिल सका, क्योंकि ये संस्थान विशुद्ध रुप से अकादमिक संस्थान हैं इसीलिए प्रदेश में 2013 के शासनादेश ने इन संस्थानों से विभागीय अधिकारियों के लगभग सभी पदों को समाप्त कर दिया इसीलिए डायटों में 2013 के बाद से प्राचार्य पदों पर कार्य कर रहे अधिकारी अवैधानिक रुप से कार्य कर रहे हैं।
ऐसे में जब भी इन पदों पर अधिकारियों को भरा जाता है तो जनपद स्तर पर अधिकारियों का टोटा हो जाता है, प्रदेश के शिक्षा विभाग की नियमावली में एससीईआरटी और डायट के अधिकारियों के पदों को स्थान ही नहीं दिया गया है बावजूद इसके इन पदों पर शासन द्वारा अधिकारियों की विधिवत पदस्थापना की जाती है और यहीं से इनका वेतन तक निकलता है ।
आज की स्थिति देखें तो जनपदों में उपशिक्षा अधिकारी से लेकर मुख्य शिक्षा अधिकारी तक के लगभग 100 से अधिक पद रिक्त चल रहे हैं। यदि महामारी जैसी विषम परिस्थिति में भी जनपदों में अधिकारियों के इतनी बड़ी संख्या में पद रिक्त चलने के बावजूद शिक्षा विभाग की व्यवस्थाएं चुस्त दुरुस्त चल रही हैं तो वास्तव में प्रदेश के शिक्षा विभाग को इतने भारी भरकम ढाँचे की आवश्यकता ही नहीं है। इस छोटे से प्रदेश में शिक्षा विभाग के तीन निदेशालयों, मण्डल स्तर पर चार अपर निदेशकों और जनपद स्तर पर पाँच-पाँच अधिकारियों के पदों की समीक्षा कर पदों को कम कर दिया जाना चाहिए जिससे आर्थिक तंगी से जूझ रहे प्रदेश सरकार का खर्च का बोझ तो कम हो सकेगा।