पतंजलि समूह: दवा, दावा दोनों विवादित; डब्ल्यूएचओ और आइएमए को भारी एतराज
बाबा रामदेव और उनके पंतजलि समूह का विवाद से नाता कभी छूटता नहीं। महामारी कोविड-19 की कथित कोरोनिल दवा का जुलाई-2020 में पुराना दावा धाराशायी हो गया था तो उसे फिर जिंदा करने के लिए 21 फरवरी को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को लेकर ऐसे दावे कर दिए गए, जिससे और तीखा विवाद भड़क उठा। डब्लूएचओ के खंडन के बाद उस दिन मंच पर मौजूद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी सवालों की जद में आ गए। अब पतंजलि इन सवालों की अपनी तरह से व्याख्या कर रही है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का बचाव भी कर रही है।
रिलांचिंग में हर्षवर्धन के अलावा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी शिरकत की थी। मंच के ठीक पीछे बड़े-से पोस्टर पर कोरोनिल दवा से जुड़े तमाम दावे लिख थे। एक दावा यह भी था कि कोरोनिल दवा फर्स्ट एविडेंस बेस्ड मेडिसिन फॉर कोविड-19 और सीओपीपी-डब्लूएचओ जीएमपी सर्टिफाइड है। इसका मतलब यह हुआ कि यह भारत की पहली तथ्यों पर आधारित कोरोना की दवा है और डब्लूएचओ ने इसे गुड मैनुफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) की मान्यता दी है। डब्लूएचओ से संबंधित दावे को पतंजलि के प्रमुख रामदेव ने कई पत्रकारों से अपने इंटरव्यू के दौरान भी दोहराया। खबरें भी छपीं कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोनिल को मंजूरी दी। न्यूज चैनलों ने भी पतंजलि के इस दावे को प्रमुखता से दिखाया। चैनलों ने दिखाया कि रामदेव ने दुनिया के 158 देशों के लिए कोरोना वायरस की प्रामाणिक दवा लांच की है। पंतजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि कोरोनिल का इस्तेमाल पहले से लोग कर रहे थे। लेकिन अब डीजीसीए के बाद डब्लूएचओ से भी मान्यता मिल गई है। अब पतंजलि आधिकारिक रूप से कोरोनिल का निर्यात कर सकता।
दवा लांच होने के एक दिन के भीतर पंतजलि से जुड़ी रुचि सोया कंपनी के शेयर के रेट अचानक बढ़ गए। एक अनुमान के मुताबिक शेयर का कंपनी को एक दिन में ही दो हजार करोड़ रुपये का फायदा हो गया। विवाद बढ़ता देख डब्लूएचओ ने पतंजलि का नाम लिए बगैर ही यह साफ कर दिया कि उसने किसी भी दवा को मान्यता नहीं दी है। डब्लूएचओ के मीडिया विभाग की शर्मिला शर्मा ने कहा कि डब्लूएचओ ने कोविड 19 के उपचार के लिए किसी भी पारंपरिक दवा की न तो समीक्षा की और न ही प्रमाणित किया है। गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रेक्टिस (जीएमपी) का प्रमाण पत्र डब्लूएचओ के दिशा-निर्देशों के तहत राष्ट्रीय दवा नियामक डीसीजीआइ जारी करता है।
उधर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने पतंजिल के दावे और कार्यक्रम में हर्षवर्धन के शामिल होने पर तमाम सवालात खड़े किए। आइएमए के अध्यक्ष डॉ. जे.ए. जयलाल ने कहा कि हर्षवर्धन न केवल कार्यक्रम में शामिल हुए, बल्कि उसकी अध्यक्षता भी की। संस्था ने कहा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने नियमों में साफ लिखा है कि कोई भी डॉक्टर किसी भी दवा को प्रमोट नहीं कर सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने नेशनल मेडिकल कमीशन को पत्र लिख कर कह रहा है कि हर्षवर्धन से सफाई ली जाए कि वे कैसे किसी दवा को प्रमोट कर सकते हैं। संस्था ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री का शामिल होना गलत है। वे खुद पोस्ट-ग्रेजुएट डॉक्टर हैं और डब्ल्यूएचओ की गर्वनिंग काउंसिल में हैं। उनके कार्यक्रम में शामिल होने से से दवा को विश्वसनीयता मिलती है।
बाद में पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने ट्वीट किया कि कोरोनिल के लिए डब्ल्यूएचओ जीएमपी /सीओपीपी प्रमाण पत्र हमें केंद्र सरकार की डीसीजीआइ ने जारी किया है। पतंजलि ने दावा किया कि दवा से कोविड-19 का इलाज किया जा सकेगा।
आचार्य बाल कृष्ण एक प्रेस नोट में कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने किसी भी दवा का समर्थन नहीं किया। इस प्रकरण पर पतंजलि का पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन इस संवाददाता के भेजे सवालों का उत्तर कंपनी के प्रतिनिधि से पत्रिका के प्रकाशन के समय तक नहीं आया।
जुलाई-2020 में भी पतंजलि ने कोरोनोला किट के नाम से तीन दवाओं का एक सेट लांच किया था। तब भी तमाम सवाल खड़े हुए थे। केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय ने इसके प्रचार पर रोक लगाई थी और उत्तराखंड सरकार ने भी नोटिस जारी किया था। इसके बाद दिल्ली में इसकी रिलांचिंग की गई।
“पंतजलि बना हंसी का पात्र”
देश में आधुनिक चिकित्सा के डॉक्टरों के राष्ट्रीय संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बाबा रामदेव के पंतजलि समूह के कोविड -19 के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल के दावे का कड़ा विरोध किया है। आउटलुक के जीवन प्रकाश शर्मा से बातचीत में आइएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जे.ए. जयलाल ने आरोप लगाया कि रामदेव का दावा गलत है और ऐसे आयोजन में स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति समाज में गलत संदेश देगी। अंश:
आपको क्यों लगता है कि बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद का कोविड -19 की आयुर्वेदिक दवा का दावा भ्रामक है?
पहले तो, एक आयोजन में यह घोषणा की गई कि यह कोविड-19 की जटिलताओं के इलाज, रोकथाम में उपयोगी पहली साक्ष्य-आधारित दवा है। इस तरह के झूठे दावे, खासकर महामारी के दौर में गंभीर चिंता का कारण है। कोई भी यह विश्वास करना शुरू कर देगा कि कोरोनिल से इलाज संभव है। इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के सर्टिफिकेट का दावा भी भ्रामक है क्योंकि डब्ल्यूएचओ कभी दवा के असर और चिकित्सीय उपयोगिता को प्रमाणित नहीं करता है।
लेकिन कंपनी का दावा है कि जयपुर के एक अस्पताल में बिना लक्षण वाले 95 रोगियों पर दवा का परीक्षण किया गया और नतीजे एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किए गए। क्या आपको क्लिनिकल ट्रायल पर संदेह है?
जर्नल में प्रकाशित शोध में ही कहा गया है कि यह बिना लक्षण वाले 95 रोगियों पर किया गया पायलट अध्ययन है। यह पायलट अध्ययन है तो सबूत-आधारित दवा होने का दावा नहीं किया जा सकता है। जहां कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों की संख्या लाखों है, सिर्फ बिना लक्षण वाले 95 रोगियों पर ही दवा का प्रयोग किया गया। उसमें 50 लोगों को प्लेसबो (यानी असली इलाज से इतर कोई खुराक) मिली, जबकि 45 लोगों को दवा दी गई।
क्या परीक्षण की विधि में कोई दोष है?
हां, बिना लक्षण वाले लोग कोविड -19 संक्रमण से पांच से सात दिनों के भीतर किसी भी दवा का सेवन किए बिना ठीक हो जाते हैं। प्रकाशित पेपर यह नहीं बताता है कि कोई ट्रायल के लिए तैयार हुआ, तो उसे कब संक्रमण लगा था। मसलन, कोई संक्रमण लगने के चार दिन बाद और दूसरा संक्रमण लगने के पहले दिन ही इलाज के लिए पहुंचा, तो नतीजे अलग-अलग होने तय हैं।
दूसरी समस्या यह है कि शोधकर्ताओं में एक पतंजलि है। वह दवा की निर्माता है, अनुसंधान की प्रायोजक है, और शोध पत्र का हिस्सा भी है। रामदेव के दावे ने पतंजलि आयुर्वेदिक उत्पादों को इस देश में हंसी का पात्र बना दिया है।
पेपर से यह भी पता चलता है कि दवा लेने वाले 45 लोगों में प्लेसबो समूह में शामिल 50 रोगियों की तुलना में उच्च-संवेदनशील सी-रिएक्टिव प्रोटीन, आइएल-6 और टीएनएफ के सीरम स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट दिखती है। क्या यह दवा का लाभ नहीं दिखाता है?
सबसे पहले, पेपर ट्रायल में प्रवेश के समय लोगों के एचएस-सीआरपी, आइएल-6 और टीएनएफ के सीरम स्तर के बारे में कुछ नहीं बताता है। दूसरे, बिना लक्षण वाले 99 प्रतिशत रोगियों में इन तीनों संकेतकों का सीरम स्तर सामान्य रहता है और इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। इलाज जरूरी तब होता है जब तीनों संकेतक सामान्य स्तर से ऊपर जाते हैं। अमूमन यह स्वस्थ व्यक्ति में भी बदलता रहता है।
कोविड -19 की कई आधुनिक दवाएं अपने दावों पर खरा नहीं उतर पाईं। मसलन एक है रेमेड्सवियर। इसके क्लिनिकल ट्रायल में कोई भारतीय नहीं था लेकिन इलाज में उसका इस्तेमाल चलता रहा था। बाद में, डब्ल्यूएचओ के परीक्षण ने पुष्टि की कि यह उपचार में असरकारी नहीं है। इस बीच, कंपनी ने बड़ा लाभ कमाया। आइएमए ने कभी उसके खिलाफ क्यों नहीं बोला?
आइसीएमआर ने शुरू में कहा था कि कोविड-19 के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को निवारक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उसी आइसीएमआर ने बाद में कहा कि यह दवा असरकारी नहीं है। लेकिन यह शोध-आधारित दृष्टिकोण है। अनुसंधान से पता चलता है कि आज जो सच है, वह कल सच नहीं हो सकता है। लेकिन पायलट अध्ययन के आधार पर गलत और भ्रामक दावा करना गलत है।
इसके अलावा, गौरतलब यह भी है कि किसी भी मंत्री ने रेमेड्सवियर के लॉन्च में भाग नहीं लिया था और यह भी नहीं कहा था कि यह अच्छी दवा है। मेरा अनुरोध है कि विज्ञान को राजनीति से न जोड़ें।
क्या डॉ. हर्षवर्धन ने लॉन्च में हिस्सा लेकर आचार संहिता का उल्लंघन किया?
हमारी आचार संहिता के अनुसार, कोई डॉक्टर किसी अनजानी दवा या किसी व्यापार को बढ़ावा नहीं दे सकता है। किसी खास निजी एजेंसी की खास दवा के प्रचार में स्वास्थ्य मंत्री के होने की क्या जरूरत थी? हमारा सरोकार यह भी है कि रामदेव ने उसी आयोजन में आधुनिक मेडिकल डॉक्टरों को मेडिकल आतंकवादी कहा। यह माननीय स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में कहा गया बेहद अपमानजनक बयान था।
लेकिन आरोप है कि आधुनिक चिकित्सा हमेशा वैकल्पिक चिकित्सा पर सवाल उठाती है?
नहीं, हमसे कोई होड़ नहीं हैं। इस देश में आयुर्वेद की अच्छी परंपरा है। लेकिन यह गलत दावा न करें कि आप कोरोनिल लेते हैं और सब कुछ ठीक हो जाएगा। यह गलत संदेश आप लोगों को दे रहे हैं।