विश्व जल दिवस : वो देश, जहां पानी बचाने पर मिलता है पैसा
पूरी दुनिया में 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. समूची दुनिया के सामने पानी की समस्या धीरे धीरे एक बड़े संकट के रूप में सामने आ रही है. ऐसे में बहुत से देश समय से पहले सावधान हो गये हैं. पानी बचाने के लिए उन्होंने तरह तरह की योजनाएं और जागरूकता अभियान शुरू किया है. ऐसे ही देशों में आस्ट्रेलिया और जर्मनी शुमार होते हैं जहां पानी बचाने वाले सरकार धन देती है.
आस्ट्रेलिया के कई राज्यों में 2003 से लेकर 2012 तक भीषण सूखा पड़ा. आस्ट्रेलियाई राज्य विक्टोरिया में पानी का लेवल 20 फीसदी कम हो गया. सरकार ने इससे निपटने के लिए लोगों को वाटर को रिसाइकल करने और रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति जागरुक किया.
अब आस्ट्रेलिया में कई शहरों में एक जल योजना चलाई जा रही है. इसके तहत जो भी लोग अपने घरों के वाटर लीक को दुरुस्त करा लेंगे, उन्हें 100 डॉलर की छूट मिलेगी.
इसके लिए आपको बस आनलाइन ये बताना होता है कि आपके पास पानी की लीकेज खोजने वाला उपकरण है. ये उपकरण तुरंत घर के किसी भी हिस्से में हो रही पानी की लीकेज या बर्बादी के बारे में बता देता है. इसके बाद आपको तुरंत आनलाइन करीब रहने वाले लाइसेंसी प्लंबर को बुक करके उसे ठीक कराना होता है.
जर्मनी में पानी बचाने पर मिलता है पैसा
जर्मनी की सरकार भी इसी से मिलता जुलता प्रोजेक्ट चलाती है. इनका नाम नेशनल रेन वाटर और ग्रे वाटर प्रोजेक्ट है. सरकार पानी की बचत वाली तकनीक अपनाने वालों को आर्थिक मदद भी देती है. इससे वहां पानी का संकट दूर हो सका.
जर्मनी में दुनिया के सबसे ज्यादा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं.
वैसे भी कहा जाता है कि जर्मन पूरी दुनिया में पानी की बचत करने में सबसे आगे हैं. वो पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होने की आदत रखते हैं. पिछले कई सालों में उन्होंने प्रति व्यक्ति पानी की खपत को कम किया है.
यहां 40 साल पहले ही शुरू हो गया था वाटर हार्वेस्टिंग का काम
जर्मनी में 1980 से ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर काम हो रहा है. जर्मनी में रेन वाटर हार्वेस्टिंग छोटे स्तर पर शुरू हुआ. इस शुरू करने के पीछे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील लोग थे. लेकिन धीरे-धीरे इसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से पब्लिक बिल्डिंग और यहां तक इंडस्ट्री भी जुड़ने लगी. रेन वाटर का ज्यादातर इस्त्तेमाल यहां पीने के अलावा दूसरे कामों जैसे टॉयलेट आदि में होता है.
जर्मनी वेस्ट वाटर का भी रिसाइकल के जरिए 95 फीसदी तक इस्तेमाल करता है. वहां सबसे ज्यादा 10,000 वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं. वहां की 99 फीसदी आबादी सार्वजनिक वाटर सप्लाई सिस्टम से जुड़ी हुई है.
दूसरे देशों में कैसे हो रहा है ये काम
ब्राजील, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, चीन, जर्मनी और इजरायल पानी के संकट से निपटने में सबसे उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. पानी के संकट को दूर करने का सबसे सस्ता और अच्छा उपाय है पानी की बचत. पानी का कम से कम इस्तेमाल. कई देशों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संचयन) को अपनी सेंट्रल वाटर मैनेजमेंट प्लान का हिस्सा बनाया है. उनका सबसे ज्यादा जोर वर्षा के जल को इकट्ठा करने पर है.
इस जमा पानी का इस्तेमाल पीने के लिए नहीं किया जाता. कुछ देशों ने इस दिशा में सफलता पाई है. 2009 में यूएन ने अपने यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को ज्यादा से ज्यादा पॉपुलर करने पर जोर दिया था. वर्षा जल संचयन में ब्राजील, चीन न्यूजीलैंड और थाइलैंड सबसे अच्छा काम कर रहे हैं.
ब्राजील में भी पानी की बचत और बरसात के पानी की छत पर हार्वेस्टिंग करने पर आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाते हैं.
ब्राजील रूफ वाटर हार्वेस्टिंग में सबसे आगे
ब्राजील ने रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की दिशा में सबसे अच्छा काम किया है. इस तकनीक में घर की छत पर आने वाले बारिश के पानी को पाइप के जरिए बड़े-बड़े टैंक में इकट्ठा किया जाता है. ब्राजील के पास पूरी दुनिया का 18 फीसदी फ्रेश वाटर उपलब्ध है. लेकिन ब्राजील के बड़े शहरों को सिर्फ 28 फीसदी काम लायक पानी मिल जाता है.
ब्राजील भी देता है आर्थिक मदद
इस समस्या से निपटने के लिए ब्राजील ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर काम किया. ब्राजील ने एक प्रोजेक्ट चलाया, जिसमें टारगेट रखा गया कि दस लाख लोगों के घरों पर रुफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिए पानी की समस्या को दूर किया जाएगा. इस तकनीक के जरिए बारिश के पानी को गर्मी के मौसम में इस्तेमाल के लिए जमा करके रखा जाता है. ब्राजील की सरकार इस तकनीक के लिए आर्थिक मदद भी मुहैया करवाती है.
सिंगापुर ने नहरों का जाल बिछाया
सिंगापुर छोटा लेकिन घनी आबादी वाला देश है. यहां प्रदूषित पानी की बड़ी समस्या थी. पीने का साफ पानी मिलने में मुश्किल होती थी. 1977 में सिंगापुर ने सफाई का बड़े पैमाने पर अभियान चलाया. सबसे ज्यादा प्रदूषित पानी की समस्या पर ध्यान दिया गया. इसी का नतीजा रही कि सिंगापुर नदी 1987 तक पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त हो गई.
नदियों को साफ करने के बाद भी सिंगापुर साफ पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा था. सिंगापुर ने स्टॉर्मवाटर ऑप्टिमाइजेशन के जरिए समस्या का हल निकाला. इस तकनीक में बाढ़ के पानी को नहरों के जरिए कंट्रोल कर उसे इस्तेमाल लायक बनाया जाता है. नहरों के लंबे चौड़े नेटवर्क ने सिंगापुर की पानी की समस्या काफी हद तक सुलझा दी.
चीन ने चलाया 121 नाम से खास प्रोजेक्ट
रेन वाटर हार्वेस्टिंग के मामले में चीन ने भी अच्छा काम किया है. चीन में पूरी दुनिया की 22 फीसदी आबादी निवास करती है. फ्रेश वाटर के यहां सिर्फ 7 फीसदी रिसोर्सेज हैं. आबादी बढ़ने के बाद पानी की समस्या और बढ़ी है. चीन ने इसके लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग का बेहतर इस्तेमाल किया है.
1990 से ही यहां इस तकनीक पर काम हो रहा है. 1995 में जब यहां सूखा पड़ा तो सरकार ने 121 नाम से एक प्रोजेक्ट चलाया. जिसके तहत हर एक परिवार को बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए कम से कम 2 कंटेनर रखने होंगे. ये प्रोजेक्ट काफी सफल रहा.