विवेचना: देवस्थानम् बोर्ड का गठन बेहतर प्रबंधन या पंडा-पुरोहितों के प्रभाव में सरकार!
देहरादून। चार धाम देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार के सवाल पर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मोड आ गया है। जहा कुछ लोग त्रिवेन्द्र नेतृत्व में बनाये गये इस फैसले पर सवाल खडे कर रहे है तो वही इससे इतर प्रदेश का बहुसंख्यक समाज इस फैसले को ऐतिहासिक बता रहा है। खुद मंदिर समितियों ने माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर यहां भी बोर्ड बनाने का सुझाव सरकार को दिया था। इसके साथ ही कई वर्षो से मंदिरों के संचालन को लेकर पहले भी सवाल खडे होते रहे है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या एक महीने में ही तीरथ सरकार पंडा-पुरोहितों के प्रभाव में आ गयी है।
सरकार के चार धाम देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार के सवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि श्री बदरीनाथ और श्री केदारनाथ के मंदिर तो बदरी-केदार मंदिर समिति के जरिए एक एक्ट से पहले से ही संचालित होते हैं। इसके तहत 51 मंदिर आते हैं।
हमने एक भी नया मंदिर बोर्ड में नहीं जोड़ा। श्री यमुनोत्री धाम मंदिर को एसडीएम की देखरेख में संचालित किया जाता है।
वर्ष 2003 तक श्री गंगोत्री धाम का मंदिर में भी प्रशासक के तौर पर एसडीएम की देखरेख में संचालित होता था। अब किन कारणों से एसडीएम की व्यवस्था बदली उसके लिए पिछला अध्ययन करना पड़ेगा।
बोर्ड को लेकर पूर्व सीएम रावत ने खुलकर अपनी बात रखी। पूर्व सीएम ने कहा कि चाार धाम देवस्थानम बोर्ड को बनाने के पीछे बेहतर प्रबंध था। कुछ लोग इसे मुददा बना रहे है, जबकि इमानदारी से एक भी व्यक्ति यह नही कह सकता है कि इस बोर्ड के गठन से उनका हक मारा गया हो, लेकिन सिर्फ विरोध करने के लिये विरोध खडा करना उचित नही है। साथ ही त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने साफ किया कि देवस्थानम बोर्ड बीजेपी सरकार ने राज्य में बेहतर विकास और प्रबंध के लिये बनाया है।
पूर्व सीएम रावत ने कहा कि सरकार का देवस्थानम बोर्ड बनाने का उद्देश्य केवल वहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए बेहतर व्यवस्था का संचालन करना था।
खुद मंदिर समितियों ने माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर यहां भी बोर्ड बनाने का सुझाव दिया था। यहां तक कि समितियां श्री पूर्णागिरी और श्री चितई के लिए भी ऐसी व्यवस्था चाहते रहे। जहां तक वर्षों से इन मंदिरों में पूजा अर्चना कर रहे पंडों और पुरोहितों के हक- हकूक की बात है, हमने उनसे कोई छेड़छाड़ नहीं की। क्योंकि पंडा-पुरोहित सैकड़ों वर्षों से इन मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं इसलिए उनके अधिकारों को बनाए रखा गया। केवल यात्रियों के लिए बेहतर प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया गया।