September 22, 2024

पड़ताल-3ः एससीईआरटी का अजब खेल, ऐसे कैसे नवीन शिक्षा नीति लागू करोगे उत्तराखंड सरकार ?

देहरादून। नवीन शिक्षा नीति को राज्यों में लागू करने में एससीईआरटी की महत्वपूर्ण भूमिका है । भारत सरकार भी इस सम्बंध में दिशा निर्देश दे चुकी है । इसी सम्बंध में राज्यों को एससीएफ अर्थात् स्टेट करिकलम फ्रेम्वर्क बनाने के निर्देश दिए गए हैं लेकिन उत्तराखंड में तो निदेशालय अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण का अजब ही खेल चल रहा है, कल ही निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण द्वारा एक आदेश जारी किया गया है जिसमें आईटी के संयुक्त निदेशकध्विभागाध्यक्ष को एससीएफ हेतु नोडल अधिकारी बनाया गया है जबकि करिकलम विभाग के विभागाध्यक्ष को नहीं, ताजुब की बात तो यह है की करिकलम विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारा खुद ही हाथ खड़े कर इस दायित्व से मुक्ति चाही गयी थी । ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि एससीईआरटी अकादमिक संस्था के नाम पर विभागीय अधिकारियों की एशगाह बनी हुई है।

पड़ताल-1

पड़ताल-1: अकादमिक-प्रशासनिक के खेल में पिसती उत्तराखण्ड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था

पड़ताल-2

पड़ताल-2: एससीईआरटी में अपर निदेशक पद पर खेल, दो साल से संबद्ध अधिकारी की ताजपोशी की तैयारी

पड़ताल-1 और पड़ताल-2 में दस्तावेज ने बताया था की कैसे अधिकारी एससीईआरटी में जमे रहने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं । आज अगर प्रदेश में 2013 का शासनादेश लागू होता तो एससीईआरटी का मुखिया कोई शिक्षाविद होता और और एससीईआरटी में केवल अकादमिक कार्मिक ही होते लेकिन इस प्रदेश में तो अधिकारियों का दुस्साहस इतना बढ़ चुका है की नियम विरूद्ध अपने चहेतों को एससीईआरटी लाने के लिया बकायदा उनसे आवेदन माँग लिए गए है, बिना किसी पद के और बिना किसी अहर्ता के ।

पहले तो इन्ही निदेशक महोदया द्वारा अपने चहेतों के लिए एससीईआरटी और डायट में पदों को रिक्त रखने की मंशा से कुछ लोगों को ये बोल कर कि ये अनर्ह है विधिवत स्थानांतरण आदेश होने के बावजूद भी पदभार ग्रहण नहीं करने दिया गया और आज अपने चहेतों से आवेदन मँगवा कर शासन को प्रस्ताव भेजे जाने की तैयारी चल रही है । एक आवेदनकर्ता ने तो बक़ायदा अपने आवेदन में ही लिखा है कि अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ही उनके द्वारा आवेदन किया जा रहा है । आज की तारीख़ में अधिकारी वर्ग के लिए एससीईआरटी इतनी मुफीद जगह बन गयी है कि अधिकारी खुद को यहाँ दण्ड के फलस्वरूप सम्बद्ध करा दे रहे हैं और समय की ताक में रहते हैं कि अवसर मिलते ही अपनी पहुँच के चलते स्थानांतरण करवा सकें ।

यदि विभाग को पिछले दो वर्षों से इन अधिकारी महोदय को किसी भी जनपद के लायक़ तक नहीं समझा गया तो अब यहाँ अपर निदेशक की ताजपोशी की अनुशंसा कैसे कर सकता है ? पूरे शिक्षा विभाग को अनिवार्य सेवनिवृत्ति के लिए ऐसे अधिकारी नहीं दिखते जिन्हें विभाग बिना किसी काम के सालों वेतन देता है, तो अंधेरगर्दी किस दर्जे की है समझी जा सकती है । यदि सरकार ने केंद्र के दिशा निर्देशानुसर 2013 का शासनादेश लागू कर दिया होता तो शिक्षा को प्रदेश को वित्तीय लाभ भी मिलता और शिक्षा को भी इतनी हानि ना होती । शिक्षा का सर्वोच्च संस्थान ऐसे नाकाबिल अधिकारियों की एशगाह न बनता । किंतु शीर्ष स्तर पर ही जब शिक्षा के दृष्टिकोण का अभाव हो तो शिक्षा के गिरते स्तर को बचा पाना नामुमकिन है ।


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