प्रस्तावित भू-कानून में भूमिहीन परिवारों को जमीन आंवटन की भी हो व्यवस्था
रुद्रप्रयाग। उत्तराखण्ड भू-कानून को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। जहां सत्ता पक्ष के नुमाइंदे मौजूदा कानून का सही ठहराते हैं। वही प्रदेश के नौजवान भू-कानून को लेकर एक बड़ा अभियान छेड़े हुए हैं। उत्तराखण्ड में भू-कानून की जरूरत बताने वाले इन नौजवानों की कहना है कि यदि प्रदेश में भू-कानून नहीं बनाया गया तो स्थानीय लोग धीरे-धीरे अपने जमीनों से महरूम हो जाएंगे और धन्नासेठ इन जमीनों के मालिक बन जाएंगा। वहीं अब प्रदेश के भूमिहीन परिवारों को जमीन आंवटन की व्यवस्था किये जाने की मांग भी प्रस्तावित भू-कानून में उठने लगी है।
केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने प्रस्तावित भू-कानून में भूमिहीनों को घर बनाने और जीवकोपार्जन के लिए जमीन आबंटन की व्यवस्था की जरूरत बताई।
उन्होंने कहा कि अब जब उत्तराखंड में है नए कठोर भू कानून को बनाने की मांग हो रही है तो उस समय हमारा ध्यान जनसंख्या के उस बड़े हिस्से की ओर भी जाना चाहिए जिनके पास मुट्ठी भर याने थोड़ा भी जमीन नहीं है।
उन्होंने बताया कि केदारनाथ विधान सभा के तहत क्योंजा के चारी तोक में अनुसूचित जाति के 15 परिवारों की मकान हाल ही में भू-धंसाव के बाद अब रहने योग्य नहीं है। इन परिवारों को पुनर्वासित किया जाना है लेकिन विडंबना देखिए इनके पास गांव में कहीं और थोड़ी भी जमीन नहीं है, जहां पर ये मकान बना पाए।
उन्होंने बताया कि सालों पहले भी ये भूमि-हीन थे। इस जगह पर जहां पर ही रह रहे हैं, ये जमीन भी इन्हें कभी लगभग 50 साल पहले उत्तर प्रदेश के समय में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा के द्वारा चलाए गए भू-आवंटन के कार्यक्रमों के तहत मिली थी। अब सवाल यह है कि इस जगह पर भू धंसाव हो जाने के बाद इन परिवारों को कैसे और कहां पुनर्वासित किया जाए?
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के युवा भू- कानून की बात कर रहे हो तो यह भी ध्यान में रखना है कि, इस कानून में उन लोगों को भी भू-आवंटन की व्यवस्था हो जो गरीब हैं, भूमि हीन हैं। जिनके पास मकान बनाने तक के लिए भी जमीन नहीं है। तभी यह प्रस्तावित भू-कानून एक संवेदनशील कानून माना जाएगा ।