September 22, 2024

यूपी सरकार ने किया ‘जेल अधिनियम-1894’ में बड़ा संशोधन, जानिए अब किस नए अपराध में भी होगी जेल और लगेगा जुर्माना

उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘जेल अधिनियम-1894’ में एक बड़ा फेरबदल (संशोधन) गुरुवार को कर दिया है. इस फेरबदल के साथ ही अब यूपी की जेलों के अंदर इस बदले हुए कानून के खिलाफ काम करने वाले को सजा और अर्थदंड दोनों ही भुगतने होंगे. दरअसल जिस मद में बदलाव किया गया है या इस बदलाव के साथ जिस अपराध को ‘कानूनी जुर्म’ की श्रेणी में रखा गया है, वो अब तक सिर्फ उत्तर प्रदेश राज्य की जेलों की ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान भर की जेलों की समस्या बना हुआ है. हालांकि इस तरह के बदलाव से उम्मीद है कि राज्य की जेलों में होने वाली गैर कानूनी ‘घुसपैठ’ पर काफी हद तक लगाम लग सकेगी.

प्रिजनर्स एक्ट 1894 में बदलाव के तहत अब राज्य की जेलों में किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है. बदले हुए कानून में तय किया गया है कि जेल के अंदर अगर कोई कैदी किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (मोबाइल, मोबाइल बैटरी, बिना मोबाइल के ही सिम के साथ या फिर किसी भी अन्य संबंधित संचार यंत्र के साथ) के साथ पकड़ा जाता है तो वो बदले हुए कानून के तहत आरोपी माना जाएगा और उसके खिलाफ जेल प्रशासन नए (संशोधित प्रिजनर्स एक्ट 1894 के तहत) संबंधित थाने में मुकदमा लिखाएगा. मामले की जांच बाकायदा थाना पुलिस की तरफ से की जाएगी. आरोपी को गिरफ्तार करके कोर्ट में बहैसियत मुलजिम पेश किया जाएगा. बाकी आपराधिक मामलों की तरह ही आरोपी पर कोर्ट में मुकदमा चलेगा.

जेल के अंदर और बाहर लागू होगा कानून

इतना ही नहीं ये नियम जेल में बंद कैदी की तरफ से जेल के बाहर (कोर्ट में पेशी पर आते-जाते, या फिर इलाज के लिए अस्पताल में या अस्पताल के रास्ते में आते जाते) भी अगर किसी इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस का उपयोग करता पकड़ा गया. तब भी वो संशोधित प्रिजनर्स एक्ट-1894 के उल्लंघन का आरोपी बनाया जाएगा. इस आशय के आदेश गुरुवार को राज्य के गृह विभाग ने जारी कर दिए. आदेश में कहा गया है कि इस जुर्म में पकड़े जाने पर कोर्ट की तरफ से 3 से पांच साल तक की ब-मशक्कत सजा होगी. साथ ही अर्थदंड का प्रावधान भी कर दिया गया है. अर्थदंड के रूप में 20 से लेकर 50 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है, या फिर जेल की सजा और अर्थदंड दोनों भी अदालत आरोपी पर डाल सकती है.

संशोधित जेल अधिनियम-1894 के तहत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में मोबाइल फोन के साथ साथ लैपटॉप, ब्लूटूथ, निकट क्षेत्र संचार (NFC), टैबलेट, निजी कंप्यूटर, पॉमटाप, इंटरनेट, जीपीआरएस, ईमेल, एमएमएस का कैदियों की ओर से इस्तेमाल भी प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है. उत्तर प्रदेश राज्य जेल महानिदेशालय सूत्रों के मुताबिक दरअसल इस संशोधन की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी, क्योंकि जेल में मौजूद अपराधी किसी न किसी तरीके से अपना काम जेल के अंदर से चलाने के लिए अब प्रतिबंधित की गई तमाम इलेट्रॉनिक डिवाइस में से किसी न किसी का जुगाड़ कर ही लेते थे. जेल के अंदर या बाहर आने जाने के वक्त कैदी इन्हीं संचार माध्यमों के इस्तेमाल से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते थे. अक्सर कुछ जेलों में हुए कत्ल-ए-आम तक की नौबत इसी तरह के इलेट्रॉनिक संचार यंत्रों के इस्तेमाल के चलते आ गई.

पहले क्या होता था, अब क्या होगा

जब तक जेल, जिला पुलिस या जिला प्रशासन को भनक लगती तब तक जेल में बैठे-बैठे ही कुख्यात अपराधी इन संचार माध्यमों के इस्तेमाल से अपना काम साध चुके होते थे. एक जेल अधीक्षक के मुताबिक इस बदलाव के बाद अब जेल से मोबाइल पर ही गैंग और सिंडिकेट चलाने वाले अपराधियों पर नकेल कसा जाना तय है. अब जेल में बंद अपराधियों तक इस तरह के संचार उपकरण पहुंचाने वालों को भी भय होगा. इस बात का कि अगर वो मोबाइल सिम या फिर कोई और इस तरह का प्रतिबंधित संचार यंत्र जेल के अंदर या जेल के बाहर मौजूद किसी अपराधी तक पहुंचाते पकड़े गए तो वे भी गिरफ्तार होकर जेल और सजा के भागीदार बना दिए जाएंगे. अब से पहले इस तरह का कुछ नहीं होता था. आरोपी के पास से मोबाइल इत्यादि जब्त करके जेल प्रशासन अपने पास रख लेता था. कुछ दिन जेल प्रशासन अपने स्तर पर जांच पड़ताल करता उसके बाद वो भी खामोश होकर बैठ जाता था.


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