राजनीतिक अस्थिरता के लिए जाने जाएंगे देवभूमि के 22 साल
-गोवा की तरह राजनीतिक रूप से अस्थिर हो गयी देवभूमि
-विकास के गंभीर मुद्दों पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा हुई हाबी
देहरादून। बाइस साल पहले विकास के असंतुलन को दूर करने की मांग के आधार पर बने उत्तराखंड राज्य के सफर में बार-बार अस्थिरता की बेडिय़ां पड़ती रही। राज्य गठन के दिन से हुई असंतोष की शुरुआत का आलम यह है कि 57 के प्रचंड बहुमत की निवर्तमान भाजपा सरकार भी अस्थिरता से अछूती नहीं रही। आलम यह है कि इन वर्षों में उत्तराखंडियों के विकास के बड़े-बड़े सपने, राजनीतिक जोड़तोड़ की भेंट चढ़ते रहे। जिस उत्तराखंड को राजनीतिक स्थिरता की बड़ी जरूरत थी वह गोवा जैसे राजनीतिक रूप से अस्थिर राज्यों की कतार में खड़ा हो गया है।
9 नवंबर 2000 को गठित इस पर्वतीय राज्य की शुरूआत ही राजनीतिक अस्थिरता से हुई। पहली कामचलाऊ सरकार के शपथ ग्रहण का भाजपा के दो दिग्गज नेताओं ने बहिष्कार कर दिया था। तब राजनाथ कैबिनेट में मंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भगत सिंह कोश्यारी ने पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की ताजपोशी के खिलाफ जो बिगुल फूंका, उसकी गूंज आज भी उत्तराखंड की सियासत में सुनायी दे रही है। असंतोष का आलम यह रहा कि पहली ही अंतरिम सरकार में भगत सिंह कोश्यारी को ऐन चुनाव से पहले राज्य की कमान सौपी गयी। राज्य में अब तक चार निर्वाचित सरकारें बन चुकी हैं और अब 2022 में पांचवीं सरकार बनेगी।
चार सरकारों में सिर्फ 2002 से 2007 तक नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी सरकार राजनीतिक अस्थिरता के मामले में अपवाद कही जा सकती है। हालांकि तिवारी के शासन में भी आधा दर्जन ऐसे मौके आये जब उनकी विदाई की चर्चाएं भी चली, लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा करके ही उत्तराखंड से विदा हुए। इसके बाद आयी भाजपा की पहली निर्वाचित सरकार में तीन मुख्यमंत्री बदले। दिलचस्प बात यह है कि बहुमत के आंकड़े से बिना छेड़छाड़ के ये बदलाव पार्टी के भीतर के असंतोष को देखते हुए किये गये। इसके बाद 2012 में तीसरी निर्वाचित सरकार के रूप में कांग्रेस की सरकार आयी तो केदारनाथ आपदा के बाद के बिगड़ते हालात ने कांग्रेस को भी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन को बाध्य कर दिया, कमान हरीश रावत को मिली, लेकिन 2016 में ऐन बजट सत्र के दौरान बड़ी राजनीतिक बगावत हो गयी और नौ विधायकों ने बजट के खिलाफ वोट करके सरकार गिरा दी। इसके बाद कुछ समय राष्ट्रपति शासन लगाया गया, बाद में कोर्ट के आदेश पर हरीश रावत की सरकार बहाल हुई।
राज्य की चौथी विधानसभा की तस्वीर पिछली सरकारों से एकदम अलग रही। भाजपा को अप्रत्याशित रूप से प्रचंड बहुमत के रूप में 57 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस महज 11 पर सिमट गयी। माना जा रहा था कि प्रचंड बहुमत के बाद बनी यह सरकार राज्य के हित में जहां साहसिक फैसले लेगी वहीं राज्य में राजनीतिक स्थिरता भी आएगी, लेकिन हुआ इसके विपरीत, इस सरकार के पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साहसिक फैसलों का पार्टी के भीतर ही विरोध होने लगा। इस परिणाम यह रहा कि त्रिवेंद्र रावत को चार साल का कार्यकाल पूरा करने से महज कुछ दिन पहले हटा दिया गया। इसके बाद तीरथ सिंह रावत व उसके बाद आये तीरथ को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की कमान सौंप दी गयी। इन 22 वर्षों के राजनीतिक सफर को देखकर यह कहा जा सकता है कि आज भाजपा हो या कांग्रेस नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आगे विकास के मुद्दे गौंण होते जा रहे हैं।
सरकारों का कार्यकाल और मुख्यमंत्रियों की संख्या
1—अंतरिम सरकार (2000 इस—2002) नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी
2.पहली निर्वाचित सरकार (2002—07)
नारायण दत्त तिवारी
3.दूसरी निर्वाचित सरकार (2007—12)
बीसी खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक और पुन: बीसी खंडूड़ी
4.तीसरी निर्वाचित सरकार (2022 दो—17)
विजय बहुगुणा, हरीश रावत, राष्ट्रपति शासन फिर हरीश रावत।
5. चौथी निर्वाचित सरकार (2017—2022) त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत व अंब में पुष्कर सिंह धामी।