सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट में बड़ा दावा, रद्द कृषि कानून से 86% किसान संगठन थे खुश
तीन कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति इसे पूरी तरह निरस्त नहीं करने के पक्ष में थी. समिति ने इसके बजाय निर्धारित मूल्य पर फसलों की खरीद का अधिकार राज्यों को देने और आवश्यक वस्तु कानून को खत्म करने का सुझाव दिया था. समिति के तीन सदस्यों में से एक ने सोमवार को रिपोर्ट जारी करते हुए यह बात कही. पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने कहा कि उन्होंने तीन मौकों पर समिति की रिपोर्ट जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने के कारण वह इसे खुद जारी कर रहे हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस में समिति के दो अन्य सदस्य अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी तथा कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी मौजूद नहीं थे.
समिति ने तीन कृषि कानूनों पर 19 मार्च 2021 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं, जिसमें अन्य बातों के अलावा किसानों को सरकारी मंडियों के बाहर निजी कंपनियों को कृषि उपज बेचने की अनुमति देने की बात कही गई. उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल नवंबर में नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था. घनवट ने कहा कि समिति ने राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को कानूनी रूप देने की स्वतंत्रता समेत कानूनों में कई बदलावों का भी सुझाव दिया था.
समिति ने यह भी सुझाव दिया था कि ‘ओपन एंडेड’ खरीद नीति को बंद कर दिया जाना चाहिए और एक मॉडल अनुबंध समझौता तैयार किया जाना चाहिए. स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट ने कहा, ‘मैं आज यह रिपोर्ट जारी कर रहा हूं. तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया गया है. इसलिए अब इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है.’ घनवट के अनुसार, रिपोर्ट से भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी.
केवल 13.3 प्रतिशत हितधारक तीन कानूनों के पक्ष में नहीं थे
हितधारकों के साथ समिति की द्विपक्षीय बातचीत से जाहिर हुआ कि केवल 13.3 प्रतिशत हितधारक तीन कानूनों के पक्ष में नहीं थे. घनवट ने कहा, ‘3.3 करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 85.7 प्रतिशत किसान संगठनों ने कानूनों का समर्थन किया.’ ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्राप्त जवाब से जाहिर हुआ कि लगभग दो-तिहाई उत्तरदाता कानूनों के पक्ष में थे. ई-मेल के माध्यम से प्राप्त जवाब से यह भी पता चला कि अधिकतर लोग कानूनों का समर्थन करते हैं.
40 संगठनों ने बार-बार अनुरोध करने के बावजूद नहीं की अपनी राय प्रस्तुत
घनवट ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले आंदोलन करने वाले 40 संगठनों ने बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अपनी राय प्रस्तुत नहीं की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के सुधारों के लाभों के बारे में विरोध करने वाले किसानों को नहीं समझा सकी. निरस्त किए गए तीन कृषि कानून – कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) कानून थे. तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 किसान संगठनों की प्रमुख मांगों में से एक था.