September 22, 2024

पालिस्टर के राष्ट्रीय ध्वज से क्या नुकसान होगा ?

मनोज रावत

प्रतीक चाहे राष्ट्रीय हों या धार्मिक जब इनके साथ परम्परा और पवित्रता जुड़ती है तभी इनकी मर्यादा और बड़ती है। राष्ट्रीय ध्वज के साथ भी ऐसा ही था।

पहले नियम था कि , राष्ट्रीय ध्वज हाथ से कता हुआ और हाथ से बनाए गए ऊनी/सूती/सिल्क के कपड़े से बना होगा। इसको बनाने को लाइसैंस पहले देश में केवल ‘‘कर्नाटक खादी ग्रामउद्योग संयुक्त संघ’’ के0के0जी0एस0एस0 को ही दिया गया था। के0के0जी0एस0एस0 का मुख्यालय कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हुबली शहर में है।

के0के0जी0एस0एस0 कर्नाटक और देश के अन्य स्थानों पर बहुत ही पवित्रता और परम्परागत ढ़ग से राष्ट्रीय ध्वजों का निर्माण करता है। आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी स्वयं हुबली में के0के0जी0एस0एस0 के मुख्यालय गऐ और हाथ के बने राष्ट्रीय ध्वज को बनाने की प्रक्रिया देखी और खादी को समर्थन दिया।

30 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृृत्व वाली केन्द्र सरकार ने इस नियम में परिवर्तन किया गया। अब हाथ के अलावा राष्ट्रीय ध्वज को मशीन से भी बनाया जा सकता है । इसके अलावा अब ऊनी / सूती /सिल्क के कपडे़ के अलावा अब कपास और पोलिस्टर के कपड़े का प्रयोग भी राष्ट्रीय ध्वज को बनाने में किया जा सकता है।

देश भर में बहस छिड़ी है कि, आखिर क्यों राष्ट्रीय ध्वज पोलिस्टर का नहीं हो सकता है ? के0के0जी0एस0एस0 के झंडों के निर्माण से लाखों लोगों को रोजगार मिलता था ये सभी गरीब तबके के होते थे अब पालिस्टर और वह भी जी0एस0टी0 मुक्त करने से इसका फायदा किसको मिलेगा यह तो देश में बच्चा भी बता सकता है।

फिलहाल पालिस्टर भक्त याने अंध भक्त यह तर्क दे रहे हैं कि , खादी का तिरंगा मंहगा होता था और बनने में देर लगती थी देश के नागरिकों को सस्ता और आसानी से बनने वाला ध्वज खरीदने का अधिकार है।

अब ‘‘ क्यों राष्ट्रीय और धार्मिक प्रतीकों के साथ परम्परा और पवित्रता जुड़ने से उनका महत्व और उनके प्रति आदर बड़ता है ’’ को समझने के लिए दो उदाहरण काफी हैं । हम देवभूमि निवासी हर साल बदरीनाथ जी से जुड़ी ‘‘ गाड़ू घडे़’’ और ‘‘घृृत-कम्बल’’ की परम्परा को देखते हैं।

गाड़ू घड़ा परम्परा में नरेन्द्रनगर में पूर्व गढ़वाल नरेश के राजमहल में सौभाग्यवती महिलाऐं तिल का तेल निकालती हैं जो साल भर भगवान बदरीनारायण के अभिषेख में प्रयोग होता है। तिल को निकालने का तरीका आज भी सैकड़ों साल पुराना है । याने तिल को कोयलों में ही हल्का भूनने से लेकर तेल निकालने तक का हर काम हाथ से होता है।

तेल निकालने की पूरी प्रक्रिया में पवित्रता झलकती है कुछ सालों से यह एक मेले का रुप ले चुका है राज्य सरकार में इच्छा शक्ति हो तो इस परम्परा को देखने हर साल हजारों लोग आ सकते हैं। परम्परागत तरीके से सम्पन्न होने वाली इस रस्म और इससे निकले तेल को बहुत सम्मान मिलता है।इस तेल को सम्मान के साथ बल्कि अब समारोह के रुप में कपाट खुलने से पहले बदरीनाथ पंहुचाया जाता है।

इसी तरह घृृत-कम्बल रस्म में कपाट बंद होने से पहले सीमांत गांव माणा की कुंवारी कन्याऐं अपने हाथ से भगवान बदरीनारायण के लिए ऊन का एक वस्त्र बनाती हैं। इस वस्त्र को घी के साथ कपाट बंद होते समय भगवान बदरीनारायण की मूर्ति पर लपेटा जाता है। शीतकाल में छह महिने यही ‘‘घृृत कम्बल ’’ भगवान नारायण का वस्त्र होता है और कपाट खुलते समय इसी वस्त्र को सबसे बड़ा प्रसाद भी माना जाता है।

अब तर्क देने वाले कह सकते हैं कि , क्या जरुरत पुराने तरीके और पवित्रता से तेल निकालने का इतना तेल तो कुछ सौ रुपयों में बाजार में मिल सकता है ? कुछ विद्धान ये भी कह सकते हैं कि , मोटे ऊन के कम्बल को कुंवारी कन्याओं से बनवाने के बजाय बाजार में आस्ट्रेलियन ऊन का बेहद महीन ऊनी कपड़ा प्रयोग किया जा सकता है।

परंतु याद रखिए जिस दिन तक परम्परा और पवित्रता के साथ ‘‘गाड़ू घड़ें’’ में बदरीनाथ भेजा जा रहा तिलों को तेल और घृृत कम्बल बनाया जायेगा उसी दिन तक उनका महत्व होगा और लोग उनकी पवित्रता की रक्षा करेंगें।

यही हाल भारत के राष्ट्रीय ध्वज का है। जब तक यह ध्वज हाथ से बने खादी के कपड़ें से बनाया जाता था और कुछ मंहगा था तब तक हर व्यक्ति और संस्था इसे बहुत ही सम्मान से प्रयोग करती थी और पवित्रता से संभालती थी।

व्यक्ति और संस्थाओं के पास आज भी संदूकों में पुराने घ्वज जो समय के साथ कुछ फट गए हैं को सुरक्षित रखा जाता है। आज तक मैंने या किसी ने भी खादी के राष्ट्रीय ध्वज को अपवित्र तरीके से रखा या प्रयोग होता नहीं देखा है। लेकिन अब पोलिस्टर के 25 रुपए तक में मिल ध्वजों को लोग किस रुप में लेंगे ये आने वाला समय बतायेगा।

परंतु मैंने इसकी आहट आज उत्तराखण्ड के एक जिले में एक राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम में एक जनप्रतिनिधि को राष्ट्रीय ध्वजों को गट्ठर बना कर देने का फोटो देख कर महसूस कर ली है।

देश में कुछ सालों में बहुत परम्पराऐं टूटी हैं अब देश को भी कुछ दिनों में ये भी पता चल जायेगा कि मोदी जी के नेतृृत्व वाली केन्द्र सरकार ने देश के राष्ट्रीय घ्वज को भी नहीं छोड़ा है।

पूर्व विधायक केदारनाथ मनोज रावत के फेसबुक से साभार


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