September 22, 2024

केन्द्रीय एजेंसी की देखरेख में हो तमाम संदेहास्पद भर्तियों की जांचः भाकपा माले

देहरादून। भाकपा माले के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने यूकेएसएससी पेपर लीक मामले की जांच किसी केन्द्रीय एजेंसी से कराये जाने की मांग की है। प्रेस बयान जारी कर उन्होंने कहा कि यूकेएसएससी पेपर लीक मामले में जिन भी लोगों की गिरफ्तारी हुई और जिन्हें मास्टरमाइंड बताया जा रहे है वे साफ तौर पर छोटे प्यादे ही नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से शासन-सत्ता में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के करीबियों की नियुक्तियां हुई है। उनकी जांच करना राज्य पुलिस के बस की बात नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से शुरू हुई नियुक्तियों में घोटाले की बात राज्य की विधानसभा तक जा पहुंची है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, सचिवालय, विधानसभा, ऐसी कोई जगह नहीं, जहां हुई नियुक्तियाँ संदेह के घेरे में ना हों। यह राज्य के लिए एक दुखद और विडंबना की स्थिति है। वोट तो डबल इंजन के लिए मांगा गया, लेकिन ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार के डिब्बे खींचने वाले इंजनों की तादाद बहुत अधिक थी।

अब तक इस घोटाले में जिन भी लोगों की गिरफ्तारी हुई है और जिन्हें मास्टरमाइंड बताया गया है, वे साफ तौर पर छोटे प्यादे ही नजर आते हैं. यह तो कहा जा रहा है कि ये नियुक्तियाँ करवाने के लिए अभ्यर्थियों से पैसा वसूलते थे, लेकिन इस बात का जवाब अभी भी नहीं मिला है कि तंत्र के भीतर कौन लोग थे, जिन तक ये वसूली गयी धनराशि पहुंचाते थे।

अब राज्य की विधानसभा में भी नियुक्तियों में गड़बड़ियों का खुलासा हो रहा है। मंत्रीगणों के पीआरओ और रिश्तेदारों से लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के स्टाफ के लोगों के नाम तक विधानसभा में हुई गुपचुप नियुक्तियों के लाभार्थियों के रूप में आए हैं। जिन भी मंत्रीगणों और मुख्यमंत्री के स्टाफ पर संदेह की सुई घूमी है, नैतिकता का तक़ाज़ा यह है कि उन्हें अपने पदों से विरत हो जाना चाहिए। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने जिस तरह से इन नियुक्तियों को अध्यक्ष के विशेषाधिकार के नाम पर जायज ठहराने की कोशिश की है, वह निंदनीय है। मुख्यमंत्री को उन्हें तत्काल पद से हटाना चाहिए।

मुख्यमंत्री के स्टाफ और मंत्रीगणों के स्टाफ जैसे उच्च पदस्थ लोगों के करीबियों के नाम आने से यह साफ हो जाता है कि इन बड़े लोगों की जांच कर पाना राज्य की पुलिस के बस से बाहर की बात है। पुलिस के दरोगाओं की भर्ती भी संदेह के घेरे में है। इसलिए अब राज्य से बाहर की केन्द्रीय एजेंसी यथा सीबीआई से तमाम संदेहास्पद भर्तियों की जांच, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में करवायी जानी चाहिए। तभी इन तमाम भर्तियों में गड़बड़ियों के पीछे की बड़ी मछलियों को सलाखों के पीछे भेजा जा सकेगा। अगर उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी की सरकार पुलिस से ही जांच पर ज़ोर देती है तो इसका स्पष्ट अर्थ होगा कि ऐसा सिर्फ खानापूर्ति के लिए किया जा रहा है और वास्तविक दोषियों को पकड़ना उसका मकसद नहीं है।

 


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