September 23, 2024

अगर अशोक गहलोत बनें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, तो 8 चुनौतियां होंगी उनके सामने?

कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा? इस सवाल पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है. इस रेस में सबसे आगे जिनका नाम आ रहा है वो हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. अध्यक्ष पद के लिए पार्टी अपने सबसे कुशल रणनीतिकारों में एक अशोक गहलोत पर दांव खेलना चाहती है.

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की तारीख तय कर दी गई है. यह चुनाव 17 अक्टूबर को होगा और 19 अक्टूबर को मतगणना होगी. इसके लिए 22 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी होगा. चुनाव के लिए नामांकन 24 सितंबर से 30 सितंबर तक सुबह 11 से 3 बजे तक होगा. सभी प्रदेश कार्यालयों में 17 अक्टूबर को सुबह 10 से 4 बजे तक वोटिंग होगी और 19 अक्टूबर को काउंटिंग के बाद नतीजे सामने आएंगे.

ऐसा माना जा रहा है कि सोनिया गांधी चाहती हैं कि राजस्थान के CM गहलोत ही इस पद की जिम्मेदारी संभालें. हालांकि इस रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम भी सामने आ रहा है. लेकिन उन्होंने कई मौकों पर इस पद को संभालने से इनकार कर दिया था. राहुल गांधी भी अध्यक्ष बनने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

लेकिन कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी उससे सामने देश की सबसे पुरानी पार्टी में फिर से नई जान फूंकने का काम आसान नहीं है. क्योंकि यूपी सहित कई राज्यों में पार्टी का संगठन कमजोर हो चुका है.

अशोक गहलोत के सामने क्या होंगी चुनौतियां
  • ABP न्यूज से बातचीत में राजस्थान के स्थानीय पत्रकार रहीम खान ने कहा कि अगर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालते हैं तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती होगी, लोकसभा चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना भी बड़ी चुनौती होगी. संगठन कमजोर हो चुका है, आम कार्यकर्ता निराश हैं, नीचे तक संगठन खड़ा करना और कार्यकर्ताओं में जोश जगाना बड़ी चुनौती है.
  • राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत एक हिंदी भाषी राज्य के जननेता हैं और उन्हें अध्यक्ष बनाना हिंदी पट्टी में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक अच्छा कदम होगा. अगर वह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बनते हैं तो उनकी सबसे बड़ी और पहली चुनौती भी यही होगी. कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसने देश में करीब 6 दशकों तक शासन किया है.  कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुवाहाटी से लेकर गांधीनगर तक चुनाव जीतने वाली इस पार्टी की हालत फिलहाल यह है कि अगर कांग्रेस सभी राज्यों में अपने प्रदर्शन को नहीं सुधारती है तो आने वाले कुछ चुनाव के बाद पार्टी और भी बड़ी चुनौती से जूझेगी.
  • पार्टी के अंदर ही असंतुष्ट नेताओं के समूह जी-23 को साधना भी अशोक गहलोत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. ये नेता इस समय हमेशा ही सक्रिय नेतृत्व और व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग करते रहे हैं. इसी ग्रुप में शामिल वरिष्ठ कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का कहना है कि अगर कांग्रेस में ‘कठपुतली अध्यक्ष’ बना तो पार्टी बच नहीं पाएगी. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका इशारा किस ओर है.
  • अशोक गहलोत एक ओबीसी नेता हैं और माली समुदाय से आते हैं. जो उत्तर भारत, मध्य और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में बड़ी संख्या में मौजूद है. वहीं बीजेपी ने हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव से लेकर राज्यों के चुनाव तक जो अपनी बैकवर्ड पार्टी की इमेज बना ली है उसे तोड़ना अशोक गहलोत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. वो चाहेंगे कि कांग्रेस को पिछड़ों और दलित समुदाय का वोट ज्यादा से ज्यादा मिले. लेकिन इसके साथ ही उनके सामने खुद अपने ही राज्य राजस्थान में क्षत्रिय, जाट और ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली राजनीति में भी गहरी पैठ बनाए रखना होगा.
  • अगर अशोक गहलोत अध्यक्ष पद संभाल लेते हैं तो राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा? क्या वो सचिन पायलट को इस पद पर बैठाना स्वीकार करेंगे.  2020 में पायलट के ‘विद्रोह’ को देखते हुए, उनके समर्थक विधायकों को मनाना भी बड़ी चुनौती होगी. चुनावी साल में किसी भी तरह का असंतोष पार्टी के लिए ठीक साबित नहीं होगा.
  • साल 2019 में देश के सभी राज्यों को मिलाकर कांग्रेस के 5 मुख्यमंत्री थे और 2022 तक यहां केवल तीन मुख्यमंत्री बचे हैं. मतलब साफ है कि कांग्रेस का ग्राफ गिर रहा है. दूसरी ओर पंजाब के बाद गुजरात और हिमाचल में भी आम आदमी पार्टी उसकी जगह लेने के लिए पूरी तरह से तैयार है.
  •  राजनीतिक विश्लेषक भी इस बात को मानते हैं कि आम आदमी पार्टी के गुजरात में चुनाव लड़ने यदि किसी को सबसे अधिक घाटा होगा तो वह कांग्रेस को ही होगा. आम आदमी पार्टी ने जहां भी चुनाव लड़ा है वहां, उसने कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाई है. ऐसे में चुनाव में बीजेपी विरोधी वोटों के बंटने का फायदा सीधे-सीधे सत्ताधारी दल को होगा.
  • दिल्ली में पहले अनधिकृत कालोनियों, झुग्गी-झोपड़ी और कम आय वर्ग वाले लोग कांग्रेस का वोट बैंक माने जाते थे. केजरीवाल ने मुफ्त बिजली, पानी और मोहल्ला क्लिनिक के दम पर कांग्रेस से उसका दिल्ली छीन ली का किला छीन लिया. इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को पंजाब में भी सत्ता से बेदखल कर दिया.

अशोक गहलोत हैं कुशल रणनीतिकार

कांग्रेस के ज्यादातर बागी नेता गहलोत की पीढ़ी के ही है, जिनके साथ गहलोत ने कभी ना कभी काम किया हुआ है और सबसे गहलोत के दोस्ताना संबंध रहे हैं. साल 2017 हुए में गुजरात चुनावों के दौरान गहलोत को अहम जिम्मेदारी दी गई जिसके बाद उन्होंने कुछ ही समय में गुजरात में कांग्रेस को मुकाबले में ला खड़ा किया. वहीं राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की लगभग हारी हुई बाजी को गहलोत ने पलट दिया.

इसके साथ ही कांग्रेस में संगठन महासचिव रहने के दौरान विधानसभा का चुनाव लड़कर और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने कई राजनीतिक पंडितों को हैरान किया.

अशोक गहलोत शुरूआत से ही राजस्थान के साथ-साथ कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में भी बराबर सक्रिय रहे हैं. माना जाता है कि कांग्रेस शासित राज्यों में किसी भी तरह के सियासी संकट में गहलोत को याद किया जाता है.

अशोक गहलोत गांधी परिवार के इतने क़रीबी कैसे हैं?

1971 में हुए भारत पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के कैंप को संभालते हुए ही गहलोत की इंदिरा गांधी से नजदीकियां बढ़ी, तब गहलोत एनएसयूआई में हुआ करते थे. गहलोत 1973 से 1979 के बीच राजस्थान NSUI के अध्यक्ष रहे, इसके बाद 1979 से 1982 के बीच जोधपुर शहर जिला कांग्रेस कमेटी की कमान संभाली. वहीं 1982 में अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रदेश महासचिव बने. गहलोत का सियासी सितारा जल्द ही चमक उठा और वह बहुत छोटी उम्र में ही राजनीति के शिखर तक पहुंच गए.

इंदिरा गांधी सरकार के दौरान गहलोत तीन बार केंद्रीय मंत्री भी रहे. गहलोत अपने राजनीतिक जीवन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा के अलावा राजीव गांधी और बाद में नरसिम्हा राव कैबिनेट में मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. कहा जाता है कि गहलोत की राजनीतिक समझ के चलते उनके विरोधी पार्टियों में भी अच्छे संबंध रहे हैं. वर्तमान में देश में कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं में गहलोत को ही सबसे बड़े संकटमोचक के तौर पर माना जाता है. गौरतलब है कि पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी के हर राजनीतिक संकट में गहलोत ने अहम भूमिका निभाई है.

बगावत को थामने में माहिर

अशोक गहलोत के तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजस्थान में सचिन पायलट के बागी होने के बाद सरकार राजनीतिक संकट में घिर गई इस दौरान गहलोत ने विधायकों को एकजुट रखते हुए कुशल राजनीति का परिचय दिया. पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बगावत करने के बाद भी गहलोत ने सरकार नहीं गिरने दी.

इस दौरान गहलोत ने अपने सभी विधायकों को लेकर जयपुर-जोधपुर के चक्कर लगाए और फिर होटलों में बाड़ेबंदी भी की. वहीं गहलोत सरकार के विधायकों के खरीद-फरोख्त की खबरें भी सामने आई लेकिन गहलोत ने आलाकमान से बातचीत का चैनल जारी रखते हुए अंत में सचिन पायलट को मना लिया. गांधी परिवार के कहने पर अशोक गहलोत इस्तीफा भी दे सकते हैं.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल

इन सब बातों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अशोक गहलोत राजस्थान के सीएम पद से इस्तीफा देने के लिए राजी होंगे? गहलोत को पूर्व में भी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने मुख्य रूप से राजस्थान से बाहर जाने की अनिच्छा जाहिर की थी. राजस्थान में कांग्रेस सरकार की अनिश्चितता ने गहलोत के लिए राज्य में बने रहना आवश्यक बना दिया है. 71 साल की उम्र में गहलोत को लगता है कि युवा नेता को कमान सौंपने से पहले उनके पास राजस्थान में करने के लिए अभी भी बहुत कुछ है. जाहिर है उनका निशाना सचिन पायलट हैं.

वहीं पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं, ‘ गहलोत के तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजस्थान में सचिन पायलट के बागी होने के बाद सरकार राजनीतिक संकट में घिर गई इस दौरान गहलोत ने विधायकों को एकजुट रखते हुए कुशल राजनीति का परिचय दिया. पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बगावत करने के बाद गहलोत ने सरकार नहीं गिरने दी. इस दौरान गहलोत ने अपने सभी विधायकों को लेकर जयपुर-जोधपुर के चक्कर लगाए और फिर होटलों में बाड़ेबंदी भी की. वहीं गहलोत सरकार के विधायकों के खरीद-फरोख्त की खबरें भी सामने आई लेकिन गहलोत ने आलाकमान से बातचीत का चैनल जारी रखते हुए अंत में सचिन पायलट को मना लिया. गांधी परिवार के कहने पर अशोक गहलोत इस्तीफा भी दे सकते हैं’.


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