प्रेमचंद अग्रवाल के समर्थन में आये कुंजवाल! कहा-अग्रवाल द्वारा की गई सभी नियुक्तियां हैं वैध
देहरादून। उत्तराखण्ड विधानसभा में इन दिनों चेहेतों और रिश्तेदारों को नौकरी पर एडजस्ट का मुद्दा गरमाया हुआ है। हालांकि उत्तराखंड विधानसभा में राज्य बनने के बाद से ही इस तरह की नियुक्तियां होती आई हैं। और इसे विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार बताया गया है। पहले भी रसूखदार नेता और अफसरों केे नाते रिश्तेदारों का विधानसभा में नियुक्त किये जाने के मामले राजनीति के हिसाब से जब-तब उठते रहे हैं। लेकिन इस बार पक्ष-विपक्ष के नेताआंे की भूमिका कठघरे में खड़ी है। इन नामों में कांग्रेसी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और भाजपा नेता और मौजूदा कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल सबसे ज्यादा चर्चा में हैं।
दरअसल इसकी शुरूआत यूकेएसएसएससी में पेपर मामले से शुरू है। इस भर्ती के शुरूआत से इसमें बेरोजगार संघ धांधली होने के आरोप लगाते रहे। लेकिन आयोग में बैठे जिम्मेदार इसको नकारते रहे। लेकिन मामला बढ़ जाने के बाद प्रदेश के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच को एसटीएफ को सौंपने का फैसला लिया। एसटीएफ ने जांच के बाद यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में अब तक तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है। लेकिन बेरोजगार संघ से जुड़े युवा इस जांच से संतुष्ट नहीं है। उनका कहना है कि आयोग में बैठे जिम्मेदारों से अभी तक एसटीएफ ने कोई पूछताछ तक नहीं की है। हालांकि इस बीच उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वहीं आयोग के सचिव संतोष बडोनी को सचिव पद से हटा दिया है। लेकिन बेरोजगार संघ इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग पर अड़ा हुआ है।
प्रदेश में अपनी जमीन तलाश रही कांग्रेस को लगा कि ये उनके वापसी आने के लिए बड़ा मुद्दा हो सकता है, लिहाजा विपक्षी कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश भी की। और यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले को लेकर सदन से लेकर सड़क तक प्रदर्शन करने लगी। लेकिन भर्ती मामले में यूकेएसएसएसएसी से उठी चिंगारी विधान सभा में हुई अब तक की भर्तियों तक पहुंच गई। जिसके बाद पक्ष-विपक्ष की सत्ता में रहने की दौरान भूमिका की परतें एक-एक कर हटने लगी। यहां तक बीजेपी नेताओं में भर्ती को लेकर अंदरूनी गैंगवार सी छिड़ गई है। वे खुद को इस मामले में पाक-साफ बतला रहे है जबकि अपनी ही पार्टी के दूसरों जिम्मेदार नेताओं में सवालिया निशान लगाने से नहीं चूक रहे हैं।
कांग्रेस का भी वहीं हाल है। यूकेएसएसएसी लीक मामले में सत्ताधारी बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने वाली कांग्रेसी विधानसभा में हुई नियुक्तियों के मामले में कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। बात-बात पर सोशल मीडिया में बयान जारी करने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत भी अपने करीबी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल का विधानसभा में मनचाही भर्ती करने के मामले को चुप्पी साधे हुए हैं।
उत्तराखण्ड में अभी तक बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा राज करती आई है। ये पहली मर्तबा है जब बीजेपी लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही है। विधानसभा अध्यक्षों के बात करें तो अभी तक प्रकाश पंत, यशपाल आर्य, हरबंश कपूर, गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल, अपनी पार्टी की सरकारों के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं। मौजूदा समय में ऋतु खण्डू़ड़ी विधानसभा अध्यक्षा हैं। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष रहते जो नाम इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में वो हैं कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल और भाजपा के प्रेमचंद अग्रवाल।
मीडिया के खबरों में प्रेमचंद अग्रवाल और गोविंद सिंह कुंजवाल पर स्पीकर रहते अपने चहेतो और करीबी रिश्तेदारों को विधानसभा में नियुक्त किये जाने के आरोप लग रहे हैं।
विधानसभा में स्पीकर रहते की गई नियुक्तियों के मामले में प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि जो भी भर्तियों हुई हैं वे टेम्परी है, आश्यकतानुसार और नियमानुसार की गई हैं। और ये एक स्पीकर का विशेषाधिकार है। इनकी जांच का सवाल ही नहीं होता है।
कांग्रेसी गोविंद सिंह कुंजवाल ने विधानसभा अध्यक्ष रहते खुद पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए मीडिया को बताया ‘मेरे ऊपर आरोप लगाये गये है मैने अपने लड़के और बहु को लगाया है। इस प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी अपने बहू लड़के को लगाया है। ये प्रारम्भ से परिपाटी चली है। मुख्यमंत्री के सिफारिश में लोग लगे हैं। उनके रिश्तेदार लगे हैं। मैंने 158 लोगों को नियुक्ति किया है। बहुत से नेताओं और अधिकारियों की सिफारिश पर मैंने ये नियुक्तियां की है।
यहां तक की कांग्रेसी गोविंद सिंह कुंजवाल, कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा स्पीकर रहते विधानसभा में की गई भर्तियों को जायज बता रहे हैं। कंुजवाल के मुताबिक प्रेमचंद अग्रवाल ने जो भी नियुक्तियां की हैं, वे सभी वैध हैं।