September 22, 2024

हिजाब विवादः PFI की बड़ी साजिश का हिस्सा बने छात्र, सुप्रीम कोर्ट में बोले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता

कर्नाटक के हिजाब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान आज मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अब तक स्कूलों में अनिवार्य अनुशासन का ईमानदारी से पालन किया जा रहा था. फिर सोशल मीडिया पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) नाम के एक संस्था ने इस पर आंदोलन शुरू कर दिया. इस अभियान में छात्र बड़ी साजिश का हिस्सा बन गए और उनके निर्देश पर काम कर रहे थे.

साजिश का हिस्सा बन गए छात्रः PFI

उन्होंने कहा कि इस साल 2022 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की ओर से सोशल मीडिया पर हिजाब पहनना शुरू करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया गया. इसमें छात्र एक बड़ी साजिश का हिस्सा बन गए और छात्र उनके निर्देश पर काम कर रहे थे. उन्होंने हिजाब विवाद के पीछे साजिश की बात कहते हुए कहा कि हिजाब पहनने की मांग एक साजिश का हिस्सा है.

हिजाब वाली याचिका में कर्नाटक सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हो रहे एसजी तुषार मेहता ने कहा कि इसमें दो मुख्य बातें हैं. पहला, 2021 तक किसी भी छात्रा ने हिजाब नहीं पहना था और न ही कभी भी इस तरह का कोई सवाल उठाया गया. दूसरा, महज हिजाब को प्रतिबंधित करने वाले सर्कुलर का विरोध करना गलत होगा. अगर अन्य समुदाय भगवा शॉल लेकर आएं तो वो भी प्रतिबंधित है.

आज पूरी हो सकती है सुनवाई

पिछले हफ्ते 15 सितंबर गुरुवार को हिजाब मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम स्कूल के यूनिफॉर्म तय करने के अधिकार का उपयोग करने से नहीं रोक सकते. तब सुनवाई की समाप्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 20 सितंबर तक यानी मंगलवार तक मामले की सुनवाई पूरी कर ली जाएगी.

इससे पहले हिजाब को मुसलमानों की ‘पहचान’ करार देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कल सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कर्नाटक राज्य के अधिकारियों के विभिन्न हथकंडों से ‘अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिए पर रखने का एक तरीका’ दिखता है.

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ चल रही सुनवाई

शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया गया था. दवे ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ से कहा कि यह वर्दी का मामला नहीं है और वह यह बताना चाहेंगे कि राज्य के अधिकारियों के विभिन्न हथकंडों से ‘अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिए पर रखने का एक तरीका’ दिखता है.

यह तर्क देते हुए कि देश उदार परंपराओं और धार्मिक विश्वासों पर बना है, कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए दुष्यंत दवे ने कहा, “आज जिस तरह का माहौल देखा जा रहा है वह उदार कहलाने से बहुत दूर है.”


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