September 22, 2024

उत्तराखण्डः भाकपा माले ने कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को बर्खास्त करने की उठाई मांग

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किए गए कर्मचारियों के बर्खास्तगी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी। कोर्ट ने कर्मचारियों की विशेष याचिका को निरस्त कर दिया। बता दें कि इससे पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने भी विधानसभा कर्मचारियों को बर्खास्त करने के विधानसभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भाकपा माले के प्रदेश सचिव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्तराखंड विधानसभा के बर्खास्त तदर्थ कर्मचारियों की याचिका खारिज किए जाने से यह पुनः स्पष्ट है कि ये नियुक्तियाँ नियम विरुद्ध हुई थी। उच्च न्यायालय की डबल बेंच के बाद उच्चतम न्यायालय के इस फैसले ने विधानसभा में नियुक्तियों में धांधली होने की बात पर मोहर लगा दी है।

इस फैसले के बाद तत्काल उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए, जिन्होंने ये नियम विरुद्ध नियुक्तियाँ की, जिन्होंने बिना सार्वजनिक विज्ञप्ति और अन्य प्रक्रिया के, अयोग्य, अक्षम लोगों की सैकड़ों की संख्या में विधानसभा में नियुक्ति की. विधानसभा में अयोग्य, अक्षम लोगों की नियुक्ति और उत्तराखंड के योग्य युवाओं से योग्यता और दक्षता के आधार पर विधानसभा में नियुक्ति पाने का अवसर छीनने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जानी चाहिए।

यह विचित्र विरोधाभास है कि उत्तराखंड सरकार और विधानसभा अध्यक्ष, नियम विरुद्ध नियुक्ति पाये कर्मचारियों की बर्खास्तगी का श्रेय तो लेना चाहते हैं, लेकिन इन नियम विरुद्ध नियुक्तियों को करने वालों के खिलाफ कार्यवाही के सवाल पर मुंह नहीं खोलना चाहते। यह हैरत की बात है कि जिन प्रेमचंद्र अग्रवाल ने विधानसभा अध्यक्ष रहते, विधानसभा में बैकडोर से नियम विरुद्ध भर्तियाँ की, वे वर्तमान सरकार में संसदीय कार्य,वित्त, शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने हुए हैं। यह भ्रष्टाचार का फल पाने वालों के खिलाफ कार्यवाही और भ्रष्टाचार का पेड़ लगाने वालों का संरक्षण करने जैसा कृत्य है।

आंदोलकारी इन्द्रेश मैखरी ने मांग की है कि प्रेमचंद्र अग्रवाल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाय। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेमचंद्र अग्रवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाये. साथ ही उत्तराखंड की विधानसभा में वर्ष 2000 से 2016 की बीच में हुई बैकडोर नियुक्तियों के मामले में भी नियुक्ति पाने और नियुक्ति करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाये।


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