September 22, 2024

अडानी को घेरने में विपक्ष ही बिखर गया, सबके अलग-अलग सुर!

उद्योगपति गौतम अडानी पर आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर विपक्ष सरकार से जवाब तो मांग रहा है लेकिन सभी विपक्षी पार्टियों के सुर अलग-अलग नजर आ रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस ने संसद में हंगामे को लेकर कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. इधर, कांग्रेस ने संसद नहीं चलने देने का ठीकरा आप और के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस पर फोड़ दिया है.

विपक्ष में फूट, 2 बड़े बयान…

1. अधीर रंजन चौधरी, नेता कांग्रेस- गौतम अडानी मुद्दे पर ममता बनर्जी को चुप्प रहने के निर्देश मिले होंगे. दीदी शायद ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहेंगी, जिससे अडानी समूह के हितों को नुकसान पहुंचे क्योंकि अडानी के पास ताजपुर बंदरगाह परियोजना का ठेका है.

2. डेरेक ओ ब्रायन, नेता टीएमसी- एकता के लिबास के नीचे भरोसे की कमी है. यहां एक पार्टी में श्रेष्ठता का दंभ है. किसी मुद्दे पर रणनीति तय करने का अधिकार सभी पार्टी के पास है. तृणमूल कांग्रेस संसद में चर्चा चाहती है, जिसे कांग्रेस नहीं होने दे रही है.

 

अडानी मामले में क्यों बिखरा विपक्ष, 3 प्वॉइंट्स

1. जेपीसी से जांच की मांग पर- कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिवसेना समेत कई विपक्षी पार्टियां अडानी मामले में जांच संसद की संयुक्त कमेटी से कराने की मांग कर रही है.

कांग्रेस का कहना है कि यह मामला जनता के पैसे घोटाले से लेकर शेयर बाजार में फर्जीवाड़ा करने का है. ऐसे में सबूत जुटाने के लिए जेपीसी की ही जरूरत पड़ेगी. इसलिए सरकार जेपीसी से जांच कराने का प्रस्ताव सदन में लाए.

जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी संयुक्त संसदीय कमेटी राज्यसभा और लोकसभा सांसदों की एक अस्थाई कमेटी होती है, जो किसी विशेष मामलों की जांच के लिए बनाई जाती है. आजादी के बाद से लेकर अब तक भारत में 6 बार जेपीसी बनाई जा चुकी है.

विपक्ष जेपीसी से जांच कराने की मांग पर भी एकजुट नहीं है. लेफ्ट पार्टियां और तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में कराई जाए.

इन पार्टियों का कहना है कि जेपीसी से अब तक जितने भी मामले की जांच कराई गई है, उसमें कुछ नहीं निकला है. उलट सरकार को क्लीन चिट मिल गई है.

2. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा– तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अगर सरकार चर्चा कराना चाहती है, तो इसमें सब शामिल हो.

कांग्रेस की ओर से सोमवार को चर्चा में भाग लेने के लिए पी चिदंबरम का नाम फाइनल किया गया था, लेकिन आम आदमी पार्टी और बीआरएस के हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही ठप हो गई.

बजट पेश होने के बाद से ही संसद एक भी दिन भी नहीं चली है. लोकसभा सचिवालय के मुताबिक सदन चलाने में प्रति घंटे 1 करोड़ 60 लाख रुपये का खर्च आता है.

दिन के हिसाब से देखें तो सदन चलाने के लिए एक दिन में करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं. टीएमसी का कहना है कि संसद नहीं चलने देना जनता के पैसे की बर्बादी है.

3. कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असहज- अडानी मामले में विरोध का नेतृत्व सदन में कांग्रेस कर रही है. ऐसे में कई पार्टियां इससे पूरी तरह असहज हैं. अडानी का विरोध करने के बावजूद मायावती की बसपा कांग्रेस के साथ नहीं है. कांग्रेस के नेतृत्व से बीआरएस, आप और टीएमसी भी असहज हैं. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन कांग्रेस हाईकमान पर कटाक्ष भी कर चुके हैं.

दरअसल, कांग्रेस से असहज पार्टियां अपने-अपने राज्यों में काफी मजबूत है और 2024 में बीजेपी के खिलाफ बने गठबंधन में कांग्रेस को हिस्सेदारी नहीं देना चाहती है.  यही वजह है कि अडानी मामले में विरोध की कमान जब कांग्रेस ने संभाली तो कई पार्टियां इससे दूर हो गई.

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हिंडनबर्ग की रिपोर्ट, जिसने अडानी समूह की मुश्किलें बढ़ाई

अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कर दावा किया है कि अडानी समूह मनी लॉन्ड्रिंग और खातों में हेरफेर किया है. कंपनी ने इसके लिए 8 साल में 5 चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर बदले हैं.

कंपनियों के शेयरों के भाव को जानबूझकर बढ़ाया गया है जिस वजह से अडानी समूह के शेयर में काफी बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में आगे कहा गया कि 2.20 लाख करोड़ रुपए का कर्ज अडानी समूह ने लिया है, जो कंपनी की हैसियत से अधिक है.

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को अडानी समूह ने तुरंत ही खारिज कर दिया और कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी. हालांकि, पिछले एक हफ्ते में अडानी समूह के शेयरों में 55 फीसदी की गिरावट हो चुकी है.

विपक्ष के अलग-अलग सुर का असर क्या?

2024 में विपक्षी एका को धक्का- अडानी मामले में जिस तरह विपक्ष खेमों में बंट गया है, उससे 2024 की रणनीति पर भी झटका लगा है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस सभी पार्टियों को एकजुट कर 2024 का चुनाव लड़ेगी.

इस काम के लिए कांग्रेस की मदद नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता भी कर रहे थे, लेकिन अब टीएमसी, आप और बीआरएस ने जिस तरह दूरी बनाई है, उससे साफ है कि विपक्ष का महागठबंधन शायद ही बन पाए. इन तीनों पार्टियों का करीब 80 लोकसभा सीटों पर सीधा असर है.

9 राज्यों के चुनाव में भी दिखेगा असर- इस साल 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और कर्नाटक प्रमुख हैं. अडानी मामले में आप और बीआरएस ने कांग्रेस की रणनीति से खुद को अलग कर लिया है.

ऐसे में गुजरात की तरह पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकती है. इन दोनों राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा-सीधा मुकाबला है. वहीं तेलंगाना में बीआरएस और कांग्रेस के बीच लड़ाई होनी है.

सरकार का एकाधिकार बढ़ेगा- विपक्षी पार्टियों में फूट होने से सरकार का एकाधिकार बढ़ेगा और किसी एजेंडे को आसानी से लागू करने में कामयाब हो सकती है. सदन में वैसे भी विपक्ष के पास बहुत कम सांसद हैं. इसके बावजूद एकजुट नहीं होने का फायदा सीधे सत्ताधारी पार्टी को मिलेगी.

वहीं कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के बावजूद जिस तरह सभी पार्टियों को एकजुट करने में विफल रही है, उससे उसकी क्षमता पर भी फिर से सवाल उठेगा.


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