डोलो और सेरिडॉन जैसी 300 दवाओं के पैक पर आज से QR कोड अनिवार्य, जानिए आपको क्या होगा फायदा
अगर आप सिरदर्द सर्दी बुखार के लिए डोलो और सेरिडॉन जैसी दवाएं ले रहे हैं, या फिर शुगर बीपी की दवा लेते हैं तो अब आपको इनकी कुछ नई तरह की पैकिंग देखने को मिल सकती है। सरकार ने देश में नकली दवाओं पर लगाम लगाने के लिए दवाओं की पैकिंग में QR कोड को शामिल करने का फैसला किया है। इन दवाओं में दर्द, बुखार, प्लेटलेट, शुगर, गर्भनिरोधक दवा, विटामिन सप्लीमेंट्स, थायरॉयड आदि की दवाएं शामिल हैं। इन क्यूआर कोड में दवा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मौजूद होंगी, साथ ही ग्राहक को दवा की एक्सपाइरी डेट का भी पता इस क्यू आर कोड से चल जाएगा। सरकार ने कुछ समय पहले ही Drug and Cosmetics Act, 1940 में संशोधन से जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया था। आज 1 अगस्त से ये नियम लागू हो जाएगा।
इन लोकप्रिय दवाओं के बदलेंगे पैक
इन टॉप 300 दवाओं के ब्रांड में एलिग्रा, शेलकेल, काल्पोल, डोलो और मेफ्टेल जैसी दवाओं के नाम शामिल हैं। जिन दवाओं को इस नए नियम में शामिल किया गया है, उसमें दर्द, बुखार, प्लेटलेट, शुगर, गर्भनिरोधक दवा, विटामिन सप्लीमेंट्स, थायरॉयड आदि की दवाएं शामिल हैं।
QR कोड में क्या-क्या जानकारी मिलेंगी
नए नियम के तहत दवा निर्माता कंपनियों को दवाओं पर QR कोड लगाना अनिवार्य होगा। इन दवाओं के रैपर पर अब शिड्यूल H2/QR कोड लगाना होगा। दवाओं पर जो कोड लगाया जाएगा, उनमें पहले तो यूनिक आइडेंटिफिकेशन कोड होगा। इस कोड में कंपनियों को दवा का नाम और इसका जेनेरिक नाम बताना होगा। ब्रांड और निर्माता की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा विशेष पैकेट किस बैच में बना है, उसका बैच नंबर भी देना होगा। साथ ही मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपाइरी की डेट देनी होगी और लाइसेंस की जानकारी भी देनी होगी।
दवाओं के गोरखधंधे पर लगेगी लगाम
देश के शीर्ष दवा नियामक ने नकली दवाओं की बिक्री पर अंकुश लगाने और प्रभावी पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया है। डीजीसीआई ने फार्मा कंपनियों को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने नए नियम का पालन नहीं किया तो कड़ा जुर्माना लगाया जाएगा। नकली, ख़राब गुणवत्ता वाली दवा से मरीजों को फायदा नहीं होता बल्कि नुकसान होता है। DTAB यानी ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने जून, 2019 में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कई रिपोर्ट में दावा किया गया था कि मुताबिक भारत में बनी 20% दवाएं नकली होती हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 3% दवाओं की क्वालिटी घटिया होती है।
क्या होगा फायदा
QR कोड लगाने से असली और नकली दवाओं की पहचान तो कर ही पायेंगे, साथ ही इससे कच्चे माल के सप्लायर से लेकर दवा मैन्युफक्चरर कंपनी को भी ट्रैक किया जा सकेगा। इससे ये भी पता किया जा सकेगा कि दवा के फॉर्मूले के साथ कोई छेड़छाड़ की गई है या नही। साथ ही, API प्रोडक्ट कहां से आया और कहां जा रहा है, इसे भी ट्रैक कर पायेंगे।
API यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स। ये इंटरमीडिएट्स, टेबलेट्स, कैप्सूल्स और सिरप बनाने के मुख्य कच्चा माल होते हैं। किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसके लिए भारतीय कंपनियां काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं।