खुल गए दुनिया के सबसे ऊंचे शिवालय तुंगनाथ धाम के कपाट, अनोखा है इसका रहस्य
भगवान आशुतोष के जयकारों और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच बुधवार को तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इस अवसर पर मांगलिक गीतों और बाबा के जयकारों से पूरा धाम गूंज उठा। 1000 से अधिक श्रद्धालुओं ने भोलेनाथ के दर्शन किए। आपदा के बाद यह पहला मौका है, जब कपाट खुलने पर इतने श्रद्धालु धाम पहुंचे। भगवान तुंगनाथ अब छह माह तक अपने धाम में ही भक्तों को दर्शन देंगे।
बुधवार को प्रात: 10.15 बजे भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली अपने धाम पहुंची। यहां मक्कू गांव के हक-हकूकधारी ब्राह्मणों द्वारा मठाधिपति रामप्रसाद मैठाणी के हाथों पंचांग पूजा और महाभिषेक पूजा संपन्न कराई गई। इसके बाद मंदिर के गर्भगृह में वेद-मंत्रोच्चार के साथ भगवान तुंगनाथ (शिव) को समाधि से जगाया गया। धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए ठीक 10.30 बजे कर्क लग्न में मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।
भक्तों ने भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग का जलाभिषेक कर दर्शन किए। कपाट खुलने के मौके पर केदारनाथ के विधायक मनोज रावत, जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मी राणा, सदस्य मीरा पुंडीर, मंदिर समिति सदस्य शिव सिंह रावत, पुजारी राजशेखर लिंग, थानाध्यक्ष एचएस पंखोली, पुजारी प्रकाश मैठाणी, मंदिर के प्रबंधक प्रकाश पुरोहित, विजय भारत मैठाणी, खुशाल सिंह नेगी, लक्ष्मण सिंह नेगी, अनूप रावत आदि मौजूद थे।इससे पूर्व प्रात: 7 बजे भगवान तुंगनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की गई।
भगवान का भव्य श्रृंगार कर उन्हें भोग लगाया गया। प्रात: आठ बजे भक्तों के जयकारों के बीच बाबा तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सह डोली ने अपने धाम के लिए प्रस्थान किया। साढ़े तीन किमी की पैदल दूरी तय करते हुए आराध्य की चल विग्रह डोली प्रात: 10.15 बजे अपने धाम पहुंची। इसकी महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यह पंच केदारों में से एक माना गया है। कहते हैं कि तुंगनाथ में ‘बाहु’ यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है।
माना जाता है कि, लंकापति रावण का वध करने के बाद रामचंद्र ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था। रामचंद्र ने यहां कुछ वक्त बिताया था। चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला बनी है। जहां जाते ही अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। कहा जाता है कि, यहां भगवान रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे।
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद व्याकुल थे। जनश्रुतियों के मुताबिक, पांडवों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। पुराणों में कहा गया है कि रामचंद्र शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे।