भारत के वो प्रधानमंत्री जिनको अमेरिकन राष्ट्रपति ओबामा ने बताया अपना गुरू
🔸डॉ मनमोहन सिंह आज़ाद हिन्दुस्तान के वह प्रधानमंत्री हुए जिनको अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने अपना गुरु बताया
🔸वह प्रधानमंत्री जिन्होंने भारत को सबसे मुश्किल आर्थिक संकट के दौर से एक नहीं दो दो बार उबारा
🔸वह प्रधानमंत्री जिसके कार्यकाल में ना सिर्फ़ देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई, उद्योग बढ़े, नौकरियों का सृजन हुआ बल्कि जिसने क़रीब 27 करोड़ लोगों को ग़रीबी से उबारा
🔸वह प्रधानमंत्री जिसने इस देश को सोनिया गांधी जी के साथ मिलकर खाद्य सुरक्षा, मनरेगा, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार देकर, किसानों को कर्ज़ से राहत देकर देश में अधिकार की क्रांति का आरंभ किया
🔹मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत में पंजाब प्रांत के गह गाँव में हुआ था. अपने जीवन के पहले 12 साल डा. सिंह ने उस गाँव में गुज़ारे जहाँ पार्ट बिजली तक नहीं थी,अपनी पढ़ाई लिखाई मिट्टी के तेल वाले लालटेन में की, मीलों दूर स्कूल पढ़ने जाते थे
🔹लेकिन इन्हीं मुश्किलों से लड़ कर अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति और बुद्धि के बल पर वह पढ़े – उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी से MA किया जिसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में पढ़ाई की और उसके बाद ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट भी किया. वह पढ़ाई में हमेशा अव्वल नंबर पर रहे और विदेश में भी स्कालरशिप जीत कर पूरी की.
🔹अपनी माँ को कम उम्र में खोने का दुख, देश के विभाजन का दंश, छोटे से गाँव से प्रधानमंत्री तक का सफ़र तय करने वाले मनमोहन सिंह जी ने किसी सार्वजनिक सभा में अपनी कठिनाइयों का रोना नहीं रोया
🔹बल्कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता, गरिमा और बुद्धि की मिसाल बन कर हिंदुस्तान के ही नहीं विश्व की राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर अपनी अमिट छाप छोड़ी — राष्ट्र समूहों की मीटिंग में उन्हें सुनने के लिए राष्ट्राध्यक्ष बेताब रहते थे. अपनी किताब A Promised Land में राष्ट्रपति ओबामा लिखते हैं “डा मनमोहन सिंह बुद्धिमान, राजनीतिक और वैचारिक रूप से ईमानदार व्यक्ति हैं. प्रधानमंत्री बनने से पहले ही उन्होंने भारत के लिए असाधारण काम किए हैं, मैं उन्हें भारत के आर्थिक कायाकल्प के चीफ आर्किटेक्ट के रूप में देखता हूँ”.
🔹डा सिंह राजनीति में होने के अलावा एक शिक्षक भी रहे, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने का भी काम किया है. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जब डा. सिंह UN में काम कर रहे थे, तब उन्हें दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाने का अवसर मिला, जिसके लिए 1969 में वो देश वापस आये
🔹वह विदेश व्यापार विभाग में सलाहकार थे, जहां पर ललित नारायण मिश्र से कुछ असहमति होनहार पर डाक्टर साहेब वापस पढ़ाने जाना चाहते थे, लेकिन इसकी भनक मात्र पड़ने पर इंदिरा जी ने उन्हें वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार नियुक्त कर दिया
🔹मनमोहन सिंह 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, और 1985 से 1987 तक योजना आयोग के प्रमुख भी रहे.
🔹1991 में जब नरसिम्हा राव अपना कैबिनेट बना रहे थे तब उन्होंने मनमोहन सिंह जी को वित्त मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी. यह वो नाज़ुक दौर था जब देश की अर्थव्यवस्था पर संकट के गहरे बादल मंडरा रहे थे, विदेशी मुद्रा में कमी के चलते देश को सोना गिरवी रखना पड़ा था. ऐसे में डा साहेब की अद्भुत सूझबूझ और आर्थिक विषयों की समझ के कारण ही स्थिरता आई. उन्होंने भारत को ग्लोबलाइज़ेशन का हिस्सा बनाया, विश्व के बड़े बड़े उद्योग भारत आने लगे, मध्यमवर्ग का जन्म हुआ, नौकरी और रोज़गार के साथ आय में वृद्धि हुई, हिंदुस्तान विश्व के लिये एक बड़ा मार्केट बना, वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा और उसका नतीजा यह रहा कि ग़रीबी पर शिकंजा कसा गया
🔹2004 में जब इंडिया शाइनिंग के जुमले को ध्वस्त करके कांग्रेस की सरकार बनी और सोनिया जी ने प्रधानमंत्री पद का त्याग किया, तब उन्होंने इस अहम ज़िम्मेदारी के लिए डाक्टर साहेब को चुना. एक प्रधानमंत्री रहते हुए जनता की हिस्सेदारी और सरकार की लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की. 2004-2014 अधिकारों के स्वर्णिम अवसर का दशक था
🔹विरोधियों ने भले डाक्टर साहेब के सामने मर्यादा की सीमा बार बार लांघी, लेकिन उन्होंने कभी भी गरिमा का त्याग नहीं किया. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले यह कहा कि डाक्टर साहेब रेनकोट पहन कर नहाते हैं, पर उन्होंने अपनी भाषा कभी नहीं विषाक्त की.
🔹यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने नोटबंदी को ‘organised loot और legalised plunder’ कह कर इसके दुष्परिणाम पर चेतावनी दी थी.
🔹अपने कार्यकाल में 17 प्रेस वार्ता करने वाले डाक्टर साहेब ने जनवरी 2014 में बिलकुल ठीक कहा था – History will be kinder to him.
🔹आज वर्तमान सरकार की विफलताएँ, पूँजीपतियों के लिए बनी नीतियाँ, व्यापक दृष्टिकोण की कमी, आनन फ़ानन में लिये निर्णय जिनकी क़ीमत आज और आने वाली पीढ़ियाँ तक चुकायेंगे – ऐसे में डाक्टर साहेब का धीर गंभीर व्यक्तित्व, सौम्यता, दूरदर्शिता, मुद्दों की समझ और उनके अंदर लोकतंत्र के लिए सम्मान – उन्हें और विलक्षित बना देता है.
🔹निजी तौर पर आर्थिक और वित्तीय जगत से संबंधित होने के नाते मैं हमेशा से डाक्टर साहेब की ज़बरदस्त प्रशंसक रही हूँ. अप्रैल 2020 में कोरोना काल के दौरान डाक्टर साहेब की अध्यक्षता में बने एक कंसल्टेटिव ग्रुप का सदस्य होना मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी. पहली मीटिंग में सबका स्वागत करने के बाद उनका मेरा नाम लेकर प्रोत्साहित करना सार्वजनिक जीवन में एक बहुत बड़ी सीख है. आप कितने भी बड़े क्यों ना हों अपने युवा साथियों को दो अच्छे शब्द कहने से आप और बड़े हो जाते हैं – और उनको मिली ऊर्जा का अन्दाज़ भी नहीं लगाया जा सकता.
🔹नीली पगड़ी, मीठी मुस्कान, संयमित भाषा और अपार ज्ञान लिए डाक्टर मनमोहन सिंह 33 वर्ष बाद राज्य सभा से विदा हुए. इस देश की उन्नति, आपकी कर्तव्यपरायणता, मुश्किल वक़्त में कमान सँभालने के लिए और सबसे ज़्यादा राजनीति और प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाये रखने के लिए – शुक्रिया सर.
कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत के फेसबुक से साभार