नक्सलबाड़ी के पचास साल
नक्सलबाड़ी आंदोलन के पचास साल पूरे हो गए हैं. लेकिन वह तमाम वजहें अब भी जस की तस हैं जिनके चलते 25 मई, 1967 को यहां सशस्त्र आंदोलन की शुरूआत हुई थी.
— नक्सलबाड़ी आंदोलन संक्षिप्त इतिहास —
नक्सलवाद का जन्म पिछली सदी के साठ के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन की कोख से हुआ। नक्सलबाड़ी गांव के कुछ छोटे किसानों ने स्थानीय सामंतों के शोषण के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया और उन्हें सजा दी। नक्सलबाड़ी आंदोलन को बौद्धिक वर्ग का जबरदस्त समर्थन मिला, तो इसके पीछे वक्त का तकाजा और व्यवस्था से मोहभंग के कारण उपजी रिक्तता को भरने की आक्षंका भी थी। चारु मजूमदार और कानू सान्याल जैसे नेताओं के नेतृत्व में इसका विस्तार पूरे पश्चिम बंगाल में हुआ। लेकिन सत्तर के दशक के दमन और राज्य में वामपंथी पार्टी के सत्तारुढ़ होने के बाद भूमि सुधार कार्यक्रम के लागू होने के साथ यह आंदोलन पड़ोसी राज्यों की ओर कूच कर गया। पिछले करीब तीन दशक में नक्सली आंदोलन में आई विकृतियों ने उसे बौद्धिक समर्थन से भले ही महरूम किया हो, पर समाज के दबे-कुचले वर्गों, आदिवासियों में उसने काफी पैठ बना ली है। यही कारण है कि आज देश के दर्जन भर से अधिक राज्यों के लिए नक्सलवाद सिरदर्द बन गया है।
— प्रमुख नक्सली गुट —
नक्सली आंदोलन से जुड़े तीन संगठन मुख्य रूप से सक्रिय रहे हैं-
एमसीसी (माउस्टि कम्युनिस्ट सेंटर) – वर्ष १९८४ में इस गुट को बिहार में ठोस पहचान मिली। बाद में इसने अनेक बर्बर नरसंहारें को अंजाम दिया। इसका प्रभाव बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में रहा है।
पीडीब्ल्यू (पीपुल्स वार ग्रुप) – वर्ष १९८० में कोंडपल्ली सीतारमैया ने तेलंगाना में इस उग्रवादी संगठन की नींव रखी। आंध्र प्रदेश में इसका व्यापक प्रभाव है।
जनशक्ति– यह गुट भी आंध्र प्रदेश में ही सक्रिय रहा है।
लेकिन बाद में ये तीनों संगठन सीपीआई (माओस्ट) नामक संगठन की छतरी के नीचे एकत्रित हो गए।