हिमवंत कवि चद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्मशती पर किया गया विचार गोष्ठी का आयोजन
हिमवंत कवि चद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्मशती पर किया गया विचार गोष्ठी का आयोजन
देहरादून। चद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्मशती पर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान की ओर से दून लाइब्रेरी में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है। विचार गोष्ठी में साहित्य की मर्मज्ञ और बर्थवाल जी की जन्मभूमि की वीना वेंजवाल ने हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कविता ‘मैं नहीं चाहता युग युग तक पृथ्वी पर जीना पर इतना जी लूं जिससे जीवन सुंदर हो’ जीवन के बारे में उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था कि जीवन की लंबाई के मायने नहीं होते, उसे किस तरह जिया मायने रखते हैं।
उनके बारे में साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने कहा कि चंद्र कुंवर बर्त्वाल में एक साथ कई कवि निहित थे। वे जहां छायावादी थे वहीं उनकी कविता में प्रयोगवाद और प्रगतिशीलता के दर्शन होते हैं। उन्होंने बहुत कम समय में हिंदी साहित्य को अनमोल धरोहर दी। 28 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने 800 से अधिक काव्य और 25 से अधिक गद्य साहित्य की रचना की। उनके साहित्य को संकलित प्रकाशित करने का श्रेय डॉ शंभु प्रसाद बहुगुणा और डॉ उमा शंकर सती को जाता है। और चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान की स्थापना का श्रेय डॉ योगेन्द्र सिंह बर्त्वाल को जाता है।
उनके साहित्य में स्थानिकता के साथ साथ वैश्विक दृष्टिकोण है। उनकी कविता में मंदाकिनी की कलकल, हिमालय की विराटता, में रैमासी की कोमलता विद्यमान है। चंद्राहार नाम से गढ़वाली में भी कविता लिखी। उनकी कविता में जहां एक और जीवन का उल्लास है वही दूसरी ओर मृत्यु का आनंद है। वो जीवन को कश्ती और मौत को सागर कहते हैं। उनका मानना है कि जितना काम बर्त्वाल जी पर होना चाहिए वो अभी होना बाकी है। हमारी दोनों बर्त्वाल जी को सच्ची श्रद्धांजलि उनके कामों को उजागर कर जन जन तक पहुंचाने में होगी। ‘आओ गाएं छोटे गीत पेड़ और पौधों के गीत’ कविता पढ़ कर अपनी श्रद्धांजलि भेंट की।
उन पर शोध करने वाले डॉ भट्ट ने उनकी कविताओं के उदाहरण दे कर उनके काव्य विस्तार को श्रोताओं के समुख रखा।
डॉ ओम प्रकाश सेमवाल ने उनकी गढ़वाली कविता ‘मंदाकिनी तू मंदगति से मस्तानी जन चलदी; का सस्वर पाठ कर बताया कि उनकी संस्था कलश द्वारा बर्त्वाल जी समय समय पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। उन्होंने हिमवंत कवि पर अपनी स्वरचित कहा कि चंद्र कुंवर बर्त्वाल जी के जन्म स्थान में उनके नाम पर सरकार द्वारा संस्थान की स्थापना करनी चाहिए।
आचार्य कृष्णानंद नौटियाल ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
राज परिवार के सदस्य कुंवर भवानी सिंह ने चन्द्र कुंवर बर्थवाल को श्रद्धांजलि देते हुए शोध संस्थान तथा डॉ योगेन्द्र दत्त बर्थवाल के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वो हमेशा उनके कार्यों को समाज तक पहुंचाने को तत्पर रहते थे।
डॉ योगेन्द्र बर्थवाल के छोटे भाई और अधिवक्ता ने अपने बड़े भाई का कवि चंद्र कुंवर जी के साहित्य को जन जन की मुहिम को, उसमें आने वाली कठिनाइयों और उनके परिवार का इसमें योगदान को विस्तार से बताते हुए मांग की कि दून लाइब्रेरी का नाम चन्द्र कुंवर बर्थवाल के नाम से रखा जाय।
दून विश्वविद्यालय के रंगमंच विभाग के डॉ राकेश भट्ट ने कहा कि चंद्र कुंवर बर्थवाल की कविता पर काव्य नाटक करने की उनकी हार्दिक इच्छा है। उन्होंने उनकी कविता का सस्वर पाठ कर उन्हें श्रद्धांजलि व्यक्त की।
चंद्र कुंवर बर्थवाल शोध संस्थान के सचिव गौरव बर्थवाल ने संस्थान के कार्यों के बारे में तथा भविष्य की योजनाओं के बारे में विस्तार से सभी के समक्ष रखा, विनम्रता से सभी को अपनी उपस्थिति के लिएधन्यवाद देते हुए सहयोग की अपेक्षा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व जिला अधिकारी चंद्र सिंह ने कहा कि चमोली में अपर जिला अधिकारी और जिला अधिकारी रहते हुए सुनहरा वक्त बिताया। उन्होंने कहा चमोली का कोई भी मुझे मिलता है तो लगता है बद्री केदार मिल गए। डॉ योगेन्द्र को वे उत्तरकाशी में मिले और कुष्ठ रोगियों के प्रति उनकी संवेदना अनुकरणीय थी वो उनसे बहुत प्रभावित थे, डॉ योगेन्द्र, चंद्र कुंवर जी के साहित्य को प्रचारित व प्रकाशन के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उन्होंने चन्द्र कुंवर जी और डॉ योगेन्द्र को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का सफल संचालन दून विश्वविद्यालय के मानवीय विज्ञान के डॉ मानवेंद्र बर्थवाल ने किया।