“जब जिदंगी दामन छुड़ाए तो उनके लबों पर कोई नया नगमा हो, कोई नई कविता हो”: गोपालदास नीरज
“हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।
जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।”रचनात्मक, गीतकार, साहित्कार और वह पहले व्यक्ति जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। उनके गीतों मे लोग झूमा करते थे। उनके कविताओं मे एक आनंद सा था। जिनके गीत दिलों को छु जाते है और कविताओं मे डूब जाने का मन करता था। अब मंच शांत रहेेगा क्योंकि गोपलादास नीरज अब हमारे बीच नहीं रहे। महफिलों और मंचो की शमां रोशन करने वाले नीरज अब हमारे बीच तो नहीं रहें लेकिन उनकी कविताएं और गीत आज भी हमारे बीच आज भी जिंदा है।गोपालदास नीरज लंबे समय से बीमार चल रहे थे। मंगलवार को उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। इसके चलते उन्हें आगरा के अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। तबीयत बिगड़ने के बाद गोपालदास नीरज को दिल्ली के एम्स अस्तपताल में लाया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
6 साल की उम्र में पिता को खोया
उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में 4 जनवरी 1925 को जन्में गोपाल दास नीरज को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होेंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। टाइपिस्ट की नौकरी करके उन्होने अपना गुजारा किया था। 1953 तक उन्होने प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम.ए करके अपनी पढ़ाई पुरी करी। वे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से।
ऐसी शुरू हुई फिल्मों की शुरूआत
कवि सम्मेलनों में बढती नीरज की लोकप्रियता ने फिल्म जगत का ध्यान खींचा। उन्हें फिल्मी गीत लिखने के निमंत्रण मिले जिन्हें उन्होंने खुशी से स्वीकार किया। उनके फिल्मों में लिखे गीत बेहद लोकप्रिय हुए। इनमें “दिखती ही रहो आज दर्पण न तुम”, “ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली”, “खिलते हैं गुल यहां, “खिल के बिखरने को”, लिखे जो ख़त तुझे, वो तेरी याद में, हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए”, आदि अनेक लोकप्रिय फिल्म के गीत लिखें है।
कई सालों में कई फिल्मों में सफल गीत लिखने के बावजूद उनका जी मुंबई से कुछ सालों में ही उचक गया। इसके बाद सपनों की मायानगरी को अलविदा कह वापस अलीगढ़ आ गए।
“जब जिदंगी दामन छुड़ाए तो उनके लबों पर कोई नया नगमा हो, कोई नई कविता हो”
उनकी ख्वाहिश थी तो बस इतनी कि “जब जिदंगी दामन छुड़ाए तो उनके लबों पर कोई नया नगमा हो, कोई नई कविता हो” ।
नीरज ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था, “अगर दुनिया से रूखसती के वक्त आपके गीत और कवितांए लोगों की जबान और दिल में तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी। इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है।
दस्तावेज के लिए रवीना कुँवर की रिर्पोट