एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए सरकार ने तय किए मुद्दे
केंद्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट कानून में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि अभियुक्तों को अग्रिम जमानत से वंचित करने वाली कानून की धारा 18ए संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करती।
अदालत में मंगलवार को दिए गए जवाब में सरकार ने कोर्ट के लिए मुद्दे तय किए हैं जिन पर कोर्ट को फैसला करना है। जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ इस मामले पर विचार कर रही है। पिछले दिनों सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च 2018 के फैसले को निरस्त करने के लिए अगस्त में एससी एसटी एक्ट में संशोधन कर दिया था। इस संशोधन को कोर्ट में चुनौती दी गई है।
केंद्र से मांगा था जवाब
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए संसोधन पर केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था। इससे पहले सात सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में संसद द्वारा किए गए संशोधनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से संशोधनों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है।
केंद्र सरकार ने ये मुद्दे रखे
-क्या अग्रिम जमानत से वंचित करने का प्रावधान धारा 18 ए बहाल करना सही नहीं है वह भी तब जब संसद सर्वसम्मति से इस प्रावधान को बहाल करती है।
-क्या संविधान का अनुच्छेद 17 जो छुआछूत खत्म करने की बात करता है इस मामले में स्वत: लागू नहीं रहेगा। समाज के रवैये को देखकर जो इस समुदाय के खिलाफ अपराध करने को प्रेरित करता है, तो क्या विधायिका ने धारा 18 को सोच समझकर नहीं जोड़ा है।
-क्या धारा 18 ए मामलों में अभियक्तों के भारी संख्या में बरी होने के तथ्य को देखते हुए अभियुक्तों के जीवन और व्यक्तिगत आजादी के अधिकारों (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती है।
-क्या एससी एसटी एक्ट के तहत किए गए अपराध विशेष श्रेणी में नहीं आते हैं। खासकर तब जब ये अपराध एक समुदाय को नीचा दिखाने के लिए किए गए हों ताकि वे गौरव और आत्मसम्मान का जीवन न जी सकें।
-क्या विशेष कानून की धारा 18 ए को सीआरपीसी की धारा 438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान) के साथ तुलना की जा सकती है। क्या सीआरपीसी विशेष कानून की धारा 18 ए को नियंत्रित कर सकती है।
-क्या धारा 18 ए ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त या हल्का कर दिया है जिसमें कोर्ट ने अभियुक्तों को अग्रिम जमातन लेने की अनुमति दे दी थी।
-अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणा के अनुच्छेद 3, 9 और 10 पर धारा 18 ए का क्या असर है क्या यह कहा जा सकता है कि घरेलू कानून अंतरराष्ट्रीय संधियों और रूढियों से बंधा हो सकता है।
-क्या विभिन्न हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसलों को देखते हुए क्या सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अधिकृत फैसला नहीं देना चाहिए।
-क्या सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न बेंचों ने अग्रिम जमानत पर विरोधी फैसले नहीं दिए हैं। इन्हें देखते हुए क्या इस मामले को संविधान पीठ को नहीं सौंपा जाना चाहिए।