इंदिरा के कंधे पर बंदूक रख, फायर के इन्तजार में स्टिंगबाज।
हिडन कैमरे से जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की निजता को सिल्वर स्क्रिन पर दिखा कर लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने वाले एक बार फिर लोकतंत्र को खुली चुनौती दे रहे हैं। उत्तराखंड सरकार को पूर्व में अस्थिर कर चुके स्टिंगबाज इस बार सरकार को खुली चुनौती दे रहा है। बिडम्बना देखिए कि यह शख्स है उस नेताप्रतिपक्ष के बयान को आधार बना रहा जो कांग्रेस सरकार को तब गिरने से बचा रही थी। सवाल उठता है क्या नेताप्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश की भी वही मंशा है जो लोकतांत्रिक सरकार को चुनौती देने वालों की है। इस पूरे प्रकरण में कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि स्टिंगबाज औऱ विपक्ष मिलकर सरकार को अस्थिर करने में जुटे हैं जिसे सत्तासीन दल के कुछ नेताओं का भी गुप्त समर्थन है।
कानूनी शिकंजे से राहत की सांस लेने वाले उमेश कुमार शर्मा एक बार फिर सरकार के खिलाफ हमलावर हो गये है। इस हमले में उमेश कुमार शर्मा का साथ सत्ता पक्ष और विप़क्ष के साथ-साथ एक मानसिकता वाले लोग भी खडे है। इस मानसिकता के लोग तब से परेशान है जब से एक रावत के जाने के बाद प्रदेश की कमान दूसरे रावत के कंधों पर आयी है। इतना ही नही यह लोग उक्त प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी संर्पक कर चुके है, कि वह भी टी.एस.आर सरकार के खिलाफ बोलना शुरू कर दे। दस्तावेज को मिली जानकारी के अनुसार इस काम के लिए प्रदेश के दो मीडिया कर्मी और एक कांग्रेसी नेता भी दिल्ली में हरीश रावत से मुलाकात के लिए तीन दिनों से होटल हयात में टहरे हुये है।
कानून के शिकंजे में आया चैनल का सीईओ उमेश कुमार एक समय भाजपा की आंखों का तारा रहा है। 2016 में उत्तराखंड में आए सियासी तूफान में उमेश के स्टिंग ने भी अपना अहम रोल निभाया। सूबे में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई तो भी उसका जलवा बरकरार रहा।दल-बदल के बाद मौजूदा भाजपा सरकार में मंत्री बने दो काबीना मंत्रियों से उमेश के गहरे ताल्लुकात बने रहे। अब उसी भाजपा की सरकार ने शिकंजा कसा है तो इसके सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं।
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कांग्रेस सरकार में उस वक्त के मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत से उमेश की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं रहीं। लेकिन 2016 में हरीश सरकार का तख्ता पलट करने की भाजपाई कोशिश के वक्त उमेश का नया चेहरा ही सामने आया।
निजी कार्यक्रम में शामिल होते थे नेता
उसी सियासी संग्राम के दौरान तत्कालीन सीएम हरीश रावत, तत्कालीन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत और एक आईएएस अफसर मो. शाहिद के स्टिंग सामने आए तो पता चला कि सभी में उमेश का ही हाथ हैं।
भाजपा ने इन स्टिंग को सियासी तौर पर खूब भुनाया। बताया जा रहा है कि इसी वजह से उस वक्त तक उमेश की नजदीकियां भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक हो गईं थीं। अदालत के आदेश पर उत्तराखंड में हरीश की सरकार बहाल होने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार ने कांग्रेस से बगावत करने वाले नेताओं को सीआईएसएफ का सुरक्षा कवच दिया। उसी समय यह सुरक्षा कवच उमेश को भी दिया गया।
2017 के आम चुनाव के बाद सूबे की सत्ता पर भाजपा काबिज हुई। उस वक्त भी उमेश की भाजपा से नजदीकियां बरकरार रहीं। नई सरकार का गठन होने के चंद रोज बाद ही उमेश ने अपने बेटे का जन्मदिन एक होटल में मनाया तो मुखिया समेत पूरी सरकार ने उस कार्यक्रम में शिरकत की थी।
मुख्यमंत्री दरबार में नहीं बन पाई थी पैठ
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और पूर्व सीएम विजय बहुगुणा समेत भाजपा के अन्य दिग्गजों ने इस कार्यक्रम में अपनी आमद दर्ज कराई। कुछ समय बाद केंद्र सरकार ने कांग्रेस से दल-बदल कर भाजपा में आए नेताओं को दिया गया सीआईएसएफ का सुरक्षा कवच वापस ले लिया, लेकिन उमेश की सुरक्षा अब तक बरकरार रही।
इसे भी उमेश की भाजपा नेताओं से नजदीकियों से जोड़कर ही देखा गया था। मौजूदा सरकार के दो काबीना मंत्रियों डा. हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल आज भी उमेश से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं। अहम बात यह भी है कि ये दोनों कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए हैं।
बदले हालात में उसी भाजपा की सरकार ने उमेश पर कानूनी शिकंजा कस दिया है। इसकी वजह कथित रूप से सत्ता के शीर्ष स्तर पर स्टिंग करने की कोशिश को बताया जा रहा है। सरकार ने जिस तरह से बेहद गोपनीय अंदाज में इस आपरेशन को अंजाम दिया है, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि अगर उमेश के भाजपाई मित्रों को इसकी जरा सी भी भनक लग गई होती तो शायद उमेश को बचने का मौका मिल गया होता। उमेश से भाजपा की नजदीकियों के अचानक इतनी दूरी में तब्दील होने के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं।
सूबे में नई सरकार का गठन होने के बाद उमेश की भाजपा नेताओं और मंत्रियों से तो खासी करीबी रही, लेकिन जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के दरबार में उमेश की गहरी पैठ नहीं बन सकी थी। बताया जा रहा है कि इस मामले में उमेश को भाजपा के अन्य नेताओं से भी कोई मदद नहीं मिल सकी।