ABP-सी वोटर सर्वे: देश का नही, ABP NEWS का मूड हुआ साबित; दस्तावेज़ की पड़ताल
-मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ ABP NEWS का हिडन एजेंडा हुआ साबित!
नई दिल्ली/देहरादून: एबीपी चैनल ने शुक्रवार को एक सर्वे नतीजों का प्रसारण किया है। चैनल ने इस सर्वे का शीर्षक दिया है देश का मूड और सर्वे में पहला सवाल है देश के सबसे खराब मुख्यमंत्री। इस सवाल से पता चल जाता है कि सर्वे करने वाली एजेंसी सर्वे को लेकर कितना गंभीर है। आखिर इस चैनल को देश के खराब मुख्यमंत्री की तलाश क्यों है। सवाल उठना लाजिमी है। सर्वे में जिस तरह के सवाल उठाए गये हैं, उसमें देश का मूड तो कहीं भी नजर नही आता है अलबत्ता एबीपी का अपना मूड जरूर नजर आता है। जो समय-समय पर अपनी विज्ञापनों की भूख और बाजार की तलाश के चलते बदलता रहता है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए वातानुकूलित स्टूडियो में बैठकर मनगढ़त सर्वे करना इस चैनल का इतिहास रहा है।
एक चालाक बनिया की तरह एबीपी चैनल काम करता है। नफा-नुकसान को देखकर सर्वे के सवाल तय करता है, नरेटिव सेट करता है। राजनैतिक दलों के महत्वाकांक्षी और कुंठित नेता इस काम में उनके साझीदार होते हैं। तमाम राज्यों में कई असंतुष्ट नेता हैं जो मुख्यमंत्री पद का सपना संजोये हुए हैं। इधर एबीपी चैनल को भी इसमें अपना बाजार नजर आने लगा है। तो सर्वे में सबसे खराब मुख्यमंत्री का सवाल भी जोड़ दिया जाता है। एसी स्टूडियो में बैठकर असतुंष्ट नेताओं के साथ बैठकर ही इसका जवाब तय कर दिया जाता है।
बाजारवादी और धनलोभी एबीपी को इसमें अपना बाजार नजर आता है तो महत्वाकांक्षी नेताजी को अपना सपना पूरा होता दिखता है। इसमें दोनों पक्ष अपना मकसद सर्वे के जरिये पूरा करने की कोशिश करते हैं। और इसी तरह के मीडिया सर्वे के जरिये प्रदेश के मुखियाओं के खिलाफ मकड़जाल बुना जा रहा है।
एबीपी सी-वोटर के सर्वे का इतिहास
2019 में एबीपी न्यूज और सी-वोटर ने हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर किये गये अपने सर्वे में बीजेपी को 90 में से 80 सीटें दिखाई थीं। लेकिन हरियाणा में हुआ क्या? बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और उसने जेजेपी के साथ मिलकर हरियाणा में किसी तरह सरकार बनाई। और आज उन्होंने अपने सर्वे में मुख्यमंत्री खट्टर को देश की सबसे खराब मुख्यमंत्री की सूची में डाल दिया है।
इसी एबीपी और सी-वोटर ने पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को क्लीन स्वीप बताया था। लेकिन अनुमान गलत साबित हुआ। एबीपी और सी वोटर ने अभी तक अपने इन अपराधों के लिए जनता से माफी नही मांगी।
इसी चैनल के सर्वे के हिसाब से गुजरात विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को दोनों को मिलाकर 43-43 प्रतिशत वोट मिल रहे थे, और बाकि 14 प्रतिशत वोट दूसरे राजनीतिक पार्टियों को मिल रहे है, ये सर्वे सुनने में ही फर्जी लगता है।
आप ध्यान दीजिये इसी एबीपी न्यूज ने उत्तर प्रदेश में 2017 विधान सभा चुनाव के दौरान एक्जिट पोल कराया था। मतलब वो पोल जो वोट डालने के बाद किया गया, इस चैनल ने चुनाव नतीजों से पहले बताया था कि बीजेपी को अधिकतम 176 सीट मिलेगी और बीजेपी कभी भी उत्तर प्रदेश में बहुमत साबित नहीं कर सकेगी। असल में नतीजे जो आये उसमे बीजेपी ने 300 का आंकड़ा पार किया।
अब इन्ही एबीपी वालों का आपको उत्तर प्रदेश पर ओपिनियन पोल भी बताते है, ओपनियन पोल में एबीपी वालों ने 30 जनवरी 2017 को बीजेपी को अधिकतम 128 सीट दी थी, जबकि सपा और कांग्रेस को 197 तक सीट दी थी। अर्थात जिसमें सपा-कांग्रेस को सरकार बनाते दिखाया था। नतीजे जनता के सामने हैं। इनके सर्वे के उलट आज उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की प्रचंड बहुमत की सरकार है।
न्यूज चैनलों के सर्वे का ये है सच
2014 में कोबरा पोस्ट के एक स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया था कि सी वोटर समेत कई एजेंसियाँ चुनावी सर्वे को तोड़ने-मरोड़ने के लिए पैसे लेती हैं। यह सर्वे जब टीवी और अखबारों पर जाता है तो वहां विज्ञापनों के जरिए रिश्वत दी जाती है। साथ ही सर्वे के माध्यम से सतारुढ़ दल को अपने अनुसार चलाने के लिए मजबूर किया जाता है। इस खेल में कई बार सत्ताधारी पार्टी के वो बड़े नेता शामिल होते हैं जिनकी महत्वाकांक्षा एसी कमरे में बैठकर सीएम बनने की होती है। विशेषज्ञ इस स्टिंग आपरेशन के बाद एबीपी और सी-वोटर के इस सर्वे को भी विज्ञापनों के लिए इस तरह का घिनौना खेल खेलने का जरिया बता रहे है।
एबीपी न्यूज का इतिहास इतना ही नहीं है। 2004 के बाद से इसके जितने भी सर्वे, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल आये, वे अधिकांश प्री-प्लांटेड साबित हुए हैं। यह सर्वे नतीजों के करीब तो दूर की बात है आंकड़ों से इतने दूर थे कि लोग इन्हें फर्जी मनाने लगे हैं। असल में सर्वे के मामले में एबीपी न्यूज सी वोटर का सर्वे हर बार सर्वे के बेसिक सिद्धांत से कोसों दूर रहा है। जिस वजह से एबीपी और सी बोटर का ट्रैक रिकार्ड लगातार हाशिये पर जा रहा है।
एबीपी जैसे चैनल टीआरपी बटोरने, नये बाजार की तलाश करने और सरकारी विज्ञापनों को हासिल करने के लिए इस तरह के सर्वे को हथियार बनाते रहे है। और इस चैनल के पिछले सारे सर्वे इस बात की तस्दीक भी करते हैं। लिहाजा इस चैनल के इस तरीके के सर्वे पर भरोसा करना काफी मुश्किल है।
दस्तावेज ने चैनलों के इस तरह के सर्वे की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता को जानने के लिए हमने उत्तराखंड के जाने-माने लोगों से उनकी राय जानने की भी कोशिश की।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा कहते है कि आजकल तरह-तरह के सर्वे हो रहे हैं, लेकिन इन सर्वे की कोई प्रामाणिकता और विश्वसनीयता नहीं रह गयी है। पिछले कुछ सालों से मीडिया, खास तौर पर इलेक्टानिक मीडिया अपनी साख पूरी तरह से खो चुका है। आज एक चैनल अपने सर्वे में किसी नेता को सबसे निचले पायदान पर रखता है तो वही नेता दूसरे चैनल के सर्वे में सबसे ऊपरी पायदान पर नजर आता है।
लोकमत समाचार पत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके और चुनावी सर्वे एजेन्सी के सम्पादक रहे अजय द्विवेदी का मानना है कि एबीपी चैनल ने वर्तमान में जो सर्वे किया है वह विधिवत् नहीं बल्कि प्रयोगात्मक सर्वे है। इस तरीके के सर्वे तब किये जाते हैं जब कोई नरेटिव सैट करना होता है। या बाजार और सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत करना और उसे अपने मजबूती का एहसास दिलाना होता है।
हिन्दी खबर के सम्पादक रह चुके पवन लाल चंद का कहना है कि इस तरह के सर्वे की प्रामाणिकता हमेशा ही संदेह के घेरे में रही हैं। जहां तक सर्वे का सवाल है इस बारे में सी-वोटर ही सही जानकारी दे सकता है कि उन्होंने कितने लोगों से सैम्पल कलेक्ट किया है।
वरिष्ठ पत्रकार हरीश जोशी इस सर्वे को विशुद्ध धंधा बताया। उन्होंने कहा किसी भी राज्य के विकास का मानक बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा, स्कूल होते हैं। आखिर इस सर्वे का पैमाना क्या है? अगर बात हम कोरोना काल की करते हैं तो देश के अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तराखण्ड की स्थिति बेहतर रही है। यहां तक कि लॉकडाउन के दौरान गरीब और जरूरतमंदो को भी तीनों टाइम का भोजन राज्य सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से उपलब्ध कराया गया। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि एबीपी-सी वोटर के इस सर्वे का पैमाना ही सही नहीं है।
उत्तराखण्ड के वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत इस सर्वे में शामिल सवाल में ‘सबसे खराब मुख्यमत्री’ शब्द के औचित्य पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि कोई भी राजनेता लोकप्रियता की पायदान में सबसे ऊपर या सबसे निचले पायदान में हो सकता है। लेकिन ‘सबसे खराब’ शब्द का चयन ही गलत है।
उत्तराखण्ड की राजनीति को बारीक नजर से पढ़ने वाले जानकारों की राय है कि उत्तराखण्ड में इस तरीके के लोग नहीं है जो सीधे तौर पर किसी को खारिज करते हों। विशेषज्ञों का मानना है कि इसी सर्वे में एक सवाल के जवाब में जब लोगों से पूछा गया कि राज्य में केन्द्र की योजनाओं का क्रियान्वयन किस प्रकार से हो रहा है? तो 60 फीसदी से भी अधिक लोगों ने ये माना है कि राज्य सरकार केन्द्र सरकार की नीतियों को जनता तक पहुंचा रही है। जिससे साबित होता है कि जनता की राय सर्वे से उलट है। जिसे एबीपी न्यूज द्वारा नहीं दिखाया गया है।
सी-वोटर और एबीपी न्यूज चैनल नहीं दे पाया दस्तावेज के सवालों के जवाब
जब शुक्रवार को प्रसारित सर्वे के बारे में एबीपी न्यूज चैनल के एडिटोरियल हेड सुमित अवस्थी से दस्तावेज ने सम्पर्क किया तो वह भी स्पष्ट जवाब नहीं दे पाये। उन्होंने इस मामले पर सी वोटर से बात करने के लिए कहा।
जबकि सी-वोटर से इस सम्बन्ध में दस्तावेज ने सवाल किये कि उत्तराखण्ड में कितनी विधान सभाओं व कितने लोक सभा क्षेत्र में यह सर्वे किया गया जिसका जवाब सी-वोटर नहीं दे पाया। इसके साथ ही सर्वे में कौन-कौन से सवाल पूछे गये इसका भी सी-वोटर जवाब नहीं दे पाया।
एबीपी न्यूज के क्षेत्रीय चैनल एबीपी गंगा के विशेष संवाददाता अजीत सिंह राठी से जब सर्वे को लेकर सवाल पूछा गया कि राज्य में कितने लोगों को सर्वे में शामिल किया गया था अजीत सिंह राठी ने भी सी-वोटर से ही बात करने की सलाह दी। जब एबीपी न्यूज के राज्य संवाददाता अतुल चौहान से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया। जिससे साबित होता है कि इस चैनल के क्षेत्रीय इकाईयों को इस सर्वे की कोई जानकारी ही नहीं है और सर्वे को दिल्ली में एसी कमरों में बैठकर तैयार किया गया है।