September 22, 2024

वायु प्रदूषण तेजी से लील रहा जिंदगियां, भारत में 1 साल में 12 लाख मौतें

अंधाधुंध विकास और सुख-सुविधाओं की चाह में इंसान अब तक पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचा चुका है, और आज की तारीख में इसमें लगातार गिरावट भी आती जा रही है. हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और जिस तरह से पर्यावरण का स्तर लगातार खराब होता जा रहा है उससे तो यह महज रस्म अदायजी ही लगता है. वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण पर बात करें तो अकेले दूषित हवा के कारण भारत में एक साल में करीब 12 लाख मौत की आगोश में चले गए थे.

हाल ही में स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है. देश में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसों और मलेरिया के कारण होती है.

2017 में भारत (12 लाख) और चीन (14 लाख) दोनों ही देशों में वायु प्रदूषण के कारण मौत का आंकड़ा 10 लाख को पार कर गया था. वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे के कारण दक्षिण एशियाई देशों के बच्चों की औसत उम्र में ढाई साल (30 महीने) की कमी आई है जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 20 महीने का है. इसका अर्थ यह हुआ कि अगर आज की तारीख में बच्चे का जन्म होता है तो औसतन जीवन प्रत्याशा से 20 महीने पहले ही उसकी मौत हो जाएगी.

तो बढ़ जाएगी उम्र

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार अगर धरती पर वायु प्रदूषण के स्तर पर सुधार आ जाए तो वैश्विक स्तर पर हर शख्स की उम्र में 2.6 साल का इजाफा हो जाएगा. भारत और चीन की बात करें तो वायु प्रदूषण से बेहाल चीन ने इस पर लगाम कसने के लिए कई बड़े फैसले लिए और धुआं निकालने वाले प्लांट और वाहनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने संबंधी कई बड़े फैसले उठाते हुए कुछ हद तक सुधार किया लेकिन जीवन प्रत्याशा दर में अभी भी औसतन 3.9 साल की कमी है.

हापुड़ में 12 साल उम्र घटी

अब भारत की बात करें, तो यहां पर राजधानी दिल्ली समेत कई शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है. भारत में जीवन-प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) में 5.3 साल की कमी आई है. दिल्ली से सटे 2 शहरों (हापुड़ और बुलंदशहर) की बात करें तो यहां पर जीवन-प्रत्याशा की दर में निराशाजनक कमी आई है और यहां पर 12 साल से भी ज्यादा कम हो गई है जो दुनिया में किसी भी शहर की तुलना में सबसे ज्यादा है.

भारत के पड़ोसी नेपाल में भी जीवन-प्रत्याशा की दर में कमी आई है और यहां पर लोगों की जिंदगी में 5.4 साल की कमी आई है. यहां पर उन जगहों की हालत ज्यादा खराब है जो भारत से सटे हैं.

जबकि अमेरिका में 1970 से तुलना की जाए तो जीवन-प्रत्याशा की दर में 1 साल की कमी आई है. यूरोप में भी कमोबेश यही स्थिति है, यहां का पोलैंड सबसे प्रदूषित देश है जहां जीवन-प्रत्याशा की दर औसतन 2 साल की कमी आई है.

2017 में 50 लाख लोगों की मौत

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, घर के भीतर या लंबे समय तक बाहरी वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से 2017 में स्ट्रोक, शुगर, हर्ट अटैक, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों के कारण वैश्विक स्तर पर करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 लाख मौत तो सीधे तौर पर पीएम (पार्टिकल पलूशन) 2.5 से जुड़ी हैं. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं. इन देशों में करीब 15 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो गई. रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के करीब 3.6 अरब लोग घरों में रहते हुए वायु प्रदूषण के शिकार हो गए.

सल्फर ऑक्साइड ( कोयले और तेल के जलने से), नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोक्साइड आदि कारणों से वायु प्रदूषण फैलता है. कृषि प्रक्रिया से उत्सर्जित अमोनिया इन दिनों सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गैस है. पहले नंबर पर अमोनिया (99.39), पार्टिकल पलूशन (पीएम 2.5) (77.86), वोलाइट ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स (वीओसी) 54.01 और नाइट्रोजन ऑक्साइड 49.41 स्तर पर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं.

मौत के 3 अहम कारण

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज के अनुसार, 2017 में प्रति 1 लाख की आबादी में वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा मौत (65.85) के लिए प्रदूषण के 3 कारक ज्यादा जिम्मेदार रहे. सबसे ज्यादा मौत (38.15) आउटडोर प्रदूषण यानी चिमनी, वाहनों और आग से निकलने वाले धुएं से फैले प्रदूषण के कारण हुई. इसके बाद घर से निकलने वाले प्रदूषण (21.47) और ओजेन क्षरण (6.23) के कारण सबसे ज्यादा मौतें हुईं.

क्षेत्र के आधार पर देखें तो आउटडोर प्रदूषण के कारण 2017 में सबसे ज्यादा मौतें दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और ओसिनिया में हुई जहां वैश्विक स्तर पर मारे गए 28.5 लाख लोगों में से 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इसके बाद दक्षिण एशिया का नंबर आता है जहां 7,96,802 लोगों की मौत हुई.

अगर 2017 में होने वाली मौत और देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की बात की जाए तो मिस्र की स्थिति सबसे खराब है जहां मौत का आंकड़ा प्रति 1 लाख पर 109.62 को पार कर गया जबकि यहां की जीडीपी प्रति व्यक्ति 10,550 डॉलर है. भारत की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. प्रति 1 लाख पर 70.8 है जबकि जीडीपी 6,427 प्रति डॉलर है.

10 में से 7 भारतीय शहर सबसे प्रदूषित

मार्च में एयर विजुअल और ग्रीनपीस की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 7 शहर भारत के हैं, जिसमें दिल्ली से सटे गुरुग्राम को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में आंका गया. गुरुग्राम के अलावा 3 अन्य शहर और पाकिस्तान का फैसलाबाद शीर्ष 5 प्रदूषित शहरों में शामिल है. गुरुग्राम के बाद गाजियाबाद, फैसलाबाद (पाकिस्तान), फरीदाबाद, भिवानी, नोएडा, पटना, होटन (चीन), लखनऊ और लाहौर का नंबर आता है.

इसी तरह शीर्ष 20 शहरों में 18 भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़े हैं. अपनी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को इस लिस्ट में 11वां स्थान मिला है. एयर विजुअल और ग्रीनपीस की यह रिपोर्ट पीएम 2.5 पर आधारित है. पीएम 2.5 वायुमंडलीय कण पदार्थ को संदर्भित करता है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का होता है, जो इंसानी बाल के व्यास का लगभग 3 फीसदी है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ जाता है और साफ दिखना भी कम हो जाता है. इन कणों का हवा में स्तर बढ़ने का बच्चों और बुजुर्गों पर बुरा असर पड़ता है.

दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के स्तर पर सुधार की तमाम कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन सुधार की जगह स्थिति खतरनाक होती जा रही है. सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश के तमाम शहर हैं जो इससे ग्रसित हैं. प्रदूषित जीवन जीने को मजबूर करोड़ों लोगों की जिंदगी हमेशा दांव पर लगी हुई है. अगर आज की स्थिति में सुधार नहीं आया तो अगले एक दशक में प्रदूषण की स्थिति विस्फोटक हो जाएगी.


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