गजबहालः प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दो फीसदी दवा भी नही मौजूद! डाक्टर बाहर की दवा लिखने को इसलिए हैं मजबूर
देहरादून। कोरोनेशन अस्पताल के डाक्टर एन०एस० बिष्ट ने प्रदेश की लंगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था और उसके जिम्मेदारों की पूरी कलई खोल कर रख दी है। डा० बिष्ट की माने तो ‘प्रदेश के अस्पतालों में दो फीसदी मरीजों के इलाज तक के लिए दवाइयां पूरी नहीं है’।
सरकार में बैठे जिम्मेदार समय-समय पर सरकारी डाक्टरों को बड़ी बेशर्मी से बाहर की दवाइयां ना लिखने की हिदायत देते हैं। और अपने जारी किये इन आदेशो पर खुद ही वाही-वाही भी लूट जाते हैं। जिससे ऐसा माहौल बन जाता है मानो सरकारी अस्पताल में बैठा हर डाक्टर ‘खलनायक’ है जो दवा कम्पनियों के इशारों पर काम कर रहा हो। लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और भी है।
डा० बिष्ट के मुताबिक ‘सरकारी अस्पतालों में निजी अस्पतालों का खर्चा ना उठा सकने वाले मरीज आते हैं। जिनमें ज्यादातर मरीज शुगर, बीपी, दमा, गठिया, मिर्गी, माइग्रेन, सर्वाइकल लो बैकपेन, थायराइड, बुखार, एलर्जी के आते हैं। इस मरीजों को देने के लिए सरकारी अस्पतालों में दूसरे या तीसरे प्रोटोकॉल की कोई दवा मौजूद नहीं है।’
डा० बिष्ट ने स्वास्थ्य महानिदेशालय में होने वाली डॉक्टरों की बैठकों को भी प्रपंचपूर्ण बताया है। उनके मुताबिक ’यहां इन बैठकों में स्वास्थ्य सुधारों की बजाय डाक्टरों पर छींटाकशी की बाते होती है।’ उन्होंने महानिदेशालय में चल रही नेक्ससबाजी और सालों से जमे डाक्टरों का भी मुद्दा उठाया है।
डा० बिष्ट के मुताबिक रसूखदार ‘डॉक्टर निदेशालय में सामान की खरीद-फरोस्त और कर्मचारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के भ्रष्टाचार का कुचक्र बनाकर अड्डा जमाये बैठे हैं। और दिन भर वहां से अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों को विभिन्न तरीकों से डराते और जलील करते हैं।
डा० बिष्ट के इस बयान को झुठलाया नहीं जा सकता है। और इस बात की तस्दीक दून मेडिकल कालेज में कार्यरत प्रो० डाक्टर नैथानी का तबादला प्रकरण भी करता है। गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले दून मेडिकल कालेज की डाक्टर नैथानी का चंद घटों में दून से अल्मोड़ा तबादला कर दिया गया। बताया जाता है कि डा० नैथानी का कसूर इतना भर था कि उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव की धर्मपत्नी के साथ जुबानदराजी कर दी थी। हालांकि अब उक्त सचिव का दूसरे जगह तबादला हो गया है।
दूसरी तरफ, स्वास्थ्य विभाग की इन हकीकत से मुंह फेरे ‘जिम्मेदार’ सरकारी अस्पतालों को सर्वश्रेष्ठता का सर्टिफिकेट बांट कर वाहवाही बटोरने में मशगूल है। हालांकि किन पैरामीटर के आधार पर इन अस्पतालों को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया समझ से परे है।