September 22, 2024

गजब! इसे आग पर मत पकाइए जनाब, बस ठंडे पानी में डालें और आधे घंटे में चावल तैयार

गजब! इसे आग पर मत पकाइए जनाब, बस ठंडे (नॉर्मल) पानी में डालें और आधे घंटे में चावल पककर खाने के लिए तैयार। …तो है ना गजब का यह चावल।

दरअसल ये धान की ऐतिहासिक किस्म है। मुगलकाल में सैनिक इस धान की किस्म से तैयार चावल खाते थे। समय के साथ इसकी उपज भी बंद हो गई और इस्तेमाल भी। एक बार फिर से इस धान की उपज शुरू की जा रही है। इस धान के चावल की खासियत यही है कि इसे आग पर पकाने की जरूरत नहीं पड़ती। सामान्य पानी में डालिए और आधे घंटे छोड़ दीजिए। चावल पककर तैयार। अब इसे छानिए और खाइए। है ना गजब का चावल।

महाराष्ट्र बीज निगम के पूर्णिया कार्यालय ने पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान से यह बीज मंगाया है, जिसकी खेती इस सीजन में पूर्णिया के जलालगढ़ में होगी। किसान विश्वनाथ अग्रवाल अपने खेत में धान का पौधा (बिचड़ा) डालने को तैयार हैं। वह प्रायोगिक खेती के बड़े हिमायती हैं।

महाराष्ट्र बीज निगम के अधिकारी आनंद कुमार सिंह बताते हैं कि असम के कुछ इलाकों में यह धान उपजाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बाढ़ प्रभावित इलाकों के मजदूर जब खेतों में काम करने जाते हैं तो यही चावल लेकर जाते हैं। काम के दौरान पानी में डालकर चावल पकाते करते हैं और नमक-प्याज-अचार के साथ मिलाकर खा लेते हैं। वर्द्धमान में कृषि अनुसंधान केंद्र ने असम से धान मंगवाया और इसका बीज तैयार किया गया है।
 
आनंद कुमार सिंह भी वद्धर्मान के संपर्क में आए और पूर्णिया में खेती करवाने की सोची। 25 मई के बाद रोहिणी नक्षत्र में वह बीज डालेंगे। उम्मीद है कि 21 दिन में पौधा (बिचड़ा) आ जाएगा। फिर सही समय पर बिचड़ा खेत में डालेंगे।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह कहते हैं कि ये चावल काफी पौष्टिक हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट, पेप्टिन समेत कई पौष्टिक तत्व हैं। यह चावल आम चावल से थोड़ा मोटा होता है, जबकि इसका पौधा आम धान के पौधे से बड़ा होता है। आनंद कुमार सिंह कहते हैं कि पहली बार तो प्रोजेक्ट के तौर पर कम क्षेत्रफल में खेती करने की योजना है। उसके बाद आगे दूसरे किसानों को भी इसके लिए जागरूक किया जाएगा। धान उपजने के बाद उसना(पक्का) चावल तैयार करने वाली प्रक्रिया के तहत धान को उबाल कर सुखाया जाता है, फिर चावल निकाला जाता है।

सैनिकों को होती थी सुविधा
मुगल काल में सैनिक इस चावल का इस्तेमाल करते थे। चावल और गुड़ लेकर सैनिक निकल पड़ते थे। जहां पड़ाव डाला, वहीं पर पानी में इसे रख देते थे। थोड़ी देर में चावल पककक तैयार हो जाता था, जिसे गुड़ के साथ खाया करते थे। खाने के लिए ज्यादा साजो-सामान ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। शरीर को आवश्यक तत्व चावल और गुड़ से मिल जाते थे। बड़ी बात ये कि यह आसानी से उपलब्ध और सस्ता होता था।

काले धान की भी होगी खेती
बंगाल के धौलपुर में कुछ ऋषियों के आश्रम हैं, जहां काला चावल तैयार होता है। सामान्य धान की तरह पीले रंग के धान के अंदर चावल का रंग काला होता है। वहीं से बीज मंगवा लिया गया है। इस सीजन में प्रयोग के तौर पर इसकी भी खेती होगी। इस चावल को अन्य चावल की तरह पानी गर्म करके पकाया जाता है। बंगाल के बाकुरा में भी कुछ जगहों पर इसकी खेती होती है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com