September 22, 2024

पहाड़ के सामाजिक सरोकारों का एक गुमनाम सिपाही

केदारघाटी के आपदा प्रभावित बच्चों के लिए बन गये रक्षक
– अब तक 24 गरीब लडकियों की शादी में सहयोगी रहे हैं विजय जुयाल

गुणानंद जखमोला

इन दिनों टिहरी झील में वाटर स्पोर्ट्स चल रहे हैं। झील में सी-प्लेन उतारने और सपनों के महल बनाए जा रहे हैं। लेकिन इस सरकार को कौन समझाए कि उसी झील पर 2013 की आपदा के निशान बने हुए हैं कि यही गंगा हजारों लोगों को लील गयी थी। मंदाकिनी के रौद्र रूप ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। प्रकृति से अत्याधिक मानवीय छेड़छाड़ का यह बदला था। सरकारें नहीं चेती हैं। खैर, बात आपदा की तो सरकार आपदा प्रभावितों को मुआवजा देकर चुप बैठ गयी। सोचा, उनका जीवन तर हो गया। पर धाद संस्था का एक गुमनाम सिपाही विजय जुयाल आपदा के बाद केदारघाटी के गांव-गांव घूम रहा था। हर गांव में ऐसे बच्चे मिल जाते जिनका सहारा केदारनाथ आपदा ने छीन लिया था। धाद और कई संगठनों का प्रयास था कि आपदा प्रभावित बच्चों की पढ़ाई न रुके। संस्थाएं कई थी, लेकिन धरातल पर काम करने वाला व्यक्ति एक था, विजय जुयाल।

समाजसेवी विजय जुयाल ने मीलों पैदल चलकर केदारघाटी के गांव-गांव घूमकर आपदा प्रभावित 175 बच्चों की न केवल तलाश की बल्कि बरसों तक यह सुनिश्चित किया कि उन बच्चों को हर महीने 800 रुपये मिलते रहें ताकि उनकी पढ़ाई में व्यधान न आए। यही नहीं वह आज भी पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग के गांवों में अनाथ या गरीब लड़कियों की शादी में भरपूर आर्थिक व अन्य सहायता करते हैं।

सबसे अहम बात यह है कि विजय जुयाल जी बहुत ही साधारण परिवार से हैं। वह सक्षम लोगों से दूसरों के लिए मदद मांगते हैं और फिर जरूरतमंद तक यह सहयोग पहुंचाते हैं। वह धाद, ओएनजीसी महिला पालीटेक्निक, उत्तरजन टुडे समेत कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। कोरोना काल में भी वह गांवों में लोगों की मदद के लिए पहुंचे और खुद कोरोना संक्रमित हो गये। ठीक हुए और दोबारा पहाड़ों की ओर निकल गये।

समाजसेवी विजय जुयाल जी का जीवन संघर्षमय रहा है। राज्य अंादोलन के दौरान वह लगातार दो साल तक पहाड़ के 1100 गांवों में घूमे। लोगों को जागरूक करने की कोशिश की। 74 वर्षीय विजय जुयाल अपने आप में एक कर्मठ योद्धा हैं जो पहाड़ के सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध हैं। वह फ्रंट में कहीं नहीं दिखाई देते, लेकिन बरगद की जड़ की तरह समाज को जोड़ने के लिए मजबूत से जमे रहते हैं।

उनके समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को इसी बात से आंका जा सकता है कि 74 साल की उम्र में भी उन्होंने इस बार एलआईसी के एमडीआरटी टारगेट को हासिल किया है। यानी एक साल में 35 लाख रुपये की एलआईसी की है। यानी अपने काम के प्रति भी पूरी तरह समर्पित।

ऐसे कर्मठ, जुझारू और पहाड़ की माटी और थाती के प्रति समर्पित सिपाही को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। उनके स्वस्थ, सुखी जीवन और दीर्घायु की कामना।

वरिष्ठ पत्रकार गुणांनद जखमोला के फेसबुक से साभार


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