विश्लेषणः 68 प्रतिशत ठाकुर मतदाता करते हैं केदारनाथ में ‘विधायक’ का फैसला

kedarnath

पहाड़ भांप रहा था मिरे इरादे को
वो इसलिए भी कि तेशा मुझे उठाना था ।

ये कोई 4-5 माह पहले ही की बात होगी, मित्र तीरथसिंह रावत जी के मुख्यमंत्री, उत्तराखंड सरकार बनने के बाद मुझे डॉ हरकसिंह रावत को यह कहने जाना पड़ा था कि मुख्यमंत्री जी का सहयोग करना।

एक-आध घंटे की मुलाकात के दौरान अचानक मैंने भारतीय जनता पार्टी से केदारनाथ विधानसभा सीट से स्वयं की पैरवी भी कर डाली।

सोचा था कि हरकसिंह जी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के छात्र संघर्षों के साथ ही उनके 1989 के विधानसभा चुनाव में प्रचारक बनने की सम्पूर्ण जानकारी है।

डॉ हरक सिंह रावत जी को अपना बायो-डाटाज सौंपा तो वे तपाक से बोल उठे ३.
बुडेरा, आपसे बड़ा बायो-डाटाज पूर्व विधायक श्रीमती आशा नौटियाल और श्रीमती शैलारानी रावत के पास है। आशा जी जिला पंचायत सदस्य के साथ ही दो बार विधायक और शैलारानी वहां क्षेत्र पंचायत प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष और विधायक रह चुकी हैं।

मुझे हरकसिंह जी के इस चालाकी का भान ही न था कि वे इस बार कोटद्वार से केदारनाथ सरकने का प्लान बना बैठे हैं। मैंने उन्हें बताया कि जब मैं 1986-87 में छात्र राजनीति में उतरकर बद्री केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का ताना बाना बुनकर 1992-93 में छात्र संघ अध्यक्ष गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल सहित 3 बार छात्रों का प्रतिनिधित्व कर चुका था तब केदार घाटी में आशा नौटियाल और शैलारानी रावत को कोई भी नहीं जानता होगा।
ये दोनों तो 1996 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में महिला आरक्षण के बाद की राजनीतिक उपज मात्र हैं ।
फिर मैंने उन्हें बद्री केदारनाथ विधानसभा सभा से बनी केदारनाथ और बद्रीनाथ विधानसभा सीटों का भौगोलिक और सामाजिक परिवेश बताकर स्पष्ट किया कि केदारनाथ विधानसभा सीट पर अब तक के विधानसभा चुनाव की यह स्थिति रही है दृ

2002 के पहले राज्य विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने आशा नौटियाल को तो कांग्रेस ने शैलारानी रावत पर दांव खेला जिसमें 68 प्रतिशत ठाकुर मतदाताओं के साथ ही 20 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं के साथ ही 60 प्रतिशत मतदाताओं वाले अगस्त्यमुनि विकास खंड का प्रत्याशी होने के बाद भी आशा नौटियाल सिर्फ और सिर्फ इसलिए जीत गयीं क्योंकि भाजपा द्वारा शैलारानी रावत को जनपद से बाहर का प्रत्याशी प्रचारित करने में सफलता प्राप्त की।
कमोवेश यही स्थिति 2007 के चुनाव में हुई और इस बार केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र से दूर गोपेश्वर, चमोली में स्थायी निवासी के साथ ही जड़ी बूटी केंद्र को विद्यापीठ, गुप्तकाशी से गोपेश्वर, मण्डल ले जाने के आरोप के रूप में प्रचारित किये जाने के कारण आशा नौटियाल ने कांग्रेस प्रत्याशी को हरा दिया।
2002 में बसपा प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़े लक्षमण सिंह रावत को 5 हजार के लगभग वोट पड़े थे जो यदि कांग्रेस को पड़ती तो आशा नौटियाल उसी समय हार जाती। इसी प्रकार 2007 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस में बगावत के कारण लगभग 4-5 हजार वोट कम होने से एक बार फिर 2 हजार वोटों से चुनाव जीतने में कामयाब हो गयीं)

2012 के विधानसभा चुनाव में आशा नौटियाल की केदारनाथ विधानसभा में 10 वर्षीय पूर्ण विफलता से आक्रोशित जनता ने शैलारानी के बाहरी होने के आरोप को धत्ता दिखाकर भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल को हरा दिया। इसी प्रकार 2017 के चुनाव में बदली परिस्थितियों में कांग्रेस ने फिर लगातार दूसरी बार यह सीट जीतने में सफलता प्राप्त की।

लेकिन 2017 का केदारनाथ विधानसभा चुनाव यह स्पष्ट संकेत कर गया कि३..
1- केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र से तीन ठाकुर प्रत्याशियों को मिले लगभग 40 हजार वोट यह विधानसभा ठाकुर प्रत्याशियों के लिए बड़ी मुफीद है।

2- लगातार 3 बार महिला प्रतिनिधित्व के कारण केदारनाथ विधानसभा का रोजगार एवं विकास में लगातार पिछड़ते रहना यहाँ के मतदाताओं को अस्वीकार्य है और पुरुष प्रतिनिधित्व को ही उभारने के लिए उत्साहित हैं।
यही कारण है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पहले और दूसरे नंबर पर दोनों पुरुष और दोनों ही ठाकुर प्रत्याशी रहे।
खैर, ये तब है जब राष्ट्रीय पार्टियाँ, योग्य, त्याग-संघर्षशील और अनुभवी दावेदारों की तौहीन कर जातिवाद की राजनीति के तहत क्षेत्र के लोगों पर अयोग्य प्रत्याशियों को थोपने का पाप करती हैं।

हाँ, मैं डॉ हरकसिंह रावत की बात कर रहा था कि वे यह सब तथ्य जानकर प्रभावित हुए और स्वयं के लिए केदारनाथ विधानसभा सीट सुरक्षित मान बैठे। हाल के दिनों में उनकी यह कोशिश जमीनी बनते देख मैं क्रोधित हुए विना नहीं रह सका तो मैंने केदारनाथ विधानसभा सीट पर हरकसिंह रावत के दावेदारी के लिए एक टी वी चौनल के ग्रुप डिस्कशन में प्रतिभाग किया।

और कल रात ही उनकी बर्खास्तगी का समाचार सुना तो
यह पोस्ट आप सभी के साथ शेयर किये विना नहीं रह सका कि मात्र 2 हजार ब्राह्मण और 4-5 हजार तीर्थ पुरोहितों वाली केदारनाथ विधानसभा सीट पर भाजपा जातिवाद के मकड़जाल से बाहर किसी भी जाति के भाजपा के योग्यतम् कार्यकर्ता को ही उमीदवार बनाए ताकि३..

2017 में यहाँ के मूल निवासी होने के बाद भी यहाँ स्थाई निवास न करने के हेतु प्रचारित कांग्रेस प्रत्याशी श्री मनोज रावत न केवल संसदीय परंपरा में पारंगत हैं वरन् अब उन पर स्धाई तौर पर बाहर निवास करने का आरोप भी लगाना असंभव है क्योंकि वे वर्तमान विधायक हैं।

बीरसिंह बुडेरा (गुरु जी) के फेसबुक से साभार

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