चौधरी चरण सिंह के बहाने राकेश टिकैत और जयंत चौधरी की मुलाकात महज़ एक संयोग या फिर प्रयोग!
देश की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है और प्रदेश में चुनावों की रणभेरी कभी भी बज सकती है। लेकिन इससे पहले एक ऐसा वाकया सामने आया है, जिसने सूबे के सियासी हलकों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म कर दिया है।
इसके बाद जो नज़ारा देखा गया उसने कई तरह के कयासों को हवा दे दी। हुआ कुछ यूं कि हवन कुंड में सामग्री राकेश टिकैत डाल रहे थे और घी डालने का जिम्मा जयंत चौधरी ने उठाया। यही नहीं, ये दोनों इस काम में एक दूसरे की मदद भी कर रहे थे।
इस बारे में सुकेश रंजन कहते हैं कि राजनीतिक विश्लेषक इस गठबंधन को गंभीरता से देख रहे हैं। हालांकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को भारी समर्थन दिया था। जबकि आरएलडी इस मोर्चे पर काफी पिछड़ी हुई नज़र आई थी।
सुकेश रंजन बताते हैं कि इस बार किसान आंदोलन के ज़रिए आरएलडी यूपी में अपनी खोई पैठ फिर से पाने की कोशिश कर रही है। वहीं, किसानों की रैलियों में भी भाजपा के विरोध की बात खुले आम कही जाती रही है। किसान आंदोलन के दौरान भी ग़ाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत से मुलाकात कर जयंत चौधरी सुर्ख़ियों में आ गए थे।
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों पर हमारा ध्यान ले जाते हुए सुकेश रंजन कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों का एक अचूक गठबंधन बनता रहा है। एक जमाने में ये दोनों साथ-साथ ही वोट किया करते थे। लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद समीकरण बिगड़ गए। इलाके में धार्मिक ध्रुवीकरण साफ दिखा और बीजेपी ने वहां अजेय बढ़त हासिल की।
लेकिन कृषक वर्ग में जाटों के बहुतायत में शामिल होने की वजह से अंदर-अंदर कोई खिचड़ी पकने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं। क्योंकि इस चुनाव में सपा से हाथ मिलाने के बाद आरएलडी फिर से अपने कोर वोटर यानी कि जाटों को अपने पक्ष में लाने की कवायद में जुट गई है।
बता दें कि यूपी में जाटों की आबादी 6 से 8% तक आंकी जाती है। यदि पश्चिमी यूपी की बात करें तो इस समुदाय की तादाद 17% से ज्यादा है। लोकसभा सीटों के लिहाज़ से देखें तो यूपी की करीब 18 सीटों पर इस समुदाय का सीधा प्रभाव देखा जाता रहा है। जबकि विधानसभा के हिसाब से जाटों का 120 सीटों पर सीधा दखल है। वहीं, मुस्लिमों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में ये समुदाय करीब 19 फीसदी पर अपनी भागीदारी दर्ज़ कराता है।
ऐसे में यदि सपा और आरएलडी का गठबंधन जाट और मुसलमानों को फ़िर से एक जाजम पर ला पाने में कामयाब रहा तो सूबे में बड़ी राजनीतिक उठापटक से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
हालांकि किसान बार-बार ये बात भी कहते रहे हैं कि राजनीति से उनका कोई भी लेना देना राजनीति से नहीं है। राकेश टिकैत ने भी जयंत चौधरी से हुई इस मुलाकात को सिर्फ़ एक संयोग ही बताया। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यदि ये संयोग की बजाय एक प्रयोग हुआ तो, भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।
दूसरी तरफ़, चुनावों से ठीक पहले कृषि कानूनों को वापिस लेकर भाजपा और पीएम मोदी ने भी डैमेज कंट्रोल की पूरी कोशिश की है। अब देखने वाली बात होगी कि उनकी ये कवायद कितनी कामयाब हो पाएगी?