सावधान: बहुरुपिया का खेल और सूर्पनखा जैसा हाल, नकली सरदार के कहीं आप तो नही शिकार!

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उत्तराखंड के हर कण में देवताओं का वास है। इस लिए इसे देवभूमि कहा जाता है। हमारे देश का नाम जिस प्रतापी राजा के नाम पर पड़ा है उनका कोटद्वार (कण्वाश्रम) से अटूट संबंध रहा है। इस लिए इसे देवनगरी भी कहा जाता है। आज हम कोटद्वार पर चर्चा इस लिए कर रहे है कि यहा के कुछ पत्रकार भाईयों ने एक नवीन जानकारी उपलब्ध कराई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से गढ़वाल का प्रवेश द्वार कोटद्वार कुछ दिन पूर्व अचानक चर्चा में आया था। पत्रकार साथियों के मुताबिक यहां एक बहुरुपिया आया, इसके कुछ समय बाद यहां एक हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ जिसके कारण स्थानीय पत्रकारों को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।

इससे पहले आपको बता दूं कि बहुरुपिया का सामान्य अर्थ वेश बदल कर आना होता है, जिससे उसे कोई पहचान नहीं सके। लेकिन यह बहुरुपिया और कोई नहीं सूर्पनखा के वंश का निकला।
याद है या भूल गये सूर्पनखा कौन थी। अरे सूर्पनखा रावण की बहन जो पंचवटी में राम और लक्ष्मण के सामने अपनी राक्षसी पहचान को छुपाकर आई थी। उसने सोचा था कि यदि वह पहले ही अपने असली रुप राक्षस के वेश में आ गई तो वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पायेगी। इस लिए तो वह बहुरुपिया बनी लेकिन राक्षसी प्रवृति होने के चलते उसका भांडा फूट गया और वह लक्ष्मण से अपनी नाक कटवा बैठी। इतना ही नहीं अपने भाई रावण को बरलगाकर उसने उसके कुल का ही नाश कर दिया।

अब वापस आ जाइये, कोटद्वार में बहुरुपिया बनकर आई सूर्पनखा पर। फेसबुक लाइव कर सुर्खिया बटोरने वाले एक साहब का मकसद यहां की भोली-भाली जनता समझ नहीं पा रही है या समझना नहीं चाहती है या चंद स्वार्थी लोग गुलाबी कागजों के मोह पाश में इस कदर फंस चुके हैं कि उन्हें अच्छे बुरे में फर्क ही नहीं दिखाई दे रहा है। फेसबुक लाइव के माध्यम से जब इन्हें एक कॉमेंट से इन्हें कोटद्वार के आसपास खनन की जानकारी मिली तो इनको एक आइडिया आया। क्यों ना कोटद्वार की सैर कर आया जाए, लेकिन आते कैसे ? तो इन्हें सूझा कि रुप बदलकर जाया जाये तो कैसा रहेगा। तो सूर्पनखा की तरह बहुरुपिया बनकर फरवरी माह में पहुँच गये कोटद्वार। सूर्पनखा ने तो सुंदर स्त्री का रुप धारण किया था लेकिन यह अपना रुप बदलने के लिए ’’सरदार’’ बन गया। अपने निजी स्वार्थ के लिए इसने सिक्ख धर्म की वेशभूषा का सहारा लिया। यह हम नहीं कह रहे कोटद्वार के साथियों ने जानकारी दी है।

इन्हें यहां कुछ स्थानीय साथियों की जरुरत हुई तो जल्दी पैसा कमाने की चाहत रखने वाले साथी जोड़ लिये गए और पूरा मौका मुआयना करके एक योजना बना डाली। तय हुआ कि स्थानीय लोग ही इसमें कुछ करें मैं परदे के पीछे से आप लोगों को सब कुछ मुहैया कराऊंगा। अपने जीवन की रणनीति के तहत सोचा कि डील हुई तो ठीक, नहीं हुई तो सरकार के खिलाफ एक मुद्दा मिल जायेगा और सरकार के खिलाफ मेरा कुनबा भी बढ़ जायेगा। नकली सरदार बनकर कोटद्वार घूम रहे बहुरुपिये को पगड़ी का मान नही रहा। नकली सरदार ने अपनी पगड़ी निकालकर गाड़ी में रख दी। क्योकि पगड़ी का नियम नकली सरदार को कहा पता था। बहरूपिया यात्रा के दौरान इन महाशय को कोटद्वार में एक सज्जन ने पहचान लिया। पहचानने वाला एक युवा निकला। उसने पूछ लिया कि आप तो वही है ना…. जो रोज सरकार के खिलाफ हल्ला बोलते हैं। उसने सेल्फी खींचने के लिए मोबाइल निकाला तो ये डरे सहमे बात का बिना जवाब दिये कोटद्वार से बिजनौर की तरफ रफू चक्कर हो गये। उसके बाद अन्य माध्यमों से अपने साथियों से सम्पर्क करते रहे।

रणनीति के तहत किस्मत ने यहां पासा पलट दिया नतीजा इनकी सोच के विपरीत निकला। विश्वसनीय सूत्र बता रहे हैं कि खनन कारोबार में अपनी हिस्सेदारी को लेकर बनते-बनते बात बिगड़ गई तो स्टिंग करके ब्लैकमेल करने की व्यूह रचना शुरु की गई। जिसका परिणाम फिर सबने देखा। अवैध खनन के नाम पर ठेकेदारों को ब्लैकमेल करने का श्श्खेलश्श् खेला गया थाना और कोर्ट कचहरी हुई, ठेकेदार को ब्लैक मेल करने वाले और थाने के भीतर पुलिस को ही गरियाने वाले फरार हुए और ये उसी सूर्पनखा की आँचल की छांव में छिपे रहे, इस घटना में इस ’’गैंग’’ का सूर्पनखा से सम्बन्ध का तब खुलासा हुआ जब ब्लैकमेल ’’गैंग’’ देश की सबसे ऊँची कानूनी संस्था से ही गिरफ्तारी के खिलाफ स्टे पा गये, जबकि इनकी हैसियत इतनी नहीं कि ये उस तरफ देख भी सकें यानि अपने गुर्गों को बचाने में सूर्पनखा ने अपनी काली कमाई का मुंह खोल दिया और ’’गैंग’’ को राहत दिलवा दी।

आपको बता दें कि हकीकत यह है कि दूसरा पक्ष जब कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने मामले को बहुत गंभीर मानते हुए सूर्पनखा के साथियों के गिरफ्तारी के आदेश दिए थे, पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद जब गिरफ्तारी नहीं हो पाई तो पुलिस ने पूरे शहर में मुनादी कराई साथ ही घर में कुर्की के आदेश चस्पा किए थे इस पूरे मामले में कहीं से कहीं तक भी सरकार की कोई भूमिका नहीं रही। लेकिन सूर्पनखा ने इस मामले में भी सरकार को ही दोषी ठहराने पर कोई कसर नही छोड़ी।

जैसे सूर्पनखा ने अपनी लड़ाई को सार्वजनिक किया था। वैसे ही इस सूर्पनखा ने अपने जैसे विचारों के लोगों को इकट्ठा करना शुरु कर दिया है। पुरानी कहावत है ना बड़ी मछली हमेशा से छोटी मछलियों का शिकार करती है तो यहां पर भी वही होगा। जिस तरह सूर्पनखा ने अपने स्वार्थ के लिए अपने भाई बंधुओं और कुल का सर्वनाश कराया उसी तरह यह सूर्पनखा भी अपनी बिरादरी से जुड़े लोगों का अहित कराने लगी है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने जो सिक्खों के लिए पांच नियम बनाये थे। उसमे केश संजोने के लिए पगड़ी रखने का नियम बनाया था। इसने खास एजेंडे के तहत पगड़ी पहनकर अपनी पहचान को छुपाया।

बेहद घटिया मानसिकता के इस व्यक्ति को यह अहसास भी नही हुआ कि जानबूझकर यह सिक्ख धर्म का कितना बड़ा अपमान कर रहा है। त्याग और बलिदान के नाम से जिस धर्म को पूरा विश्व जानता है यह भगोड़ा उसी धर्म की आड़ लेकर अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए नकली सरदार बनकर घूमता रहा है। यह अलग बात है कि कुछ घटिया और इन्हीं की जैसी सोच रखने वाले सूर्पनखा के साथियों को समझ में यह बात नहीं आ रही है और जिनके समझ में आ गई है उन लोगों ने इस सूर्पनखा से किनारा कर लिया है। ना जाने सूर्पनखा अभी और कितने अपने बंधु बांधव और अपनी बिरादरी के लोगों को दिग्भ्रमित करेगी ? सावधान यह सूर्पनखा किसी का भला नहीं चाहती, यह अपने स्वार्थ के चलते कार्य कर रही है। इस खास खबर के बाद आप भी इस सूर्पनखा से उचित दूरी बनाए रखें इसके झांसे में ना आए।