September 22, 2024

बड़ी खबरः चहेते अधिवक्ताओं पर ऊर्जा निगमों में किया जा रहा है मनमाना खर्च

देहरादून। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेन्द्र सिंह नेगी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को ऊर्जा निगमों में एक विशेष अधिवक्ता अमित आन्नद तिवारी को किये जा रहे नियम विरूद्ध भुगतानो की जांच स्वतंत्र एजेन्सी से किये जाने की मांग की है।
जितेन्द्र नेगी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को भेजे पत्र में कहा है कि जानकारी मिली है कि अधिवक्ताओं को काम पर रखने के नाम पर राज्य के ऊर्जा निगमों में मनमाना खर्च किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले उत्तराखंड जल विद्युत निगम के लिए एक अधिवक्ता अमित आन्नद तिवारी ने काम करना शुरू किया। ऐसा बताया जा रहा है कि उनकी नियुक्ति के पीछे राज्य व निगमों के कुछ उच्च अधिकारी सम्मलित थे इसलिए धीरे-धीरे उन अधिकारियों ने अन्य सरकारी उपक्रमों में भी इस अधिवक्ता को नियुक्ति प्रदान करना शुरू कर दिया तथा उन्हे विशिष्ट कार्यो के लिऐ नियुक्त किया जाने लगा। उन्हे मोटी फीस देने के उददेश्य से निगमों के पैनल पर नहीं लिया गया अपितु उन्हे विशेष कार्य के रूप में वाद दिये जाने लगे।

जितेन्द्र नेगी ने पत्र के माध्यम से बताया कि यह नियुक्तियाँ यू0जी0वी0एन0एल0 के एक विधि अधिकारी द्वारा कराई जा रही थी सभी मामलों में उन्हें मोटी फीस का भुगतान किया जा रहा था।

उन्होंने बताया कि ऐसा ही एक प्रकरण पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ उत्तराखंड में हुआ जिसमें उन्हें भुगतान की गई कुल राशि एक करोड़ से भी ऊपर की थी। यह भी संज्ञान में आया है कि उत्तराखंड सरकार की ओर से भी इस अधिवक्ता को उच्च शुल्क के साथ कुछ ऐसे ही मामले दिए गए है। ऐसा ही एक मामला था सरकार और मैसर्स बलगाढ़ एस0एच0पी के बीच जिसमें विभाग के विरूद्ध मध्यस्थता (आरबिट्रेशन) द्वारा 20 करोड के लगभग का अवार्ड पारित किया गया। इस वाद में लाखो रूपये इस अधिवक्ता को मोटी फीस के तौर पर दिये गए। परन्तुं आश्चर्य की बात यह है कि यह भुगतान राज्य सरकार द्वारा नही अपितु उत्तराखंड पावर कारपोरेशन द्वारा किया गया।

यहा यह उल्लेखनीय है कि इस वाद में उत्तराखंड पावर कारपोरेशन पक्षकार भी नहीं था, इसलिए यह कृत्य विधि विरूद्ध एवं अनैतिक था, परन्तु फिर भी किसी ने भी इसके विरूद्ध आवाज नहीं उठाई और न ही निगम के ऑडिट ने इस तरह के भुगतान पर कोई सवाल किये।

उत्तराखंड पावर कारपोरेशन एक स्वतंत्र निगम है, भले ही वह सरकार का उपक्रम है परन्तु इस तरह के भुगतान पूर्णतः विधि विरूद्ध है। इस वाद में भी अमित आनंद तिवारी को सरकार ने अधिवक्ता नियुक्त किया परन्तु नियुक्ति से पूर्व किसी अन्य अधिवक्ताओं से प्रस्ताव आमंत्रित नहीं किये गये। इसलिए इस अधिवक्ता को लाखो का भुगतान सम्भव हो पाया। इस प्रकार किसी व्यक्ति विशेष (एक अधिवक्ता) की नियुक्ति ही नहीं अपितु पूरे मामले की स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है। क्योंकि मात्र एक छोटा सा हाईड्रो प्लान्ट स्थापित नहीं होने के कारण सरकार ने लगभग 20 करोड़ की हानि का

वहन किया है। लोगों की धारणा है कि यह पूरी मध्यस्थता हाईड्रो प्लान्ट को फायदा पहुचाने के लिए ही अपनाई गई थी यहाँ यह भी जांच का विषय है कि किन व्यक्ति/अधिकारियों ने इससे लाभ प्राप्त किया।

ठीक इसी प्रकार से यह अधिवक्ता हाल ही में पिटकुल में एक मध्यस्थता मामले के लिए नियुक्त किये गऐ है जिसमें फिर से पूर्व के अनुसार बिना किसी तुलना या किसी अन्य व्यवहार्य प्रस्ताव की खोज के बिना मोटी शुल्क संरचना तय की गई है यह शुल्क संरचना न केवल आपको आश्चर्यचकित करेगी बल्कि आश्चर्यजनक रूप से यह सोचने पर विवश करेगी कि आखिर किस आधार पर इतनी मोटी धनराशी बाहरी अधिवक्ता को दी जा रही है।

जितेन्द्र सिंह नेगी ने संदेह जताते हुए कहा कि इस प्रकार कई मामले सुनियोजित तरीके से लाभ प्राप्त करने के उददेश्य से बनाए जा रहे है। जिस प्रकार बलगाड का मामला गले से नही उतर रहा ठीक इसी प्रकार पिटकुल में राजेन्द्र मिमानी मध्यस्थता के वाद को भीे बिना किसी औचित्य के लड़ा जा रहा है और निगम पर जानबूझकर वित्तीय बोझ उठाने का जोखिम डाला जा रहा है। यह एक जांच का विषय है क्योकि जिस सामान की खरीद-फरोख्त से संदर्भित यह मामला है उसकी कीमत में यदि निगम अपने मन मुताबिक कटोती भी कर ले तो यह सम्भव है कि अदा करने वाली राशी का फर्क सम्भवतः अधिवक्ता को दिऐ जा रहे शुल्क से कम हो।

यह तथ्य आश्चर्यचकित करेगा कि निगम के कई अधिकारी जो इस मामले से संदर्भ रखते है वह लिखित अपना मत ठेकेदार को निविदा के अनुसार भुगतान करने हेतु दे चुके है तथा निगम को इस तथ्य से भी सचेत कर चुके है कि इस मामले का निस्तारण दिसंबर 2022 के उपरान्त होने से इसका पूर्ण व्यय निगम को स्वय उठाना होगा जबकि अभी समस्त व्यय यदि निविदा के अनुरूप किया जाता है तो वह फंडिग एजेन्सी द्वारा वहन किया जाएगा परन्तु इसके विपरीत कुछ अधिकारी समस्त मामले को उलझा कर तथा असमिचीन तथ्यों के आधार पर सारा बोझ निगम पर डालने के लिए आतुर है।  इसके पीछे का उददेश्य स्वतः ही स्पष्ट है क्योकि कोई भी विवकेशील व्यक्ति ऐसा जोखिम नही उठाएगा।

पिटकुल एवं यू0पी0सी0एल0 उपक्रमों में अधिवक्ताओं का पैनल और उनकी पूर्व परिभाषित शुल्क संरचना है जो किसी भी मामले में बहुत ही कम है, जाहिर है कि अनुमोदित पैनल से बाहर कोई भी नियुक्ति केवल वित्त बोझ को बढाने के लिऐ की जाती है, क्योंकि यह मान लेना मूर्खता होगी कि सरकार या उसके उपक्रम के पैनल में अक्षम अधिवक्ता मामलों को लड़ने के लिए नियुक्त किये हैं अधिवक्ता की विशेषज्ञता और योग्यता को जाचने के लिऐ शायद इस निगमों पर कोई मापदंड हैे जिससे वह यह निर्धारित कर पाते है कि किस अधिवक्ता को कितना शुल्क दिया जाऐ, शायद इसका मापदंड मात्र स्वयं के हित को साधने के लिए है।

वर्तमान में मनमाने तरीके से किये जा रहे खर्च और इसे बढ़ावा देने वाले व्यक्ति के निहित स्वार्थ पर कई सवाल उठाता है, ऐसे प्रकरण राज्य एंव निगम को अन्दर से खोखला कर रहे है और किसी की दृष्टि में आऐ बिना कुछ लोग एंेसे नियम विरूद्ध कार्यो से लाभ अर्जन कर रहे है। इन सभी प्रकरणों की स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की आवश्यकता है। क्योंकि यह मानने के उचित कारण हैं कि इसके पीछे कोई बडी साजिश है। और यदि ऐसा है तो जाहिर है कि यह प्रदेश और प्रदेश के उपक्रमों के लिए बहुत हानिकारक है। जांच से स्पष्ट रूप से ऐसे तथ्य सामने आएंगे जो कि विभाग के अधिकारियों के सत्ता और निहित वित्तीय हितों का घोर दुरुपयोग दिखाएंगे।

इस तरह की गतिविधि और हेरफेर में लिप्त लोगों को बेनकाब करने की जरूरत है। सरकारी निकायों में काम करने से पता चलता है कि अधिकारियों की आम धारणा है कि वे बिना किसी जिम्मेदारी के कोई भी निर्णय ले सकते हैं।

यह आवश्यक है कि अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णयों में विशेष रूप से कानूनी मामलों में जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, जहां कुछ अधिकारियों के इशारे पर या उनके खिलाफ और अधिकारी के अलग-अलग विचार हैं संगठन/निगम अपने कानूनी विभाग के अवलोकन के खिलाफ भी मामले को लड़ने का स्टैंड लेता है तो उन अधिकारियों को जिम्मेदारी वहन करना चाहिए और वित्तीय बोझ संगठन/निगम द्वारा नहीं बल्कि व्यक्तिगत रूप से ऐसे अधिकारियों द्वारा वहन किया जाना चाहिए। इस तरह के कदाचार की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा होनी चाहिऐ जिससे जिम्मेदार व्यक्ति और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की
जा सकें।


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