बजट सत्रः बजट में शामिल नहीं है गांव और ग्रामीण
गुणानंद जखमोला
बजट 2024 : मेरी नजर में कुछ खामियां
– बजट में गांव और ग्रामीणों, पहाड़ और पहाड़ियों को शामिल नहीं किया गया है। न तो उनकी भूमि की सुरक्षा की बात है और न पहाड़ को आबाद करने की योजना है। बजट में आपदाओं को आमंत्रित करती बांध परियोजनाएं, सुरंगे और प्रकृति के साथ अत्याधिक मानवीय छेड़छाड़ को न्योता देती योजनाएं शामिल की गयी है।
— बजट में पर्यावरणीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन पर कोई प्रावधान नहीं है। जबकि प्रदेश में हर साल बड़ी संख्या में आपदाएं आती हैं। इसमें भारी जनधन हानि होती है।
– बजट में 14 हजार करोड़ का जेंडर बजटिंग का प्रावधान है लेकिन प्रदेश में न तो महिला नीति बनी है और न ही महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अध्ययन के लिए कोई प्रावधान। प्रदेश में 2 लाख 12 हजार महिलाएं विधवा पेंशन ले रही हैं। इसके अलावा अन्य हजारों एकल महिलाएं भी हैं, मसलन परित्यागी, गैर-शादीशुदा।
– जेंडर बजट में गर्भवती महिला और ग्रामीण महिलाओं को सुविधाएं देने के लिए क्या प्रयास किये गये हैं। इसका कहीं उल्लेख नहीं है। गांव कैसे आबाद होगा और पलायन कैसे रुक सकता है। इस मामले में बजट दिशाहीन है।
– बजट में बंजर भूमि पर सामूहिक खेती के लिए सात करोड़ का प्रावधान बेतुका है। बंजर होती कृषि भूमि के निदान की व्यवस्था की जानी चाहिए थी लेकिन बजट में गांव और ग्रामीण दोनों गायब हैं।
– 18 स्थानीय उत्पादों को जीआई टैग मिला, लेकिन आर्टिजन को न बाजार मिला और न सामाजिक सुरक्षा। बजट में सुदूर गांव के काश्तकार और बागवान के लिए न तो उसके उत्पाद को खरीद के लिए मंडी की व्यवस्था है न कोल्ड स्टोरेज की और न ही प्रोसेसिंग यूनिट की। बजट में स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन देने के नाम पर उन्हें ठगा गया है।
– बजट में स्कूली एजूकेशन को वोकेशनल से जोड़ने और छात्रों को स्किल्ड बनाने की दिशा में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। बेरोजगारी की समस्या पर बजट चुप है। प्रदेश में 20 से 29साल की आयु वर्ग के लगभग 56 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। बजट में ये बेरोजगार कहीं नहीं हैं।
– मानव-वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए बजट में जीरो प्रावधान है। पहाड़ से पलायन और खेती बंजर होने का यह एक प्रमुख कारण है। वन्य जीव संघर्ष देहरादून तक भी पहुंच गया है। इसके बावजूद बजट इस दिशा में निराशाजनक है।
– बजट में गैरसैंण के विकास के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है जबकि पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र रावत सरकार ने इस क्षेत्र के विकास के लिए 10 वर्ष में 25000 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही थी। उसी दल की सरकार ने गैरसैंण को हाशिए पर रखा है।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला के फेसबुक से साभार)