आरोपः निजी संस्थानों को फायदा पहुंचा रहे यूटीयू के कुलपति, सरकारी सीटें लॉक, प्राइवेट की मौज
देहरादून: उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की बीटेक काउंसलिंग में छात्र-छात्राएं अपनी पंसद का शिक्षण संस्थान नही चुन पा रहे हैं। जिसका सीधा खामियाजा इन छात्रों को आने वाले समय में भुगतना पड़ सकता है। विश्वविद्यालय की मिली भगत के कारण छात्रों को सिर्फ निजी संस्थानों को ही अपनी पंसद बनाना पड़ रहा है। क्योंकि विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर काउंसलिंग के लिए जो विकल्प दिए जा रहे हैं उसमें सिर्फ निजी शिक्षण संस्थान ही शामिल है। जबकि उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय से संबंधित राजकीय शिक्षण संस्थानों में अधिकांश सीटें रिक्त हैं।
दस्तावेज को मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के अनुषांगिग संस्थान गोपेश्वर और पौड़ी ने तो इस संबध में अपनी आपत्ती भी उच्च स्तर पर दर्ज कर दी है। उधर जीबी पंत इंजीनियरिंग (मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियरिंग) का विकल्प चुनने के लिए छात्र-छात्राओं को कम समय दिया जा रहा है। वहीं निजी संस्थान जैसे तुलास इंस्टीट्यूट, जेबीआईटी, शिवालिक, बीएफआईटी व अन्य निजी संस्थानों का विकल्प काउंसलिंग में दिखाया जा रहा है।
टिहरी के छात्र गौरव ने दस्तावेज को बताया की “जिन छात्रों ने अपने पसंदीदा कॉलेज स्लेक्ट किए हैं उन्हें किसी तकनीकी खराबी के कारण विकल्प बदलने का मौका नही दिया जा रहा है। पौड़ी के मुकेश भट्ट ने बताया “की में सरकारी कॉलेज से बीटेक में एडमिशन लेना चाहता हूँ लेकिन उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कारण मेरा ये सपना अब टूटने लगा है। मैंने 12वीं कक्षा में 84 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं।“
छात्रों ने सीधे तौर पर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर को इस पूरे प्रकरण का दोषी माना और निजी संस्थानों को लाभ पहुंचाने का आरोपी माना। इस संबंध में अभ्यार्थियों ने महामहिम राज्यपाल, प्रदेश के मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर इस संबंध में तत्काल हस्ताक्षेप करने की मांग की है। उधर आर्यन छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष नरेश राणा ने दस्तावेज डॉट इन (हिंदी) के संवाददाता को बताया की पिछले लम्बे समय से उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय स्थानीय छात्रों को उच्च शिक्षा से वंछित कर रहा है और निजी शिक्षण संस्थानों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
छात्रों की मांग है कि विश्वविद्यालय काउंसलिंग की समय सीमा बढायी जाए और एक सुधार पत्र जारी किया जाए जिसमें की सरकारी संस्थानों की सभी शाखाओं को दिखाया जाए।
इस तरह के काम से ये स्पष्ट होता है कि विश्वविद्यालय सरकारी कॉलेज की अनदेखी कर रहा है और निजी संस्थानों को फायदा पहुंचा रहा है। क्यों उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की ऑनलाइन काउंसलिंग में प्रमुख सरकारी संस्थानों के कोर्सेज नहीं दिखाय़े जा रहे हैं? क्यों उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय सरकारी संस्थानों की अनदेखी कर रहा है और निजी संस्थानों का पक्ष ले रहा है? ये बड़ा सवाल है।