इंदिरा गांधी को भिजवाया जेल, मोरारजी से भिड़े; जानें किसानों के मसीहा कहे जाने वाले देश के 5वें PM चौधरी चरण सिंह से जुड़े दिलचस्प किस्से
1 अप्रैल 1967. वो दिन जब यूपी से दिल्ली तक बड़ी हलचल मची थी. एक बड़े किसान नेता और देश के राजनेता की आंखों में आंसुओं का सैलाब था. वो चालीस साल तक लगातार कांग्रेस के लिए संघर्ष करने के बाद पार्टी छोड़ने का ऐलान कर रहे थे. रोते हुए ही पूरा भाषण दिया, कहा- “सारी उम्र कांग्रेस संस्कृति में बिताई है, अब उसे छोड़ते हुए बहुत तकलीफ़ हो रही है”. लेकिन, दो दिन बाद इससे भी हैरान करने वाला राजनीतिक घटनाक्रम हुआ. रोते हुए कांग्रेस का दामन छोड़ने वाले चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उनके नेतृत्व में यूपी में पहली ग़ैर कांग्रेस सरकार बनी. ये सरकार ऐसा अद्भुत राजनीतिक संगम बन गई, जो ‘ना भूतो ना भविष्यतो है’. कल यानी 23 दिसंबर को देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती थी. उनके जीवन से जुड़े कई दिलचल्प किस्से हैं. जिसमें इंदिरा गांधी को जेल भिजवाने से लेकर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने तक के कई वाक्या शामिल है.
जब पत्रकार ने पूछा- क्या आप प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत तत्पर हैं?
पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने अपनी आत्मकथा ‘कोर्टिंग डेस्टेनी’ में चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई के संबंधों के बीच राजनीतिक रसूख से जन्मी तल्ख़ियों का ज़िक्र किया है. किताब के मुताबिक 1978 में इस अफ़वाह ने ज़ोर पकड़ा कि चरण सिंह मोरारजी सरकार का तख़्ता पलटने वाले हैं. उन्हीं दिनों चुनाव सुधार पर एक मंत्रिमंडलीय समिति बनी थी, जिसके सदस्य थे चरण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, प्रताप चंद्र और शांति भूषण. इस समिति की बैठक में एक दिन चरण सिंह देर से पहुंचे, सबको इंतज़ार करते देख वो बहुत शर्मिंदा हुए. फिर बताने लगे कि उन्हें देर क्यों हुई? उन्होंने कहा- जब मैं कार में बैठ रहा था, तो एक पत्रकार ने सवाल पूछ लिया कि क्या आप प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत तत्पर हैं? इस पर मैंने ग़ुस्से में कहा कि प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने में क्या बुराई है? वो यहीं पर नहीं रुके. कहने लगे कि मैंने उस पत्रकार से ही सवाल पूछ लिया कि क्या तुम एक अच्छे अख़बार के संपादक बनना नहीं पसंद करोगे? और अगर तुम ऐसा नहीं सोचते तो तुम्हारा जीवन निरर्थक है.
“एक दिन मोरारजी देसाई मरेंगे और तब मैं बनूंगा प्रधानमंत्री”
मैं एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा ज़रूर रखता हूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मैं मोरारजी देसाई को उनके पद से हटाने के लिए षड्यंत्र कर रहा हूं. एक दिन मोरारजी देसाई मरेंगे और तब मैं प्रधानमंत्री बन जाऊं तो इसमें बुराई क्या है. किसी जीवित आदमी की मौत के बारे में कोई इस तरह की बात कर सकता है, ये सुनकर मंत्रिमंडलीय समिति में शामिल लोग हैरान रह गए. हालांकि, इसके ये मायने बिल्कुल नहीं हैं कि चौधरी चरण सिंह मोरारजी देसाई की मौत के बारे में कोई बयान दे रहे थे. बल्कि वो सहजता से ये बताना चाहते थे कि मोरारजी के बाद वो पीएम की रेस में हैं.
इस एक बिल ने स्थापित कर दिया किसान नेता के तौर पर
चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक बने, लेकिन अपने पूरे राजनीतिक जीवन में किसानों के मुद्दों को उठाते रहे. इसलिए उन्हें आज भी किसान नेता के रूप में याद किया जाता है. साल 1937 में 34 साल की उम्र में वो बागपत के छपरौली से विधानसभा के लिए चुने गए. इसके बाद यूपी विधानसभा में किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक ऐसा बिल लाए, जिसने यूपी समेत देश के कई राज्यों के किसानों का जीवन बदल दिया. चरण सिंह का कृषि संबंधित बिल किसानों की फसलों की मार्केटिंग से संबंधित था. इसके बाद इस बिल को भारत के तमाम राज्यों ने अपनाया. इसी बिल के पास होने के बाद चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता के तौर पर स्थापित हो गए और देश में किसानों के मसीहा बन गए.
प्रधानमंत्री बनने के बावजूद दिल्ली से लखनऊ तक ट्रेन से करते थे यात्रा
चौधरी चरण सिंह के क़रीबियों ने उन्हें आज़ादी के आंदोलन, महात्मा गांधी और कांग्रेस के सिद्धातों की मिट्टी में तपते हुए देखा. 1937 से लेकर 1977 तक वो छपरौली से लगातार विधायक रहे. उनके क़रीबी लोग बताते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके साथ भारी लाव- लश्कर नहीं देखा गया. साधारण सी एंबेसडर कार. जहाज़ में सफ़र करने के ख़िलाफ़ और प्रधानमंत्री बनने के बावजूद दिल्ली से लखनऊ तक ट्रेन से यात्रा. अगर घर में ज़रूरत के अलावा कोई बल्ब बेवजह जलता था, तो वो डांटकर फ़ौरन उसे बंद करवा देते थे. वो भारतीय राजनीति के ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने देश और समाज से न्यूनतम लिया और उसे अधिकतम दिया. यूपी से लेकर केंद्र तक की सियासत में विभिन्न पदों पर रहते हुए चरण सिंह की छवि ऐसे कड़क नेता के रूप में स्थापित हो गई थी, जो कमज़ोर प्रशासन, भाई–भतीजावाद और भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे.
एक रिश्तेदार ने चरण सिंह के CM कोटे से बुक करवा लिया था स्कूटर
चौधरी चरण सिंह के नाती हर्ष सिंह लोहित की ज़ुबानी एक दिलचस्प किस्सा काफ़ी चर्चित रहा. हर्ष ने मीडिया को बताया था कि उनके मौसाजी वासुदेव सिंह दिल्ली में काम करते थे. उस ज़माने में सबकुछ कोटे से मिलता था. मौसाजी को एक स्कूटर चाहिए था. उन्हें मालूम पड़ा कि मुख्यमंत्री का एक कोटा होता है. उन्होंने स्कूटर बुक करने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री यानी चौधरी चरण सिंह के कोटे का इस्तेमाल किया. इसके बाद जो हुआ, वो जानकर आप हैरान रह जाएंगे. चरण सिंह के नाती हर्ष सिंह के मुताबिक वासुदेव सिंह ने चौधरी साहब के पीए से मिलकर एक स्कूटर बुक करा दिया. जब स्कूटर की डिलीवरी के लिए वो लखनऊ आए, तो चरण सिंह से मिलने उनके घर पहुंचे. वहां बातों बातों में चरण सिंह उनके आने का कारण पूछा. जब वासुदेव सिंह ने कोटे से स्कूटर लेने की बात बताई, तो मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने उनसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन फ़ौरन अपने पीए को बुलाया. उन्होंने पूछा कि जब वो यूपी में रहते ही नहीं हैं, तो उन्हें यूपी के कोटे से स्कूटर कैसे दिलाया? इतना कहने के बाद चौधरी चरण सिंह ने तुरंत स्कूटर की बुकिंग कैंसिल करवाने और अपने रिश्तेदार वासुदेव सिंह के पैसे वापस दिलवाने का निर्देश दिया. वासुदेव सिंह ने घर लौटकर बताया कि लखनऊ जाकर चरण सिंह के साथ बैठना उन्हें बहुत मंहगा पड़ गया.
जब कहा था- इंदिरा गांधी को क्नॉट प्लेस में खड़ा कर कोड़े लगवाए जाएं
चौधरी चरण सिंह के जीवन में जितनी सादगी थी, उनका स्वभाव उतना ही आत्मशक्ति और आत्मविश्वास से भरा हुआ था. 1977 में इमरजेंसी का दौर ख़त्म होने के बाद जब जनता पार्टी का गठन हुआ, तो उसमें चरण सिंह की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही. बागपत के विधायक से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री चुने जाने तक चरण सिंह में इतना आत्मविश्वास आ चुका था कि राष्ट्रीय राजनीति में वो यूपी की सबसे बड़ी सियासी धुरी बन गए. उनके राजनीतिक तेवर ऐसे थे कि आयरन लेडी कहलाने वाली इंदिरा गांधी को भी उन्होंने जेल भिजवाकर ही दम लिया. चरण सिंह को गृह मंत्री के तौर पर याद रखने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ चौधरी साहब के मन में ग़ुस्सा पहले से ही था. उनका मानना था कि जिस तरह इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान एक लाख से ज़्यादा लोगों को फ़र्ज़ी मुक़दमे में बंद कर दिया था, उसी तरह इंदिरा को भी जेल में बंद किया जाना चाहिए. ये किस्सा भी बहुत चर्चित रहा कि चौधरी चरण सिंह ने एक बार कहा था- मैं तो चाहता हूं कि इंदिरा गांधी को क्नॉट प्लेस में खड़ा कर कोड़े लगवाए जाएं.
चरण सिंह के आदेश पर किया गया था इंदिरा गांधी को गिरफ़्तार
3 अक्टूबर 1977 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अहम तारीख़ है. इसी दिन देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया था. तब देश में पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. जनता पार्टी की सरपरस्ती में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और गृह मंत्री बने चौधरी चरण सिंह. इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव हुए. इंदिरा गांधी पर ये आरोप लगे कि उन्होंने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की गई जीपों की खरीदारी में भ्रष्टाचार किया था. उस वक्त रायबरेली में प्रचार के मकसद से इंदिरा गांधी के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं. विरोधियों का आरोप था कि जीपें कांग्रेस पार्टी के पैसे से नहीं, बल्कि उद्योगपतियों ने ख़रीदी हैं. इसके अलावा कांग्रेस के चुनाव प्रचार के लिए सरकारी पैसे का इस्तेमाल किया गया है. चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए शाह कमीशन बनवाया. इंदिरा के ख़िलाफ़ रोज़ गवाहियां और बयान दर्ज होने लगे. आख़िरकार चरण सिंह के आदेश पर इंदिरा गांधी को गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया. हालांकि, बाद में तकनीकी आधार पर इंदिरा को रिहा कर दिया गया.
संभाली ये जिम्मेदारियां
पहली बार 3 अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 तक वो यूपी के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 18 फरवरी 1970 से एक अक्टूबर 1970 तक दोबारा यूपी की निज़ामत संभाली. 24 मार्च 1977 से एक जुलाई 1978 तक गृहमंत्री रहे. 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक उप-प्रधानमंत्री रहे. 24 जनवरी 1979 से 28 1979 तक वित्त मंत्रालय संभाला. 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री रहे. जिस पद पर भी रहे, वहां किसान हितों की बात करते रहे. बुनियादी तौर पर खांटी कांग्रेसी रहे, लेकिन पार्टी को छोड़ने, तोड़ने और फिर उसका दामन थामने में भी कोई गुरेज़ नहीं किया. खाद से सेल्स टैक्स हटाने का फ़ैसला हो, सीलिंग से मिली ज़मीन को ग़रीब किसानों में बांटने की कोशिश हो या ज़मींदारी प्रथा के ख़ात्मे का असर ज़मीनी तौर पर दिखाई देने की कोशिश हो, जो चौधरी चरण सिंह ने कर दिया, वैसा कोई आज सोच भी नहीं सकता.
जब गिर गई थी चौधरी चरण सिंह की सरकार
यूपी के मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता रहे किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के जीवन में वो दिन भी आया, जब वो प्रधानमंत्री बने. तब तारीख़ थी 28 जुलाई 1979. बहुमत साबित करने के लिए उन्हें 20 अगस्त तक का टाइम दिया गया था. लेकिन, ठीक एक दिन पहले 19 अगस्त को इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया. यूपी के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गई. संसद का बगैर एक दिन सामना किए, चरण सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा. कहते हैं अगर इस प्रधानमंत्री ने संसद में एक भी भाषण दिया होता, तो किसानों की कहानी कुछ और होती.