September 22, 2024

चीन ने हिंदुस्तान के खिलाफ छेड़ा इनडायरेक्ट वॉर

बॉर्डर पर सैनिकों की आमने-सामने की लड़ाई में बुरी तरह मुंह की खाने के बाद अब चीन ने हिंदुस्तान के खिलाफ इनडायरेक्ट वॉर छेड़ दिया है। इस वॉर का नाम है, स्पाई वॉर। खुफिया एजेंसियों को अंदेशा है कि चीन के करीब एक हजार जासूस इस वक्त भारत के अलग-अलग शहरों में मौजूद हैं।  

हिंदुस्तान की जमीन में चीन के जासूसी नेटवर्क की जड़ें कितनी गहरे तक जम चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये तीनों पिछले कई सालों से राजधानी दिल्ली में रहकर चीन के लिए जासूसी कर रहे थे। भारत की खुफिया एजेंसियों को जैसे ही इस बात की भनक लगी, इन्हें आनन-फानन में दबोच लिया गया।

चीन के शातिर जासूसों की ये तिकड़ी कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ती, अगर कुछ दिनों पहले भारतीय खुफिया एजेंसी ड्रैगन के उस जासूस तक नहीं पहुंच पाते जिसका नाम था लुओ सांग उर्फ चार्ली पेंग। लुओ सांग और उर्फ चार्ली पेंग को गिरफ्तार करके भारतीय खुफिया एजेंसियों ने चीन के जासूसी नेटवर्क की कमर तोड़ दी। खुफिया एजेंसियों के सामने चार्ली ने अपने उन कई साथियों का राज़ उगल दिया, जिसके बाद भारत की खुफिय़ा एजेंसियां चीन के जासूसी नेटवर्क को ध्वस्त करने में जुट गई। दिल्ली से गिरफ्तार हुए चीन के तीन जासूस उसी नेटवर्क का हिस्सा था।

पूछताछ के दौरान चार्ली पेंग ने खुफिया एजेंसियों को बताया कि हिंदुस्तान में चीन के जासूसों का बाकायदा एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। चार्ली से जानकारी के आधार पर खुफिया एजेंसी दिल्ली में रह रही किंग शी तक पहुंच गई। चीन की रहने वाली किंग शी नेपाल के रहने वाले एक और जासूस शेर सिंह के संपर्क में थी। ये दोनों एक फर्जी कंपनी की आड़ में दिल्ली में रह रहे थे। जांच के दौरान ये भी पता चला कि ये दोनों एक पत्रकार राजीव शर्मा के संपर्क में थे। इस तरह ये तीनों का भंडाफोड़ हो गया।

खुफिया एजेंसियों और पुलिस की जांच में ये भी पता चला कि राजीव शर्मा ने कई खुफिया जानकारियां चीन को सौंपी थी, जिसके बदले में इसे मोटी पेमेंट भी की गई। शी करीब सात साल पहले छात्र वीजा पर भारत आई थी और नर्सिंग की पढ़ाई करने के बाद शेर सिंह के साथ मिलकर दिल्ली में ही फर्जी कंपनी चलाने लगी। इन्हीं कम्पनियों के जरिये चीन से आने वाली रकम का हिस्सा राजीव को मुहैया कराया जाता था। दिल्ली पुलिस की राजीव को इंडियन आर्मी से जुड़ी हर सूचना देने के लिए करीब 73 हजार रुपये मिलते थे।


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