September 22, 2024

प्रमुख नागरिकों ने कानून मंत्री को पत्र लिख भारत के आपराधिक कानूनों में संशोधन करने का किया आग्रह

देश के प्रमुख नागरिकों के एक समूह ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद से बलात्कार और यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुषों की सुरक्षा के लिए भारत के आपराधिक कानूनों में संशोधन करने का आग्रह किया है।

मंत्री को लिखे पत्र में नागरिक रवीना राज कोहली, पूर्व डीजीपी यूपी पुलिस प्रो. विक्रम सिंह और वकील अशोक जीवी का कहना है कि भारत में बलात्कार के शिकार वयस्क पुरुषों को कोई सहयोग नहीं दिया जाता।

समूह ने पत्र में लिखा, ‘हम भारत के उन कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों के समूह हैं, जिन्होंने ‘नो रेप इंडिया’ के नाम से स्वयं को संगठित किया है। यौन हिंसा को रोकने के लिए और पीड़ितों के अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के एक समूह के रूप में हम आपको कानून में एक बड़े अंतर की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए बताना चाहते हैं कि रेप के शिकार वयस्क पुरुष को कोई मदद नहीं दी जाती।

पत्र में आगे लिखा गया है कि हम आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 375, धारा 354 ए, बी, सी और डी में संशोधन करने, सामान्य रूप से यौन उत्पीड़न, इन अपराधों को सुनिश्चित करने के साथ ही धारा 375, धारा 354 ए, बी, सी और डी में बड़े कदम उठाने का आह्वान कर रहे हैं। पुरुषों के खिलाफ इस तरह की यौन हिंसा को रोकने के लिए महिलाओं की तुलना में उनसे कमतर व्यवहार किया जाता है।

संगठन ने पत्र में लिखा है कि उदाहरण के रूप में हाल ही तमिलनाडु के संथानकुलम में पुलिसकर्मियों द्वारा दो पुरुषों की उत्पीड़न की घटना को ले सकते हैं। इसे ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में प्रचलन में रहे कानून ऐसे भयावह अपराधों के पीड़ितों को संरक्षण देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। साथ ही वयस्क पुरुषों के बलात्कार को ऐसे हमले की प्रकृति के कारण कम करके आंका जाता है। इन्हें बलात्कार के रूप में भी वर्गीकृत नहीं किया जाता।

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 377 के तहत ‘प्रकृति के आदेश के खिलाफ वैवाहिक संभोग’, जिसमें से कोई प्रभावी रूप से उन अपराधियों की जवाबदेही को संबोधित नहीं करता है, जो उन पर किए गए अपराध के आतंक के लिए जिम्मेदार थे।

पत्र में आगे लिखा कि इन दो लोगों के साथ जो हुआ, वह निर्भया बलात्कार की घटना की त्रासदी से बिलकुल भी कम घृणित और भयावह नहीं है।

इसलिए विशेष रूप से मान्यता प्राप्त पुरुष बच्चों को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत यौन शोषण का शिकार होने को ध्यान में रखकर वयस्क पुरुषों को समान कानूनी संरक्षण का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

तीनों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में संशोधन का आग्रह किया है। साथ ही इस बात की ओर ध्यान दिलाया कानून की यह धारा पुरुषों द्वारा यौन हिंसा की शिकार महिलाओं को संरक्षण देती है, लेकिन समान अपराधों के पीड़ितों की रक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है।

पत्र में आगे लिखा, निर्भया मामले के बाद भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 में संशोधन, जिसने बलात्कार की परिभाषा का विस्तार किया है। इसमें गैर-सहमतिपूर्ण, लिंग और योनी संभोग, लेकिन किसी भी तरह की हिंसा, जिसमें पीड़ित के शारीरिक अंगों में प्रवेश होता है, इसे परिभाषित किया गया है। हालांकि यह सही दिशा में एक कदम था, लेकिन इसे एक ‘अधूरी यात्रा’ ही कहा जा सकता है।

जैसा कि पहले से ही कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का संशोधित संस्करण, 1860 ना तो रेप और ना ही सेक्सुअल असॉल्ट को दंडित करने की बात करता है। यह सिर्फ पुरुष द्वारा महिला पीड़ित को ही शामिल करता है।

खास बात यह है कि यह कानून बलात्कार के अधिनियम पर कम, अपराधी और पीड़ित के लिंग पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। साथ ही कानून के संरक्षक और सत्ता के एजेंट होने के पितृसत्तात्मक स्टीरियोटाइप को भी वैधता प्रदान करता है। इस देश में और विश्व स्तर पर प्रचलित बलात्कार की संस्कृति के तहत कानून गलत तरीके से यह मानता है कि पुरुष यौन नुकसान के लिए जिम्मेदार और अजेय हैं।

समूह का कहना है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 में इस विसंगति को ठीक करने की तत्काल आवश्यकता है। ताकि बलात्कार के शिकार वयस्क पुरुष और ट्रांसजेंडर पीड़ितों की जरूरतों पर ध्यान दिया जा सके। साथ ही यह प्रदर्शित किया जा सके कि इस देश की संसद जीवित और संवेदनशील है। यह ‘नो रेप इंडिया’ के लिए नागरिकों के रूप में हमारी सामूहिक प्रार्थना है कि इन संशोधनों पर तत्काल विचार किया जाएगा।


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