कोरोना: लॉकडाउन में नरमी से इंडस्ट्री को खास फायदा नहीं, ज्यादातर सेक्टर परेशान

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केंद्र सरकार ने 20 अप्रैल को ज्यादातर सेक्टर में कारोबार एवं उत्पादन की छूट दी है, लेकिन कई समस्याओं की वजह से कारोबार और कारखानों का पहिया गति नहीं पकड़ पा रहा. लोगों की आवाजाही पर रोक है, मजदूर मिल नहीं रहे, माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही, ऐसे में भला उत्पादन और कारोबार कैसे परवान चढ़ेगा? पेश है इंडस्ट्री के हालात पर एक खास रिपोर्ट…

ये हैं प्रमुख समस्याएं

लोगों की आवाजाही पर रोक है और लोग सेहत की चिंता में काम पर जाना भी नहीं चाहते. ट्रक ड्राइवरों, मजदूरों, वेयरहाउस वर्कर सबकी कमी है. अंतरराज्यीय यात्रा से आने वाले ड्राइवरों को राज्य सरकारें क्वारनटीन पर भेज देती हैं. यही हाल दूसरे राज्यों से आने वाले कारखाना मजदूरों का है. ऐसे में भला कौन दूसरे राज्य में जाना चाहेगा?

केंद्र सरकार ने 20 अप्रैल को कई तरह के प्रमुख उत्पादकों को उत्पादन की छूट दी है, लेकिन समस्याएं कई तरह की हैं. उदाहरण के लिए अगर कारों के उत्पादन की छूट दी गई और उनको पार्ट सप्लाई करने वाले कारखानों को नहीं, तो इस छूट का कोई मतलब नहीं है.

केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के सचिव पवन कुमार अग्रवाल ने 4 अप्रैल को 71 ऐसी कंपनियों की सूची जारी की जो आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन या कारोबार करती हैं. यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि इन कंपनियों के माल की आवाजाही में कोई दिक्कत न हो. इसमें अडानी विल्मर, ब्रिटानिया, पेप्सिको, रिलायंस फ्रेश, एमेजॉन, फ्लिपकार्ट आदि शामिल हैं. लेकिन केंद्र के स्पष्ट निर्देश के बावजूद राज्यों में इन कंपनियों का माल बेरोकटोक नहीं जा पा रहा.

तकनीकी तौर पर देखें तो भारत की 2.7 लाख करोड़ इकोनॉमी के करीब 30 फीसदी हिस्से को 20 अप्रैल से काम करने की इजाजत दे दी गई है. लेकिन केंद्र सरकार के तीन दर्जन ​निर्देश के बाद भी समस्या दूर नहीं हो पा रही.

पवन कुमार अग्रवाल ने कहा, ‘कई कंपनियों को मजदूर मिलने में समस्या आ रही है. स्थानीय प्रशासन को यह सलाह दी जा रही है कि वे कारखानों आदि के लिए मजदूर उपलब्ध कराएं.’

फार्मा सेक्टर की ये है हालत

फार्मा सेक्टर को पूरी तरह से छूट है, इसके बावजूद दवा उत्पादन सही तरीके से नहीं चल पा रहा. हरियाणा के बहादुरगढ़ में स्थित फार्मा कंपनी फार्मचेम के पार्टनर निपुण जैन ने बताया कि उन्होंने उत्पादन धीमा कर दिया है. इसकी वजह यह है कि एक तो चीन से आने वाले कच्चे माल की कीमत बढ़ गई है, दूसरे ट्रक ऑपेरटर छोटे ऑर्डर लाने को तैयार नहीं हैं. इसी तरह निर्यात के लिए कार्गो कंपनियां भी इन दिनों बहुत ज्यादा रेट ले रही हैं.

हालांकि बड़ी दवा कंपनियों ने अपना उत्पादन शुरू कर दिया है. इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (IPA) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि तमाम चुनौतियों के बीच दवा उद्योग में उत्पादन शुरू हो गया है. उन्होंने कहा, ’55-56 फीसदी उत्पादन हो रहा है. अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक के बीच यह बड़ी बात है.’

चिकन इंडस्ट्री बर्बाद

चिकन इंडस्ट्री के लिए तो कारोबार पूरी तरह से बंद ही है. इस सेक्टर को कारोबार की छूट मिली हुई है, लेकिन बाजार में मांग ही नहीं है. फरवरी में ही यह अफवाह फैल गई थी कि चिकन से कोरोना वायरस फैलता है, इसके बाद इसकी मांग पूरी तरह से बैठ गई है.

कोलकाता के अनमोल फीड्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित सरावगी कहते हैं, ‘मार्च में लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही भारतीय पॉल्ट्री इंडस्ट्री को 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका था. फार्मर तो चिकन लगभग फ्री में बेच रहे हैं.’

अस्पतालों की हालत खराब

कोरोना की वजह से अस्पतालों का बिजनेस भी ठप पड़ा है. यहां तक कि बड़े अस्पताल भी सरकार से राहत मांग रहे हैं. अस्पतालों में मरीज 25 फीसदी से भी कम रह गए हैं. कई निजी अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल में बदल दिया गया है. ​अस्पतालों तक अब सिर्फ सीरियस कंडीशन वाले मरीज ही पहुंच रहे हैं.

लॉजिस्टिक इंडस्ट्री ने नहीं पकड़ी स्पीड

लॉजिस्टिक इंडस्ट्री की भी हालत खराब है. ट्रकों के लिए अंतरराज्यीय आवाजाही की इजाजत दी गई है, लेकिन जमीनी हालत कुछ और ही है. ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विनीत अग्रवाल ने कहा, ‘ट्रकों की आवाजाही महज 5-10 फीसदी रह गई है. अभी भी सैकड़ों ट्रक फंसे हुए हैं, जो लॉकडाउन के पहले से सड़कों पर हैं.’

आईटी इंडस्ट्री का हाल बेहतर

सबसे बेहतर हालत आईटी और आईटी एनेबल्ड सर्विसेज इंडस्ट्री की है. इस इंडस्ट्री के लिए काम कर्मचारी घर बैठकर ही कर सकते हैं. सरकार ने इन इंडस्ट्री के 50 फीसदी कर्मचारियों को ऑफिस जाकर काम करने की छूट दी है. हालांकि ज्यादातर कंपनियां कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम को ही प्राथमिकता दे रही हैं.

विप्रो के एमडी और सीईओ ए. नीमचवाला ने कहा, ‘हमारे 93 फीसदी कर्मचारियों के लिए कस्टमर्स ने वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी दी है और 90 फीसदी वैश्विक स्तर पर प्रोजेक्ट डिलिवरी और सेवा देने में लगे हैं.’

ई-कॉमर्स का कारोबार भी नहीं बढ़ा आगे

सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों को सिर्फ जरूरी सामान के सप्लाई की इजाजत दी है. लेकिन इसमें भी डिलिवरी की समस्या आ रही है. कोरोना की समस्या विकट है. आज जो क्षेत्र ग्रीन जोन में है, कल को रेड जोन या हॉटस्पाट में बदल सकता है. इसीलिए माल सप्लाई में कई अड़चनें हैं.

कब होंगे हालात सामान्य

कई जानकार तो यहां तक मानते हैं कि जनवरी 2021 से ही कारोबार सामान्य हो पाएगा. राबो इ​क्विटी एडवाइजर्स के एमडी राजेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘जुलाई के बाद बीमारी का प्रकोप खत्म हो जाए तो भी कारोबार के हालात सामान्य होने में दो तिमाही और लग जाएंगे. यानी कारोबार सामान्य 1 जनवरी, 2021 के बाद ही हो सकता है.’