September 21, 2024

डॉ० योगम्बर सिंह बर्त्वाल का जाना उत्तराखण्ड राज्य की एक बड़ी क्षति

जयप्रकाश पंवार जेपी

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के संस्थापक डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल का जाना उत्तराखंड राज्य कि एक बड़ी क्षति है। प्रसिद्ध कवि चन्द् कुंवर बर्त्वाल की कविताओं को जिस प्रकार स्व. शम्भू प्रसाद बहुगुणा दुनिया के सामने लाये, उस कार्य को बड़ी शिद्दत के साथ डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने आगे बढ़ाया। डॉ. बर्त्वाल उत्तराखंड के इतिहास, समाज, संस्कृति से लेकर राजनीति के गहरे जानकार थे, व वैसे ही उनके इस तरह के लोगों के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध भी थे. मेरा उनसे लेखन के जरिये ही परिचय ढाई दसक से था।

वे मुझे लेखन हेतु बहुत प्रोत्साहित करते थे। हर महीने जब मेरा युगवाणी में “पहाड़नामा” कॉलम प्रकाशित होता था, तो पहला फ़ोन डॉ. बर्त्वाल जी का ही आता था, उस पर वह अपनी निस्वार्थ प्रतिक्रिया देते थे। चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान का जब भी कोई प्रकाशन निकलता था, तो बर्त्वाल जी मुझे पुस्तकें प्रदान करते थे। नरेन्द्र सिंह भंडारी पर लिखी उनकी पुस्तक मैंने खुद उनके घर जाकर प्राप्त की। इन दिनों वे प्रसिद्ध मूर्तिकार व लखनऊ आर्ट कॉलेज के डीन रहे प्रो. डॉ. अवतार सिंह पंवार जी पर पुस्तक प्रकाशन कि तैयारी पर लगे थी।

लगभग दस साल पहले जब मैं अपने मित्र डॉ. विक्रम बर्त्वाल के साथ उनके घर गया था तो, उन्होंने मुझे डॉ. अवतार सिंह पंवार जी द्वारा निर्मित वीर शिरोमणि माधो सिंह भंडारी और प्रसिद्ध समाज सेवी श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के संस्थापक व गढ़वाल विश्वविधालय आन्दोलन के अग्रदूत स्वामी मन्मथन जी की मूर्तियाँ दिखाई थी। गढ़वाल विश्वविधालय कि स्वर्ण जयंती की डाक्यूमेंट्री निर्माण के दौरान मेरे मन में अचानक यह विचार आया कि यदि उपरोक्त दोनों मूर्तियाँ श्रीनगर विश्वविधालय में सही जगह स्थापित हो जाएँ तो मूर्तियों का संरक्षण भी होगा और उचित सम्मान भी होगा. मैंने तुरंत डॉ. साहब को फ़ोन किया और अपने मन की बात बतायी। काफी विचार विमर्श के पश्चात डॉ. बर्त्वाल जी ने कहा पंवार जी आपका सुझाव अति महत्वपूर्ण है।

जब बर्त्वाल जी ने मुझे अनुमति दे दी, तो मैंने माननीया कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल जी से इस सन्दर्भ में बात की, तो बहुत ख़ुशी हुई। उन्होंने डॉ. बर्त्वाल जी को एक आभार पत्र भी लिखा और प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागाअध्यक्ष प्रो. राजपाल सिंह नेगी और डॉ. सुरेन्द्र बिष्ट को मूर्तियों को लाने हेतु भेजा। मूर्तियाँ विश्वविधालय में पहुँच चुकी है। मूर्तियों के स्थान, प्लेट फॉर्म निर्माण कि प्रक्रिया चल रही है. कुछ ही महीनों में ये मूर्तियाँ सम्मानित स्थानों पर स्थापित हो जाएँगी।

डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने सदैव युवाओं को प्रेरणा देने का कार्य किया. उनके मन में एक इच्छा थी कि चंद्रकुंवर शोध संस्थान के कार्यक्रम वे दिल्ही, लखनऊ, नैनीताल, पिथोरागढ़, मसूरी से लेकर अनेक स्थानों पर कर चुके थे, लेकिन श्रीनगर में कार्यक्रम करने का उनको मौका नहीं मिला। आशा करता हूँ कि आने वाले समय में जरुर उनकी इच्छा पूरी होगी व चंद्रकुंवर शोध संस्थान डॉ. बर्त्वाल जी के सपनों को आगे बढ़ाने का काम करेगा. प्रिय अग्रज डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी को सादर नमन व विनम्र श्रद्धांजलि।


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