फिनलैंड और स्विट्जरलैंड में बजेगी धनदा की डफली

dr dhan singh rawat

– जनता के पैसे लुटाने, शिक्षा के बहाने दो देशों की सैर
– कुछ केरल से ही सीख लेते मंत्री जी, झूठ बोलकर विदेश क्यों जाना

गुणानंद जखमोला

कौआ चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल बैठा। यह कहावत उत्तराखंड की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर चरितार्थ होती है। पिछले 23 साल में प्रदेश में आज भी 100 स्कूल बिना भवनों क चल रहे है। गढ़वाल और कुमाऊं के 96 प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल के पास अपना विद्यालय भवन नहीं है। जबकि 16 माध्यमिक विद्यालय भी बिना भवन के हैं। हर साल ड्रापआउट बच्चों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दो वर्षों में 600 से अधिक स्कूल बंद हो गये हैं। अटल उत्कृष्ट स्कूलों की हालत सुधारी नहीं और शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत जनता के पैसे पर ऐश करने के लिए अपनी टीम के साथ चार दिवसीय विदेश दौरे पर रवाना हो गये हैं। यह टीम फिनलैंड और स्वीट्जरलैंड का दौरा करेगी। मजेदार बात यह है कि इस टीम में मंत्री जी अंग्रेजी नहीं बोल सकते और अन्य अफसर न फिनिश या स्वीडिश समझ सकते हैं और न ही स्विज लैंगवेज। तो भाई साहब बताए जरा, चार दिन में सबकुछ कैसे सीखोगे?

लैंड आफ द मिडनाइट सन यानी फिनलैंड में नौ साल की अनिवार्य शिक्षा प्रणाली है। हाईस्कूल तक कोई परीक्षा नहीं होती है। हाईस्कूल के लिए साल के अंत में एक ही परीक्षा होती है। स्कूली छात्रों के लिए कोई रैंकिंग या ग्रेडिंग नहीं है। वहां सारे के सारे एजूकेशन सिस्टम से जुड़े हुए लोग ही शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत हैं न कि उत्तराखंड के पीसीएस अफसरों की तरह कई-कई निदेशक और काम चवन्नी का नहीं। इसके अलावा फिनलैंड में सबसे कमजोर और सबसे मजबूत छात्रों के बीच का अंतर दुनिया में सबसे कम है। यहां के एजुकेशन सिस्टम में समानता सबसे महत्वपूर्ण शब्द है। उत्तराखंड में तो सरकार ने राजीव नवोदय, जवाहर नवोदय, अटल उत्कृष्ट आदि-आदि स्कूलों का बंटवारा किया है।

बात स्विट्जरलैंड की शिक्षा प्रणाली की करें तो वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली में छठे स्थान पर है। यहां भी बच्चो को अंग्रेजी नहीं बल्कि यहां की स्थानीय भाषा अनिवार्य है। इसके अलावा जर्मन, फ्रैंच, रोमांशमें शिक्षा दी जाती है। सरकार कुल जीडीपी का 5.7 प्रतिशत निवेश करती है। यहां कैंटन के आधार पर निशुल्क शिक्षा दी जाती है। उत्तराखंड में स्थानीय शिक्षा अनिवार्य तो दूर की कौड़ी है, आज तक गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं को पाठ्यक्रम में भी शामिल नहीं किया जा सका है।

ऐसे में जब हम फिनलैंड और स्विटरलैंड की शिक्षा प्रणाली के दूर-दूर तक भी नहीं फटकते तो झूठ बोलकर विदेश यात्रा करने का क्या लाभ? सीधे बोल दो, जनता के पैसे ठिकाने लगाने जा रहे हैं। वहां डफली बजाएंगे और प्रकृति के मजे लूटेंगे। मिस्टर एजूकेशन मिनिस्टर यदि आप शिक्षकों के तबादलों की तुलना में शिक्षा के प्रति गंभीर होते तो केरल जाते। वहां सीखते कि केरल क्यों शिक्षा में हमसे इतना अच्छा है? दिल्ली ही चले जाते। पिछले साल दिल्ली में तैनात भाजपा के गर्वनर ने तो आम आदमी पार्टी के नेताओं को फिनलैंड जाने की अनुमति नहीं दी थी।