आरक्षण के नाम पर बेवकूफ ना बनाये…..खाली पडे पदो पर नियुक्ति करें ….

रोजगार ना होने का संकट या बेरोजगारी की त्रासदी से जुझते देश का मूल संकट ये भी केंद्र और राज्य सरकारों ने स्वीकृत किया है पर भी नियुक्ति नहीं की हैं। एक जानकारी के मुताबिक लगभग एक करोड़ से ज्यादा पद देश में खाली पड़े हैं। जी ये सरकारी पद हैं। जो देश के अलग अलग विभागों से जुड़े हैं ।
1 साल पहले ही जब राज्यसभा में सवाल उठाया गया था तब राज्य के मंत्री जितेन्द्र प्रसाद ने जवाब दिया था। केंद्र सरकार के कुल 4,20,547 पद खाली पड़े हैं। और महत्वपूर्ण ये भी केंद्र के जिन विभागो में पद खाली पड़े हैं, उनमें 55, 000 पद सेना से जुड़े हैं। जिसमें लगभग 10 हजार पद आफिसर्स के हैं। इसी तरह सीबीआई में 22 प्रति पद खाली हैं। तो प्रत्यर्पण विभाग यानी ईडी में 64 प्रति पद खाली हैं। इतना ही नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सरीके आम लोगो की जरुरतों से जुडे विभागों में 20 ले 50 प्रति तक पद खाली हैं। तो क्या सरकार पद खाली है इसलिए रखे गए हैं कि काबिल लोग नहीं मिल रहे हैं। या फिर वेतन देने की समस्या है। या फिर नियुक्ति का सिस्टम फेल है। हो जो भी लेकिन जब सवाल रोजगार ना होने का देश में उठ रहा है तो केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों के तहत आने वाले लाखों पद खाली शेड हैं। आलम ये है कि देश भर में 10 लाख प्राइमरी-अपर प्राइमरी स्कूल में टीचर के पद खाली पड़े हैं। 5,49,025 पद पुलिस विभाग में खाली पडे हैं। और किस राज्य में कानून व्यवस्था सबसे चौपट है यानी यू.पी. वहां पर आधे से ज्यादा पुलिस के पद खाली पड़े हैं। यूपी में 3,63,000 पुलिस के स्वीकृत लाइसेंस में से 1,82, 000 पद खाली पड़े हैं। जाहिर है सरकारों के पास खाली जगह पर नियुक्ति करने का कोई सिस्टम ही नहीं है। इसीलिये मुश्किल इतना भर नहीं कि देश में एजुकेशन के प्रीमियर इंस्टीट्यूशन तक में पद खाली पड़े हैं। मसलन 1,22,000 पद केएम कालेजो में खाली पडे है। 6,000 पद आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी में खाली पड़े एचैं।
6,000 पद देश के 47 सेन्ट्रल विश्वविद्यालय में खाली पड़े हैं
यानी कितना ध्यान सरकारों को शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर हो सकता है, ये इससे भी समझा जा सकता है कि दुनिया में भारत अपनी तरह का अकेला देश है जहा स्कूल-कालेजों से लेकर अस्पतालो तक में स्वीकृत पद आधे से ज्यादा खाली पड़े है । आलम ये है कि 63,000 पद देश के 363 राज्य विश्वविघालय में खाली पडे हैं। 2 लाख से ज्यादा पद देश के 36 हजार सरकारी अस्पतालों में खाली पडे हैं। बुधवार को ही यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्दार्थ नाथ सिंह ने माना कि यूपी के सरकारी अस्पतालों में 7328 खाली पड़े पदो में से 2 हजार पदों पर जल्द भर्ती करेंगे। लेकिन खाली पदो से आगे की गंभीरता तो इस सच के साथ जुडी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि कम से कम एक हजार मरीज पर एक डाक्टर होना ही चाहिये । लेकिन भारत में 1560 मरीज पर एक डाक्टर है । इस लिहाज से 5 लाख डाक्टर तो देश में तुरंत चाहिये । लेकिन इस दिशा में सरकारे जाये तब तो बात ही अलग है । पहली प्रथमिकता तो यही है कि जो पद स्वीकृत है । इनको ही भर लिया जाये । अन्यथा समझना ये भी होगा कि स्वास्थय व कल्याण मंत्रालय का ही कहना है कि फिलहाल देश में 3500 मनोचिकित्सक हैं जबकि 11,500 मनोचिकित्सक और चाहिये ।
और जब सेना के लिए जब सरकार देश में ही हथियार बनाने के लिए नीतियां बना रही है और विदेशी निवेश के लिए हथियार सेक्टर भी खोल रही है तो सच ये भी है कि आर्डिनेंस फैक्ट्री में 14 फीसदी टैक्निकल पद तो 44 फिसदी नॉन-टेक्नीकल पद खाली है। गड्ढे हैं।
यानी सवाल ये नहीं है कि रोजगार पैदा होंगे कैसे । सवाल तो ये है कि जिन जगहो पर पहले से पद स्वीकृत हैं, सरकार उन्हीं पदों को भरने की स्थिति में क्यों नहीं है। ये हालात देश के लिये खतरे की घंटी इसलिये है क्योंकि एक तरफ खाली पदों को भरने की स्थिति में सरकार नहीं है तो दूसरी तरफ बेरोजगारी का आलम ये है कि यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट कहती है कि 2016 में भारत में 1 करोड 77 लाख बेरोजगार थे । जो 2017 में एक करोड 78 लाख हो चुके हैं और 2018 में 2 करोड 87 लाख पार कर गये। लेकिन भारत सरकार की सांख्यिकी मंत्रालय की ही रिपोर्ट को परखे तो देश में 15 से 29 बरस के युवाओ करी तादाद 33,33,65,000 है । और ओईसीडी यानी आरगनाइजेशन फार इक्नामिक को-ओपरेशन एंड डेवलेपंमेंट की रिपोरट कहती है कि इन युवा तादाद के तीस पिसदी ने तो किसी नौकरी को कर रहे है ना ही पढाई कर रहे है । यानी करीब देश के 10 करोड युवा मुफलिसी में है । जो हालात किसी भी देश के लिये विस्पोटक है । लेकिन जब शिक्षा के क्षेत्र में भी केन्द्र और राज्य सरकारे खाली पद को भर नहीं रही है तो समझना ये भी होगा कि देश में 18 से 23 बरस के युवाओं की तादाद 14 करोड से ज्यादा है । इसमें 3,42,11,000 छात्र कालेजों में पढ़ाई कर रहे हैं। और ये सभी ये देख समझ रहे है कि दुनिया की बेहतरीन यूनिवर्सिटी की कतार में भारतीय विश्वविधालय पिछड चुके है । रोजगार ना पाने के हालात ये है कि 80 फीसदी इंजीनियर और 90 फिसदी मैनेजमेंट ग्रेजुएट नौकरी लायक नही है । आईटी सेक्टर में रोजगार की मंदी के साथ आटोमेशन के बाद बेरोजगारी की स्थिति से छात्र डरे हुये हैं। यानी कहीं ना कहीं छात्रों के सामने ये संकेट तो है कि युवा भारत के सपने राजनीति की उसी चौखट पर दम तोड रहे है जो राजनीति भारत के युवा होने पर गर्व कर रही है । और एक करोड़ खाली सरकारी पदों को भरने का कोई सिस्टम या राजनीतिक जिम्मेदारी किसी सत्ता ने अपने ऊपर ली नहीं है।