महज रंग-रोगन के सहारे शिक्षा उन्नयन, सालों से खाली पड़े हैं प्रधानाचार्यों और प्रवक्ता के हजारों पद
देहरादून। शिक्षा विभाग संख्या के लिहाज से प्रदेश का सबसे बड़ा विभाग है। सोमवार को शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे की अगुवाई में विभाग की समीक्षा बैठक हुई। जानकारों की माने तो विभाग में बैठक के जो मुद्दे रहे उन्हीं मुद्दो पर हर बार बैठक होती है।
फीस एक्ट की बात करें इसको लागू करने को लेकर शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे कई मर्तबा मीडिया के सामने दोहरा चुके हैं। लेकिन मंत्री पद पर बैठे उन्हें लगभग साढ़े चार साल का अरसा बीत चुका है लेकिन प्रदेश के अभिभावकों को निजी स्कूल की मनमानी वसूली से अभी मंत्री जी राहत नहीं दिला पाये हैं।
अटल उत्कृष्ट विद्यालय को लेकर प्रदेश सरकार ने बड़े-बड़े दावे किये। प्रत्येक ब्लाक से 2 स्कूलों का अटल उत्कृष्ट विद्यालय के लिये चुना गया। बताया गया कि इन स्कूलों में बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाएगा। सीबीएसई से इन स्कूलों को सम्बद्ध भी किया गया।
सरकार का दावा है कि इससे प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आयेगा। बाकायदा भाजपा की प्रदेश सरकार ने इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अलग से विभागीय परीक्षा करवाई लेकिन इसकी काउंसिंग भी विवादों की भेंट चढ़ गया है। राजकीय शिक्षा संघ का आरोप है कि अटल उत्कृष्ट विद्यालय में तैनाती के लिए विभाग शासनादेश का पालन नहीं कर रहा है।
वहीं दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि ऐसा मालूम होता है कि प्रदेश सरकार को खुद के उत्तराखण्ड शिक्षा बोर्ड पर ही विश्वास नहीं रह गया है। लिहाजा सीबीएसई से इन स्कूलों का मान्यता ली गई है। बता दें कि अटल उत्कृष्ट विद्यालय में उन्हीं स्कूलों को चुना गया है जो पूर्व में कांग्रेस सरकार के दौरान राजकीय आदर्श विद्यालय थे।
शिक्षक संगठनों का आरोप है कि शिक्षा विभाग में ही प्रदेश में अमल में आये ट्रांसफर एक्ट का पालन नहीं हो रहा है। दुर्गम वाले शिक्षक सालों से सुगम में तैनाती के लिए बाट जोह रहे हैं।
प्रदेश सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चाहे कितने दावे कर लेकिन ये भी सच है कि प्रदेश के तमाम इण्टर कालेज सालों से अपने मुखिया की बाट जोह रहे हैं। एक आरटीआई में खुलासा हुआ है शिक्षा विभाग में प्रधानाचार्य के कुल 1360 पद स्वीकृत हैं जिसमें 1080 पद रिक्त हैं। वहीं प्रधानाध्यापक की बात करें तो कुल 912 पद स्वीकृत है जिसमें 637 पद अभी भी रिक्त हैं। वही प्रवक्ता संवर्ग में प्रदेश में अभी भी 3221 पद खाली चल रहे हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में शिक्षा और उसकी गुणवत्ता को लेकर सरकारें कितनी गंभीर है।
इन सबसे इतर प्रदेश सरकार चटाई मुक्त स्कूलों की बात करती है। स्कूलों में फर्नीचर आपूर्ति के दावे करते हैं। लेकिन शिक्षकों बिना सिर्फ फनीचर और बिल्डिंग के सहारे शिक्षा की गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती। हालांकि सरकार चंद स्कूलों की रंगीन तस्वीर दिखाकर बताने की कोशिश करती है उत्तराखण्ड मे शिक्षा का उन्नययन हो रहा है। लेकिन बड़ा सवाल बिना शिक्षकों के शिक्षा का उन्नयन हो सकता है क्या?