El Nino: प्रशांत महासागर में सक्रिय हुए अल-नीनो पर वैज्ञानिकों ने जारी की चेतावनी, इसका भारत पर क्या होगा असर?

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अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अल नीनो के शुरू होने की पुष्टि की है। विशेषज्ञों की मानें तो यह विश्व मौसम को प्रभावित करने के साथ भारत के मानसून को कमजोर कर सकता है। इससे जलवायु परिवर्तन की वजह से पहले ही गर्म धरती में तापमान में बढ़ोतरी हो सकती है।

आइए जानते हैं अल नीनो क्या है? इसको लेकर चेतावनी क्या है? यह भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है? 

El Nino Becomes active in Pacific Ocean, know how it will affect india and world

क्या है अल नीनो? 

अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) का एक हिस्सा है, जो मौसम और समुद्र से संबंधित एक प्राकृतिक जलवायु घटना को बताता है। ईएनएसओ के दो चरण होते हैं- अल नीनो और ला नीना। अल नीनो का अर्थ स्पेनिश भाषा में ‘छोटा लड़का’ है और यह एक गर्म चरण है। वहीं, ला नीना का मतलब ‘छोटी लड़की’ होता है जो ठंड का चरण है।

प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना अल-नीनो कहलाती है। आसान भाषा में समझे तो समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो बदलाव आते हैं उस समुद्री घटना को अल नीनो का नाम दिया गया है। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री ज्यादा हो जाता है।

अल नीनो को लेकर नई चेतावनी क्या है?

अमेरिका की विज्ञान एजेंसी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने गुरुवार (8 जून) को घोषणा की कि अल नीनो सक्रिय हो गया है। भले ही अभी यह कमजोर है लेकिन सर्दियों तक एक मजबूत घटना बन सकती है। एजेंसी ने पूर्वानुमान में कहा, ‘अल नीनो सर्दियों में जारी रहेगा और इसके चरम पर एक मजबूत घटना बनने की आशंका 56 प्रतिशत है। कम से कम एक मध्यम घटना की आशंका लगभग 84 प्रतिशत है।’

अल नीनो मौसम पर क्या असर डालता है?

अल नीनो के कारण प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाता है यानी गर्म हो जाता है। इस परिवर्तन के कारण मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है। अल नीनो का असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है, जिसके कारण बारिश, ठंड, गर्मी सब में अंतर दिखाई देता है।

अब मौसम के बदल जाने के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है। जिस साल अल नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर इसका असर पड़ता है। इससे धरती के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति सामने आती है। हालांकि कभी-कभी इसके सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, उदाहरण के तौर पर अल नीनो के कारण अटलांटिक महासागर में तूफान की घटनाओं में कमी आती है।

अल नीनो भारत में मानसून को कैसे प्रभावित करता है?

वैश्विक परिदृश्य में देखें तो अल नीनो घटनाओं के दौरान, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और मध्य अफ्रीका जैसी जगहों पर शुष्क मौसम का अनुभव होता है। वहीं भारत में यह देखा गया है कि अल नीनो वर्षों के दौरान मानसून कमजोर हो जाता है। उधर चार साल में सबसे लंबी देरी के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून ने आखिरकार गुरुवार को केरल में दस्तक दी। अब, विशेषज्ञों ने अल नीनो के कारण भारत में इस साल सामान्य वर्षा न होने का पूर्वानुमान लगाया है।
अल नीनो मौसम की घटनाएं पिछले 70 वर्षों में 15 बार हुई हैं, जिनमें से भारत में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश केवल छह बार हुई है। पिछले चार अल नीनो वर्षों में, भारत ने लगातार सूखे की स्थिति और वर्षा में भारी कमी का सामना किया है। मॉनसून की बारिश कमजोर, मध्यम या मजबूत अल नीनो घटनाओं के आधार पर भी अलग-अलग हो सकती है। 1997 में, एक मजबूत अल नीनो के कारण भारत में सामान्य वर्षा का 102 प्रतिशत रिकॉर्ड किया था।

यह भविष्यवाणी की गई है कि 2023 में एक मजबूत अल नीनो मौसम पैटर्न दिखाई देगा। विशेषज्ञों की मानें तो भारत में इस साल अधिक तापमान होने के कारण यह वर्ष सबसे गर्म वर्षों में से एक हो सकता है।

इसका प्रभाव क्या होगा?

आईएमडी ने जून, जुलाई और अगस्त में अल नीनो के मॉनसून की बारिश को प्रभावित करने की 70 प्रतिशत आशंका जताई है। इसने कहा है कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इस साल मानसून सीजन की दूसरी छमाही (जुलाई से सितंबर के बीच) में सामान्य से कम बारिश दर्ज की जा सकती है। इसका सबसे ज्यादा असर   कृषि क्षेत्र पर पड़ सकता है जो अच्छी उपज के लिए काफी हद तक मानसून पर निर्भर है।
मानसून चावल, गेहूं, गन्ना, सोयाबीन और मूंगफली जैसी प्रमुख फसलों को प्रभावित करता है। सामान्य से कम वर्षा इन फसलों की कमी के कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकती है, जिससे मुद्रास्फीति और बढ़ सकती है। इस बीच, अल नीनो के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में गर्म सर्दी पड़ने की भी आशंका जताई गई है।