Exclusive News: भरसार विश्वविद्यालय में भर्ती घोटाला, राज्यपाल से मांग निरस्त हो नियुक्तियां

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देहरादूनः वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड आौद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में भर्ती घोटाले की गूंज सुनाई दे रही है। घोटाले की इस गूंज में विवि के पूर्व प्रभारी कुलपति और कुल सचिव का नाम उछल रहा है। वहीं भर्ती घोटाले में पूर्व कुलपति और कुल सचिव की मिलीभगत का रहस्य उजागर होने पर विवाद की डर से विश्वविद्यालय ने नियुक्ति प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल दी है। उधर नियुक्ति प्रक्रिया में प्रतिभाग करने वाले अभ्यर्थियों का आरोप है कि पूर्व कुलपति और कुल सचिव ने मोटी रकम लेकर अपने चहेतों को परीक्षा में लाभ पहुंचाया। अभ्यथियों का यह भी आरोप है कि पूर्व कुलपति और कुल सचिव आनन-फानन में साक्षात्कार करवा कर परीक्षा परिणाम जारी करने वाले थे कि तभी प्रदेश भर में पंचायत चुनाव की आर्दश आचार संहिता लागू हो गई। इस बीच विश्वविद्यालय में नये कुलपति की नियुक्ति हो गई और कुल सचिव से भी चार्ज हटा कर दूसरे प्रोफेसर के हाथों में चला गया। जिससे पूर्व प्रभारी कुलपति और कुल सचिव की मंशा धरी की धरी रह गई। लेकिन बिडम्बना देखिए कि नये कुलपति की नियुक्ति होने के बावजूद भी इस प्रकरण में विश्वविद्यालय ने मौन साधा हुआ है।

निशाने पर पूर्व कुल सचिव

भारसार विश्वविद्यालय में नियुक्ति प्रक्रिया में हुये घपले की शिकायत बकायदा राजभवन से कर दी गई है। राजभवन को भेजे शिकायती पत्र में नियुक्ति प्रक्रिया को निरस्त करने की मांग की गई है। साथ ही तत्कालीन कुलपति और कुल सचिव के खिलाफ जांच की भी मांग की गई है। वहीं अभ्यर्थियों ने तत्कालीन कुल सचिव पर भारी गंभीर आरोप जड़े हैं। कुल सचिव पर आरोप है कि उन्होंने एक महिला अभ्यर्थी सहित 6 लोगों से मोटी रकम लेकर उन्हें परीक्षा से पहले ही प्रश्न पत्र उपलब्ध करा दिया था। लेकिन साक्षात्कार न होने तथा कुल सचिव का चार्ज हट जाने के बाद उन्होंने भर्ती से संबंधित पत्रावलियां अपने पास दबा दी है। जिससे विश्वविद्यालय प्रशासन नियुक्ति प्रक्रिया को निरस्त कर पा रहा है और न ही किसी प्रकार की अन्य कार्यवाही।

सवालों में कुल सचिव की नियुक्ति

जिस पूर्व कुल सचिव पर विश्वविद्यालय के शिक्षणेत्तर पदों पर घोटाले करने का आरोप लगा है। उसी कुल सचिव की नियुक्ति ही सवालों के घेरे में है। राजभवन को सौंपे दस्तावेज में आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन प्रभारी कुलपति ने अपने चहेते कुल सचिव को बिना शैक्षिक अनुभव के शोध अधिकारी से सह प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति दे दी। जो कि पूरी तरह यूजीसी के मानकांे के विपरीत है। यूजीसी के मानकों के मुताबिक सह प्राध्यापक के लिए कम से कम स्थाई रूप से 8 वर्ष का शैक्षिक अनुभव होना जरूरी है। लेकिन फर्जी अनुभव पत्रों के सहारे कुलपति ने अपने चहते कुल सचिव को बड़ा लाभ पहुंचा दिया। ऐसे ही विश्वविद्यालय के रानीचैरी, भरसार और माजरीग्रांट परिसर में तैनात सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियों में भी जमकर लेनदेने होने के आरोप लगाये जा रहे हैं।

डमी कंडीडेट बना नियुक्ति का सहारा

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड आौद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में बड़े खेल खेले गये हैं। रानीचैरी परिसर में तैनात एक सह प्राध्यापक को प्रोफेसर पद पर नियुक्त करने के लिए एक डमी कंडीटेट से आवेदन करवाया गया। आरोप है कि एफआरआई से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डा. सुभाष नौटियाल को विवि में प्रोेफेसर पद के लिए आवेदन करवाया गया। ताकि 03 अभ्यर्थियों का कोरम पूरा हो सके। इस तरह से विश्वविद्यालय में नियमविरूद्ध भर्ती कर अपने चहेते सह प्राध्यापक को प्रोफेसर पद पर नियुक्ति दे दी गई। जबकि उक्त प्रोफेसर का अगर रिकाॅर्ड देखें तो उन्होंने पिछले पांच-छह सालों से एक भी क्लास नहीं पढ़ाई।

निरस्त हो नियम विरूद्ध नियुक्तियां

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड आौद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की परिनियमावली और शासन के नियमों के मुताबिक किसी भी पद को विज्ञापित करने के एक वर्ष बाद उन पर नियुक्ति होना नियम संगत नहीं है। इसके लिए दोबारा विज्ञप्ति जारी करने का प्रावधान है। लेकिन भरसार विश्वविद्यालय में के0वी0के0 और केंद्र पोषित परियोजना एक्रिप के तहत जो पद भरे जा रहे हैं उनकी विज्ञप्ति 2014 व 2017 में विज्ञापित की गई। लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के चलते भर्ती प्रक्रिया लटकाये रखी और अब दोबारा विज्ञप्ति जारी किये बिना अपने चहेतों को एडजस्टर करने में जुटे हैं। वहीं कई अभ्यर्थियों ने इस भर्ती प्रक्रिया को नियम विरूद्ध बताते हुए राजपाल और राज्य सरकार से निरस्त करने की मांग की है।

उपनल कर्मियों को नुकसान

भरसार विश्वविद्यालय के जिन शिक्षणेत्तर पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया की गई। उन पदों के सापेक्ष विश्वविद्यालय में उपनल के माध्यम से बेरोजगार युवाओं को लगाया गया है। लेकिन विश्वविद्यालय ने कार्मिक विभाग द्वारा वर्ष 2017 में जारी शासनादेश की अवहेलना कर उन पदों पर भर्ती शुरू कर दी। जबकि शासनादेश में साफ लिखा है कि जिन पदों के सापेक्ष उपनल कर्मी कार्यरत हैं उन पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया न की जाय जब तक कि उपनल कर्मी की नियुक्ति का रास्ता साफ न हो जाया। वहीं उपनल कर्मियों का आरोप है कि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति और कुल सचिव ने जानबूझ कर ऐसे पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किये जिन पर पहले से उपनल कर्मी सेवारत है। उपनल कर्मियों का आरोप है कि विश्वविद्यालय के जिन शिक्षण्ेात्तर पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है उसमें कुलपति और कुलसचिव स्तर पर बड़ी धांधली की गई है। उपनल कर्मियों की मांग है कि नियम विरूद्ध की जा रही इस भर्ती प्रक्रिया की जांच एसआईटी से की जाय और भर्ती को निरस्त किया जाय।

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