September 22, 2024

एक्सक्लूसिव न्यूज़ः तकनीकी विश्वविद्यालय की तरक्की में अवरोधक बनती कुलपति की कारगुजारियां

देहरादूनः अमूमन देखा गया है कि विश्वविद्यालयों में दखलंदाजी का सीधा असर नौजवान पीढ़ियों पर पड़ता है। इतिहास गवाह है कि विश्वविद्यालयों में जब भी लक्ष्मण रेखाएं लांघने की कोशिशे हुई तो वह बड़े बखेड़ों की वजह बनी। शायद उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। अन्यथा वह कभी भी विश्वविद्यालय के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करते। यूं तो कुलपति विश्वविद्यालय का अभिभावक और प्रशासक होता है। एक अभिभावक के तौर पर कुलपति विश्वविद्यालय की तमाम समस्याओं से अवगत होता है और एक प्रशासक के तौर पर वह उन समस्याओं को सुलझाता है जो विश्वविद्यालय के लिए उचित नहीं है। लेकिन उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थिति इससे जुदा है। वहां के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र सिंह चौधरी अपने सनकी फरमानों से विश्वविद्यालय की प्रगति में अवरोध पैदा कर रहे हैं। जिसका सीधा असर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं पर पड़ रहा है।

कुलसचिव से तकरार

प्रोफेसर अनीता रावत, कुलसचिव

उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय को पटरी पर लाने का श्रेय विवि की कुलसचिव प्रोफेसर अनीता रावत को जाता है। प्रोफेसर रावत ने अपने अब तक के कार्यकाल में विश्वविद्यालय के उन तमाम विवादित मुद्दों को सुलझा दिया, जिन्हें सुलझाने में पूर्ववर्ती कुलपतियों के पसीने निकल गये थे। प्रोफेसर अनीता रावत को उनके बेबाक छवि के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि कुलपति विश्वविद्यालय में अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा कुलपति ने कुलसचिव के कार्यों में अडंगे डालने शुरू कर दिये। कुलपति प्रोफेसर चौधरी की कार्य शैली बताती है कि वह कुलसचिव को दरकिनार कर अपनी मंशाओं को जल्द अमलीजामा पहनाना चाहते हैं। यही कारण है कि कुलपति ने नियमों को धता बताते हुए कुलसचिव की प्रतिनियुक्ति अवधि समाप्त होते हुए उन्हें विश्वविद्यालय से कार्यमुक्त कर डाला। कुलपति के इस फैसले से शासन भी दंग रह गया। चूंकि नियमों यह अधिकार शासन को है न कि कुलपति हो। लिहाजा शासन ने कुलपति के फैसले को पलटते हुए कुलसचिव को पद पर बनाये रखा। शासन के इस फैसले से कुलपति प्रोफेसर चैधरी की खूब किरकिरी हुई। जानकारों का मानना है कि कुलसचिव की नियुक्ति और हटाने का अधिकार शासन को है न कि कुलपति को। लेकिन जिस प्रकार तकनीकी विश्वविद्यालय में कुलपति ने कुलसचिव को हटाने की जल्दबाजी की उससे उनकी मंशा पर सवाल उठना लाजमी है।

गजब..! शासन को भेजे दो कार्यवृत्त

प्रोफेसर नरेंद्र सिंह चौधरी, कुलपति

उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में हालात लगातार बदत्तर हो रहे हैं। कुलसचिव के कार्यों में हस्तेक्षप कर कुलपति अपने मनमाने फैसले थोप रहे हैं। आलम यह है कि विश्वविद्यालय शासन को एक ही बैठक के दो भिन्न कार्यवृत्त भेज रहा है। जिससे साफ होता है कि विश्वविद्यालय दो धुरी का केंद्र बन कर रह गया है। जहां एक ओर कुलपति का अडियल रवैया है तो वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय की शाख को बचाने की कवायद है। इन सब के बीच विश्वविद्यालय की शाख उस समय खटाई में पड़ गई जब विश्वविद्यालय स्तर से एक ही बैठक के दो भिन्न-भिन्न कार्यवृत्त शासन को भेजे गये। दरअसल मामला विश्वविद्यालय में काॅलेजों की संबद्धता को लेकर था। जिसके तहत विश्वविद्यालय ने 12 अक्टूबर 2019 को कार्यपरिषद की बैठक बुलाई। तय एजेंडे के तहत कार्यपरिषद में 13 बिंदुओं पर चर्चा होनी थी। लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र सिंह चैधरी ने इसके उलट अपने 5 बिंदुओं को कार्य परिषद के समक्ष रख दिया। जिससे बैठक में अव्यवस्था का माहौल पैदा हो गया। जैसे-तैसे कार्य परिषद की बैठक समाप्त हुई। लिहाजा नियमानुसार बैठक के कार्यवृत्त विश्वविद्यालय की कुलसचिव डाॅ. अनीता रावत ने शासन को भेज दिये। लेकिन बिडंबना देखिए कि कुलपति प्रोफेसर चौधरी ने कुलसचिव को दरकिनार करते हुए अलग से एक कार्यवृत्त शासन को भेज डाला। विश्वविद्यालय द्वारा दो विरोधाभाषी कार्यवृत्त भेजने पर शासन की भृकुटी तन गई।

शासन से शिकायत

उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कुुलपति के तानाशाही रवैये को देख कर हर कोई हतप्रभ है। कुलपति के इस तरह दकियानूसी भरे फैसलों से यूनीवर्सिटी की शाख पर भी सवाल उठने लगे है। दरअसल विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक कार्यपरिषद की बैठकों का ब्योरा कुलसचिव शासन को उपलब्ध कराते हैं। लेकिन बिडंबना देखिये कि तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति ने कुलसचिव के अधिकारों का हनन कर स्वयं अपने कार्यालय में अपने मन मुताबिक बैठक का कार्यवृत्त तैयार करवाया और उसे शासन को भेज डाला। कुलपति के इस कदम से कार्यपरिषद के सदस्य भी खफा नजर आये। लिहाजा परिषद के तीन सदस्यों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कुलपति के खिलाफ जांच की मांग की। संयुक्त हस्ताक्षरित पत्र में परिषद के सदस्यों ने कई बिंदुओं पर मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित किया।

मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान बिठाई जांच

शासन को दो भिन्न कार्यवृत्त भेजे जाने और विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्यों द्वारा शासन को भेजे शिकायती पत्र का मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संज्ञान लिया है। मुख्यमंत्री ने तत्काल प्रभाव से इसकी जांच के आदेश भी दिये हैं। मुख्यमंत्री के आदेश पर अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने शासन स्तर पर जांच समिति का गठन कर दिया है। यह जांच समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट शासन को भेज देगी। जानकारों का कहना है कि जांच समिति न सिर्फ दो भिन्न कार्यवृत्त की जांच करेगी बल्कि यह विश्वविद्यालय के उन तमाम विवादों की भी जांच करेगी जिससे विश्वविद्यालय की छवि को ठेस पहुंची है। इतना ही नहीं जांच रिपोर्ट के आने के बाद मुख्यमंत्री विश्वविद्यालय के पक्ष में बड़ा फैसला लेने से भी गुरेज नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि अगर विश्वविद्यालय के साख धूमिल करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com