EXCLUSIVE: न्यायालय की अवमानना कर बैठी राधिका झा, उपनल कर्मियों की पेट पर लात, ऊर्जा निगमों में भर्ती को मंजूरी
देहरादून। सचिव (ऊर्जा) राधिका झा के एक आदेश के बाद प्रदेशभर के ऊर्जा निगमों में तैनात उपनल कर्मियों की पेट पर लात लगना तय हैै। लेकिन गजब तो यह है कि ऊर्जा सचिव की ओर से जिस आदेश को जारी किया गया है वह आदेश जारी कर वह खुद न्यायालय की अवमानना कर बैठी है। उत्तराखण्ड शासन के आदेश दिनांक 03.07.2020 के माध्यम से ऊर्जा के तीनों निगमों यथा उत्तराखण्ड पावर कारपोरेशन लि0, यूजेविएन लि0 व पिटकुल के विभिन्न पदों पर सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्ति हेतु आदेश जारी किये गये हैं। जबकि इन पदों पर पहले से ही वर्षो से उपनल के माध्यम से कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे है। सचिव ऊर्जा के इस तुगलकी फरमान ने कोरोना वायरस कोविड-19 जैसे संकट में निगम को अपने सेवा दे रहे कर्मियों के सामने बडा संकट खडा हो गया है।
उत्तराखण्ड शासन द्वारा ऐसे समय में यह संविदा कर्मचारी विरोधी कार्यवाही की गयी जब पूरा देश व राज्य कोरोना महामारी से जूझ रहा है और तीनों निगमों के संविदा कर्मी पूरी मेहनत व ईमानदारी से प्रदेश को निर्बाध विद्युत आपूर्ति प्रदान करने का कार्य कर रहें हैं। इतना ही नही कुछ दिन पूर्व एक संविदा कर्मचारी की बिजली लाइन ठीक करते हुये अपने दोनों पैर भी गवा दिये है।
जबकि माननीय औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी द्वारा अपने निर्णय दिनांक 12.09.2017 के माध्यम से उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण नि0 व उपाकालि, यूजेविएनएल, पिटकुल के मध्य हुए अनुबन्ध को छद्म व धूमावरण से ग्रसित मानते हुए सभी उपनल संविदा कार्मिकों को तीनों निगमों के दैनिक वेतन भोगी मानते हुए विनियमितिकरण नियमावली-2011 के तहत नियमित करने व जो लोग इस नियमावली के अन्तर्गत नहीं आते हैं उन्हं समान कार्य के लिए समान वेतन मंहगाई भत्ते सहित दिये जाने हेतु निर्देशित किया है।
जिन रिक्तियों पर याचिकाकर्ता कार्य कर रहें हैं उन पदों को न तो छेडा जायेगा और न ही कोई नयी भर्ती की जायेगी। इसके अतिरिक्त मा0 उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका सं0 116/2018 कुन्दन सिंह बनाम उत्तराखण्ड शासन के सम्बन्ध में दिनांक 12/11/2018 को निर्णय पारित करते हुए उत्तराखण्ड शासन को निर्देषित किया है कि राज्य के विभिन्न विभागों/निगमों में उपनल के माध्यम से कार्योजित संविदा कार्मिकों को चरणबद्ध तरीके से एक वर्ष की समय अवधि में विनियमितिकरण नियमावली तैयार कर नियमित करें तथा उपनल संविदा कार्मिकों को छः माह के भीतर एरीयर सहित न्यूनतम वेतन, मंहगाई भत्ते का भुगतान जी0एस0टी0 व सर्विस टैक्स के आदेश पारित किये गये हैं।
जबकि उक्त निर्णय के विरूद्ध राज्य सरकार द्वारा मा0 उच्चतम न्यायालय (SUPREMCOURT) में स्थगन (STAY) हेतु याचिका दाखिल की गई जिस पर मा0 न्यायालय द्वारा सूनवाई करते हुए अग्रीम आदेशों तक रोक लगा दी थी। बता दें कि ऊर्जा निगमों में 764 पदों पर भर्ती को वित्त विभाग ने मंजूरी दे दी है। मंजूरी मिलते ही सचिव ऊर्जा राधिका झा ने तीनों निगमों के एमडी को अपने-अपने स्तर पर कार्यवाही करने के निर्देश दे दिए हैं। जबकि उक्त पदों पर पहले से ही विभागीय उपनल के माध्यम से कर्मचारी वर्षो से अपनी सेवाएं दे रहे है।
दस्तावेज न्यूज पोर्ट का सवाल है कि क्या उत्तराखण्ड शासन के सम्मुख या तो उपरोक्त तथ्य नहीं रखे गये हैं या जानबूझकर सचिव उर्जा राधिका झा ने मा0 न्यायालय के निर्णयों की अवमानना करते हुए भर्ती प्रक्रीया शुरू कोरोना वायरस कोविड-19 के समय में संविदा कर्मचारियों के मनोबल को गिराने का कार्य किया गया है। जिसे किसी भी सुरत में सही नहीं ठहराया जा सकता है। वहीं इस मामले पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मयंक बडोनी का कहना है कि जब मामला पहले से ही राज्य सरकार बना उपनल कर्मियों को लेकर सुनवायी करते हुए अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी गयी है तो फिर बीच में भर्ती शुरू नही की जा सकती है। बडोनी ने कहा कि इस मामले में वह स्य संज्ञान लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय में संबंधित अधिकारियों के विरूद्ध वाद दायर करने की अनुमति मांगेंगे।