एक्सक्लूसिव:आरएसएस ने की ‘राष्ट्रवाद’ से तौबा, अब ‘राष्ट्रीयता’ पर देगा जोर

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बारे में जनधारणा है कि यह ‘राष्ट्रवाद’ के दर्शन पर आधारित संगठन हैं. मगर, ऐसा नहीं है. अब आरएसएस ने भी यह साफ कर दिया है कि वह राष्ट्रवादी कतई नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय है. संघ ने अपने समर्थकों से भी राष्ट्रवाद शब्द से बचने की सलाह देते हुए खुद को राष्ट्रीय कहने की अपील की है. संघ का मानना है कि उसके समर्थक भी राष्ट्रवाद शब्द को लेकर भ्रांतियों के शिकार हैं. वास्तविकता तो यह है कि यह शब्द पश्चिम से आया है. संघ नेता मनमोहन वैद्य का मानना है कि संघ विचारधारा के समर्थक चार शब्दों- राष्ट्र, राष्ट्रत्व, राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय के जरिए ही अपनी पूरी बात कह सकते हैं. 

खास बात है कि इससे पूर्व आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ‘भारतीय’ शब्द को लेकर  सवाल खड़े कर चुके हैं. उन्होंने पिछले दिनों भारतीय की जगह हिंदू शब्द को ज्यादा अर्थ देने वाला बताया था. संघ ने अब दो टूक कह दिया है,” हम राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्रीय हैं, इसीलिए तो हमारे नाम में राष्ट्रीय जुड़ा है. कांग्रेस के नाम में भी राष्ट्रीय जुड़ा है. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है”

हाल ही में दिल्ली में इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र की ओर से आयोजित नारद जयंती समारोह में संघ के सह सरकार्यवाहक मनमोहन वैद्य ने यह साफ किया कि संघ राष्ट्रवाद में नहीं राष्ट्रीयता में विश्वास करता है. उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रवाद नहीं रहा है. देश में जिस राष्ट्रवाद की चर्चा होती है, वह तो भारत का है ही नहीं. बल्कि राष्ट्रवाद तो पश्चिमी देश से आया है. पश्चिम में जिस नेशनलिज्म के नाम पर कई राज्यों ने अपने विस्तार के लिए दूसरे राष्ट्रों पर युद्ध थोपे, हिंसा और अत्याचार किए. वो नेशनिल्जम तो वहां का है, अपने देश में राष्ट्रत्व है. क्या हम राष्ट्रवाद की जगह किसी और शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते?

मनमोहन वैद्य ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में जीत के बाद हिंदी और अंग्रेजी के दो पत्रकार मिले, उन्होंने बड़े ही गर्व से बीजेपी की जीत को विक्ट्री ऑफ नेशनलिज्म करार दिया तो मैने कहा कि अगर मैं संपादक होता तो इसे विक्ट्री ऑफ नेशनल एक्सप्रेशन कहता. हिंदी में इसे राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता की जीत की जगह राष्ट्रीयता और आध्यात्मिकता की विजय कहता.

इंग्लैंड में संघ प्रमुख को मिली थी सलाह

मनमोहन वैद्य ने राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रीय शब्द की बहस को लेकर तीन साल पुरानी एक और घटना का जिक्र किया. बताया कि तब संघ प्रमुख, सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत प्रबुद्धजनों के बीच संबोधन के लिए यूनाइटेड किंगडम(यूके) गए थे. वहां संबोधन से पहले इंग्लैंड में रहने वाले संघ कार्यकर्ता और समर्थक भागवत से मिले और बोले कि …प्लीज यहां नेशनलिज्म(राष्ट्रवाद) शब्द का जिक्र मत कीजिएगा. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि यहां की जनता राष्ट्रवाद शब्द को तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी के विचारों से जोड़कर देखती है. मनमोहन वैद्य के मुताबिक यूं तो उनके दिमाग में पहले से इस शब्द को लेकर हलचल थी, मगर भागवत जी के यूके प्रवास के दौरान यह बात सामने आई.

भारतीय नहीं हिंदू कहें

इससे पूर्व इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र की ओर से डॉ. कृष्ण गोपाल और डॉ. मनमोहन वैद्य के बीच संवाद का एक वीडियो जारी हुआ था. जिसमें डॉ. कृष्ण गोपाल ने देश में रहने वाले लोगों के लिए भारतीय शब्द की तुलना में हिंदू शब्द का प्रयोग करना ज्यादा उचित बताया था. उनका तर्क था कि भारतीय कहने से मात्र एक भूखंड में रहने वाले का बोध होता है, जबकि हिंदू शब्द का उल्लेख करने से एक विशेष संस्कृति और आध्यात्मिकता वाले समूह का बोध होता है. इस प्रकार देखें को भारतीय की तुलना में हिंदू शब्द ज्यादा अर्थ देने वाला है.

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