September 22, 2024

EXCLUSIVE: उत्तराखंड की बदहाल शिक्षा व्यवस्था, आख़िरकार ज़िम्मेदार कौन ?

उत्तराखंड की वर्तमान बदहाल शिक्षा व्यवस्था के लिए आख़िरकार कौन ज़िम्मेदारी लेगा यक्ष प्रश्न बन गया है । एक ओर तो उत्तराखंड की भाजपा सरकार आम आदमी पार्टी की स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता की चुनौती का सामना तक नहीं कर पायी तो वहीं आज की तारीख़ में सरकार अटल आदर्श विद्यालय को उपलब्धि बताकर इतरा रही है ।

अटल आदर्श विद्यालय की स्थिति ये है की विद्यालय और शिक्षक तो वही रहेंगे, लेकिन विद्यालयों का नाम बदल जाएगा और इन विद्यालयों में अंग्रेज़ी माध्यम से भी पठन पाठन का कार्य किया जाएगा । क्या प्रचण्ड बहुमत की सरकार पाँच सालों में यही उपलब्धि अर्जित कर सकी कि अपने बोर्ड को कमतर आंक कर सीबीएसई बोर्ड से अपने विद्यालयों को मान्यता लेने को ही उपलब्धि बता रही है।

उत्तराखंड के विद्यालयों में आजकल गुणवत्ता के लगभग सभी कार्यक्रम दिल्ली की सरकार के चल रहे हैं वहीं उसी दिल्ली सरकार ने अपने विद्यालयों के लिए अपना नया बोर्ड का गठन कर सीबीएसई बोर्ड को ठेंगा दिखा दिया और इधर उत्तराखंड सरकार सीबीएसई बोर्ड से मान्यता लेकर और विद्यालयों को अटल आदर्श उत्कृष्ट विद्यालय का नाम देकर ही आदर्श और उत्कृष्ट शिक्षा का दम्भ भर रही है ।

उत्तराखंड सरकार ने दिल्ली के बुनियाद कार्यक्रम को मिशन कोशिश और हैपीनेस कार्यक्रम को आनंदम नाम से उत्तराखंड की विद्यालयी शिक्षा पर थोपा । आनंदन कार्यक्रम पर तो लाखों रूपये फूक डाले, लेकिन शिक्षा में गुणवत्ता के नाम पर शिक्षा विभाग के तीनों निदेशालय गुणवत्ता के मुद्दे का फ़ुटबाल बना कर एक दूसरे को जवाबदेह बनाने की कोशिश करते रहते हैं ।

हक़ीक़त तो यह है कि उत्तराखंड में शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है जिससे अभिभावकों का विश्वास सरकारी विद्यालयों से दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है और राज्य के सरकारी विद्यालयों से छात्र संख्या तीव्र गति से घटती जा रही है।

आख़िर ऐसा हो भी क्यों न जब शिक्षा विभाग के अधिकारी उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थिति को दरकिनार कर दिल्ली सरकार के कार्यक्रम चलाएगी। हिंदी या अंग्रेज़ी माध्यम में पठन पाठन बिना किसी पूर्व तैयारी के करवाएगी तो शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर तो निश्चित तौर पर गिरेगा ही। कक्षा तीन से पर्यावरण विज्ञान और कक्षा छह से विज्ञान विषय को अंग्रेज़ी में बिना किसी तैयारी के चलवा दिया गया यह भी नहीं देखा गया कि क्या शिक्षकों को भी अंग्रेज़ी आ रही है या नहीं तो प्रारम्भिक शिक्षा बदहाल होनी ही थी ।

अब लगभग ऐसा ही कुछ अटल आदर्श विद्यालयों के नाम पर होने जा रहा है। आख़िर अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों का संचालन किस प्रकार किया जाएगा सरकार के पास इसके जवाब के लिए अधिकारियों की फ़ौज तो है लेकिन जवाब नहीं।

इन विद्यालयों के लिए शिक्षक और प्रधानाचार्य कहाँ से लाए जाएँगे ? यदि देहरादून और हरिद्वार जैसे मैदानी क्षेत्रों में शिक्षक मिल भी गए तो पहाड़ी क्षेत्रों में अंग्रेज़ी माध्यम के शिक्षक कहाँ से आएँगे ? इन विद्यालयों के शिक्षकों का संवर्ग क्या अलग होगा ? ऐसे बहुत से प्रश्न सरकार की मंशा पर ही प्रश्नचिह्न लगते हैं और इशारा करते हैं कि गुणवत्ता के नाम पर शिक्षा और आम जनता को फिर छला जाएगा।

उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि यहाँ गुणवत्ता के नाम पर सरकारी विद्यालयों का नाम बदल कर इतिश्री कर दी जाती है, पहले आदर्श विद्यालय के नाम पर और अब अटल आदर्श के नाम पर । शायद ही पूरे देश के किसी अन्य राज्य में सरकारी शिक्षा व्यवस्था इतनी बदहाली के दौर से गुजर रही होगी और शायद ही किसी अन्य राज्य में शिक्षा विभाग में अधिकारियों का इतना भारी भरकम ढाँचा होगा इसके बावजूद शिक्षा के गिरते स्तर को रोकने में सरकार पूर्ण रूप विफल रही ।


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